डीटीसी की पहली महिला बस चालक ने कहा वादा भूल चुकी है सरकार, छोड़ना चाहती हैं नौकरी
सरिता ने कहा कि 2015 में पहली बार जब उन्होंने डीटीसी की पहली महिला ड्राइवर के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी तो खूब सम्मान और प्यार मिला। लेकिन तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ।
By Amit MishraEdited By: Updated: Tue, 28 Aug 2018 08:31 PM (IST)
नई दिल्ली [जेएनएन]। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में डीटीसी की पहली महिला बस चालक के तौर पर पहचान बनाने वाली वी.सरिता ने नौकरी छोड़ने की घोषणा की है। सरिता स्थायी नौकरी नहीं मिलने से नाखुश हैं उनका आरोप है कि दिल्ली सरकार ने उसके साथ धोखा किया है।
अस्थाई चालकों का वेतन भी कम कर दियासरिता ने नौकरी छोड़ने की बात कहते हुए सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने नौकरी ज्वाइन करते समय कहा था कि 6 महीने में स्थाई कर देंगे लेकिन लगभग तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी वादा पूरा नहीं किया। सरिता ने कहा इसके अलावा सरकार ने अस्थाई चालकों का वेतन भी कम कर दिया है, इस बात को लेकर काफी दुख है।
वादा भूल चुकी है सरकार
वी. सरिता मूलरूप से तेलंगाना की रहने वाली हैं। अप्रैल 2015 में उन्होंने डीटीसी में पहली महिला बस चालक के रूप में अनुबंध पर नौकरी शुरू की थी। लेकिन तब से लेकर अब तक करीब साढ़े तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी डीटीसी को दूसरी महिला ड्राइवर नहीं मिली। सरिता का कहना है कि उन्होंने जब डीटीसी में नौकरी ज्वाइन की थी तो स्थाई नौकरी देने का वादा किया गया था लेकिन सरकार अपना वादा भूल चुकी है।
अधिकारियों के चक्कर में कट गई सैलरी वी. सरिता का कहना है कि इस मामले को लेकर सरकार से गुहार भी लगा चुकी हैं। लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि हां इतना जरूर हुआ, अधिकारियों से मिलने के लिए दिनभर की छुट्टी लेने के कारण एक दिन की सैलरी कट गई।
किसी ने नहीं सुनी गुहार
सरिता ने कहा कि 2015 में पहली बार जब उन्होंने डीटीसी की पहली महिला ड्राइवर के तौर पर नौकरी ज्वाइन की थी तो खूब सम्मान और प्यार मिला, साथ ही कई पुरस्कार भी मिले। बड़े-बड़े राजनेताओं से मिलने का मौका मिला। इस दौरान सभी ने स्थाई नौकरी देने की बात कही। लेकिन तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इस संबंध में वह तत्कालीन परिवहन मंत्री गोपाल राय, सत्येंद्र जैन के अलावा मुख्यमंत्री के सलाहकारों तक से स्थायी नौकरी की गुहार लगा चुकी हैं, मगर कुछ नहीं हुआ।
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