सुभद्रा कुमारी चौहान : इन्होंने लिखी थी वीर रस की अद्भुत कविताएं, पढ़ कर खौल जाता है खून
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी आज भी पढ़ कर रगों में खून दोगुनी तेजी से दौड़ उठता है। वीर रस की यह पंक्ति लिखने वाली कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। बचपन में पढ़ी कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' आज भी पढ़ कर रगों में खून दोगुनी तेजी से दौड़ उठता है। वीर रस की यह अमर कविता लिखने वाली कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान आजकल फिल्म मर्णिकर्णिका के कारण एक बार फिर चर्चा में हैं। आज इनकी पुण्यतिथि है। महज नौ साल के बच्चे से आप एक सुंदर कविता की उम्मीद नहीं कर सकते मगर सुभद्रा कुमार चौहान ने वीर रस को अपने शब्दों को पिरो कर अपने बचपन में ही कविता लिख दी। इनकी कलम से पहली कविता 'नीम' शीर्षक नाम से निकली जिस समय इनकी उम्र नौ वर्ष थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि नौवीं कक्षा के बाद ही इनकी पढ़ाई छूट गई मगर कविता लिखने का शौक बरकरार रहा।
यूपी में जन्म और मध्यप्रदेश में शादी
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एक पास निहालपुर गांव में सुभद्रा का जन्म हुआ था। चार बहनें और दो भाइयों के परिवार में जन्मी सुभद्रा कांग्रेस की कार्यकर्ता होने कारण आजादी के आंदोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। आजादी की जंग में वह कई बार जेल भी गई। बाद में उनका विवाह मध्यप्रदेश के खंडवा में ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हो गया। पति भी आजादी के मतवालों की टोली का हिस्सा थे। इस कारण पति के साथ ही महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गईं। देशभक्तों की टोली में उनका नाम बखूबी लिया जाता था और उनकी ये झलक उनकी लेखनी में भी दिखती है।
सामाजिक कुरितियों पर भी किया जमकर प्रहार
सुभद्रा कुमारी चौहान जिस दौर में कविता लिख रही थी, उस समय देश एक साथ कई गंभीर सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ रहा था। उस दौर में महिलाओं को ज्यादा शिक्षा और बाहरी दुनिया से महरूफ रखा जाता था। लड़कियां चारदीवारों में ही कैद रहती थीं। इसलिए उनकी रचनाओं में देशभक्ति के अलावा अशिक्षा, अंधविश्वास, जाति प्रथा, नारी शोषण, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों पर अपने तीखे शब्दों से खासा प्रहार किया। उनकी एक ऐसी ही कविता ‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो’ नारी वेदना को दर्शाती हैं। इस कविता में उन्होंने नारी के दर्द को बखूबी झलकाया है। 'मैं अछूत हूं, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है। किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥ प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी। यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥
जलियांवाला बाग के बाद इनकी कलम से निकली थी दर्द भरी कविता
जलियांवाला बाग के बाद जहां देश गुस्से में था वहीं सुभद्रा कुमारी चौहान भी इस घटना के बाद बुरी तरह हिल गई थीं। इसके बाद इन्होंने 'जलियाँवाला बाग में बसंत' नाम से एक कविता लिखी जो काफी प्रसिद्ध हुई थीं। 'यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से, वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे। परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है।
भाषा पर अच्छी पकड़ और सरलता ही उनकी पहचान
सुभद्रा कुमार चौहान की भाषा पर अच्छी पकड़ और सरलता ही उन्हें अन्य कवयित्री से अलग बनाता है। उनकी कहानियों की भाषा बोलचाल की सरल भाषा होती थी। वह अपनी झांसी वाली रानी कविता के कारण काफी मशहूर हुईं। यह कविता ने देश दुनिया में उन्हें एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया। सुभद्रा ने करीब 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की। मां सरस्वती की यह बेटी 15 फरवरी, 1948 को बसंत पंचमी के दिन ही सड़क दुर्घटना में इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं।