जानिये- क्यों दिल्ली से हटाए जाएंगे विलायती कीकर, नुकसान जानकर आप भी कहेंगे 'अच्छा फैसला है'
डीयू के पर्यावरण अध्ययन विभाग के वनस्पति विज्ञानी प्रो. सीआर बाबू के निर्देशन में यह प्रक्रिया पांच साल में पूरी होगी। इसके लिए 12.21 करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया है। विलायती कीकर पर्यावरण को लाभ से ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। देश की राजधानी दिल्ली को हर तरह से नुकसान पहुंचा रहे विलायती कीकर को हटाने के लिए जल्द ही विशेष अभियान शुरू किया जाएगा। बृहस्पतिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में वन विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। 1,483 वर्ग किमी में फैली दिल्ली का 20.22 फीसद हरित क्षेत्र है। इसमें 60 फीसद से ज्यादा क्षेत्र में विलायती कीकर है। 7,777 हेक्टेयर के रिज क्षेत्र में विलायती कीकर सबसे ज्यादा है। रिज क्षेत्र चार हिस्सों (नॉर्थ, साउथ, सेंट्रल व साउथ सेंट्रल) में बंटा हुआ है। यह क्षेत्र आधा दर्जन से भी अधिक विभागों एवं एजेंसियों के बीच बंटा है। वन विभाग के पास सेंट्रल रिज में सबसे ज्यादा हिस्सा है। अभियान की शुरुआत यहीं से होगी। पहले चरण में वन विभाग की 423 हेक्टेयर भूमि से विलायती कीकर को हटाकर बायो डायवर्सिटी पार्क की तर्ज पर स्वदेशी प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे।
डीयू के पर्यावरण अध्ययन विभाग के वनस्पति विज्ञानी प्रो. सीआर बाबू के निर्देशन में यह प्रक्रिया पांच साल में पूरी होगी। इसके लिए 12.21 करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया है। विलायती कीकर पर्यावरण को लाभ से ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसे लेकर दैनिक जागरण भी समय-समय पर विशेष समाचार अभियान चलाता रहा है। दु:खद यह है कि इसे खत्म करने की दिशा में कभी सोचा ही नहीं गया। कभी कुतर्क दिया गया कि यह मजदूरों का ईंधन बनता है तो कभी इसे बंजर भूमि को हरा भरा बनाने का माध्यम बताया गया। इसे हटाना जरूरी है।
दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार ने इस दिशा में कदम आगे बढ़ाया है तो इस पर गंभीरता से काम होना चाहिए और चरणबद्ध तरीके से पूरी दिल्ली को इससे मुक्ति दिलाई जानी चाहिए।
ईश्वर सिंह (प्रधान मुख्य वन संरक्षक, दिल्ली सरकार) का कहना है कि हम जल्द ही सेंट्रल रिज से विलायती कीकर हटाने की शुरुआत करेंगे। यहां बायो डायवर्सिटी पार्क की तर्ज पर छोटे-छोटे तालाब भी बनाए जाएंगे। कीकर के पेड़ों को जड़ से नहीं काटकर ऊपर से काटा जाएगा।
यह भी जानें
- बबूल या कीकर आज लोगों के लिए सिरदर्द बन चुका है। हालांकि आयुर्वेद में इसे औषधीय गुणों के चलते बेहतर लाभकारी बताया गया है, लेकिन पर्यावरण और प्रकृति के लिए यही बबूल घातक बनता जा रहा है।
- यह (वानस्पतिक नाम : आकास्या नीलोतिका) अकैसिया प्रजाति का एक वृक्ष है। कभी बबूल हरियाली बढ़ाने के लिए लगाया गया था, लेकिन आज यह नासूर बन गया है। यह जैव विविधिता के लिए बड़ा खतरा है। साथ ही पर्यावरण पर भी बोझ बन गया है। यह देशी पेड़-पौधों की सैकड़ों प्रजातियों को बर्बाद कर चुका है। जिन क्षेत्रों में जल संकट गहरा सकता है वहा वायु प्रदूषण भी बढ़ जाएगा।
- यह पेड़ दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरीबियाई देशों में पाया जाता था। हरियाली के लिए इसे 1870 में इसे भारत लाया गया था। यह एक ऐसी प्रजाति का पेड़ है, जो परिस्थितियों का हर हालत में फायदा उठाकर अपने आपको जीवित रखता है। पर्यावरण के साथ अर्थव्यवस्था, लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानि का कारण बन सकता है।
- यह वृक्ष सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ता है और इसका इस्तेमाल लकड़ी के रूप में किया जा सकता है। यह पेड़ जमीन से बेहद ज्यादा मात्रा में पानी को अवशोषित करता है। जिसके चलते उस इलाके के पानी के तालाब तक सूख जाते हैं। अगर भूजल का स्तर बिल्कुल समाप्त है तो बबूल हवा से नमी को खींच लेता है। जिसके चलते बरसात होने की संभावनाएं भी समाप्त हो जाती हैं।
- कीकर की जड़ मिट्टी के पोषक तत्वों को नष्ट कर सकती है, भूजल को भी काफी हद तक जहरीला कर सकती है। यह पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पैदा करता है और केवल कार्बन डाइऑक्साइड का उर्त्सजन करता है। इसकी पत्तियां, बीज या पेड़ का मनुष्य और जानवरों के लिए कोई उपयोग नहीं हैं।
लोगों को इन आक्रामक पेड़ों के खतरों को अभी तक नहीं पता है। लोगों को इस पेड़ के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। अगर समय रहते इस पेड़ के जंगल को समाप्त नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब ये पेड़ बहुत बड़े पर्यावरणीय संकट का कारण बन जाएंगे।
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