जानिए क्या है PFI का पूरा नाम, क्या है संगठन का काम, फिर से क्यों आया चर्चा में, दिल्ली दंगों से क्या है नाता?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक इस्लामिक संगठन है। ये संगठन अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। संगठन की जड़े केरल के कालीकट में गहरी हैं।
By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Sat, 30 Apr 2022 01:54 AM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। एक बार फिर दिल्ली की शांति भंग करने के मामले में पीएफआइ(पापुलर फ्रंट आफ इंडिया) का नाम जांच एजेंसियों के सामने आया है। ऐसा शायद ही कोई मौका हो जब देश में माहौल खराब करने के मामले में इस संस्था का कहीं न कहीं से कनेक्शन न निकलता हो।
चाहे बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय की बात हो या इस साल सीएए और एनआरसी को लेकर माहौल खराब करने का मामला हो, या फिर दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में दंगा कराने की साजिश, पीएफआइ ही इन सभी के लिए जिम्मेदार ठहराई जाती रही है।
जहांगीरपुरी में हुई हिंसा से पहले यूपी के हाथरस कांड में भी इसी का नाम सामने आया था। कहा जा रहा है कि पीएफआइ ऐसे मौके पर मोटी रकम खर्च करके माहौल खराब करती है। कई बार इनके मंसूबे खुफिया एजेंसियों की जानकारी में आ जाते हैं तो कई बार उनसे भी चूक हो ही जाती है जैसा कि जहांगीरपुरी में हुई हिंसा में देखने को मिला।
क्या है पीएफआई? क्या हैं इसके दावे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक इस्लामिक संगठन है। ये संगठन अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। संगठन की जड़े केरल के कालीकट में गहरी हैं। फिलहाल इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में बताया जा रहा है। शाहीन बाग वो इलाका है जहां पर सीएए और एनआरसी के विरोध में पूरे देश में 100 दिन तक सबसे लंबा आंदोलन चला था।
एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं। कई ऐसे मौके ऐसे भी आए हैं जब इस संगठन से जुड़े लोग मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं। संगठन 2006 में उस समय सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
फिलहाल कहा जा रहा है कि इस संगठन की जड़े देश के 24 राज्यों में फैली हुई है। कहीं पर इसके सदस्य अधिक सक्रिय हैं तो कहीं पर कम। मगर मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी जड़े काफी गहरी है इससे इनकार नहीं किया जा रहा है। संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता है।
अन्य संगठनों के साथ मिलकर जड़ें कर ली गहरी एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी , तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई , गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है।
इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
पीएफआई का विवादों से पुराना नाता पीएफआई को स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेट ऑफ इंडिया यानी सिमी की बी विंग कहा जाता है। साल 1977 में संगठित की गई सिमी को 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद माना जाता है कि मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों का अधिकार दिलाने के नाम पर इस संगठन का निर्माण किया गया।ऐसा इसलिए माना जाता है कि पीएफआई की कार्यप्रणाली सिमी जैसी ही थी। साल 2012 में भी इस संगठन को बैन करने की मांग उठ चुकी है। उसके बाद इस साल यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी संगठन को बैन करने की मांग की थी। इसके लिए गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा गया है मगर अब तक परमीशन नहीं मिली है।
केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय रहा है। इसी तरह से तमाम जगहों पर दंगे भड़काने में भी इनकी भूमिका सामने आ चुकी है। माहौल को खराब करने के लिए संगठन हर तरह की मदद करने में आगे रहता है।
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