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गैर मुल्क की इस 'हसीना' को चाहता है भारत का हर शख्स, दिल्ली से है गहरा रिश्ता

शेख हसीना अपने दिल्ली में बिताए दिनों को भूल नहीं सकतीं। वो यहां सन 1975-1981 के दौरान निवार्सित जीवन गुजार रही थीं। इंदिरा गांधी से भी हसीना का करीबी रिश्ता रहा है।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 29 Dec 2018 02:22 PM (IST)
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गैर मुल्क की इस 'हसीना' को चाहता है भारत का हर शख्स, दिल्ली से है गहरा रिश्ता
नई दिल्ली [विवेक शुक्ल]। बांग्लादेश में 30 दिसंबर (रविवार) को संसद के लिए आम चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में अब सारे भारत की चाहत है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद के नेतृत्व वाली 'अवामी लीग पार्टी' फिर से पड़ोसी मुल्क में सत्तासीन हो जाए। बांग्लादेश व भारत की मित्र हैं। उनका और उनके पिता तथा बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान का दिल्ली से अटूट रिश्ता रहा है। शेख मुजीब को आदर से बंग बंधु भी कहा जाता है। शेख हसीना अपने दिल्ली में बिताए दिनों को भूल नहीं सकतीं। वो यहां सन 1975-1981 के दौरान निवार्सित जीवन गुजार रही थीं। उनके साथ उनके पति डॉ.एमए वाजेद मियां और दोनों भी थे। वो यहां पंडारा पार्क में रहीं। इधर शिफ्ट करने से पहले कुछ सप्ताह तक 56 लाजपत नगर-पार्ट तीन में भी रही थीं। उधर बाद में कई सालों तक बांग्लादेश का हाई कमीशन काम करता रहा। अब हाई कमीशन चाणक्यपुरी में ही है।

प्रणब मुखर्जी की पत्नी की सबसे करीबी सहेली थीं शेख हसीना
ये उन दिनों की बातें हैं, जब शेख हसीना के दोनों बच्चे बेटा साजिद वाजेद जॉय और पुत्री सईमा हुसैन पुतुल बहुत छोटे थे। जॉय को दार्जिलिंग के सेंटपॉल स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया था। पर पुत्री शेख हसीना के साथ ही रहीं। उस कठिन दौर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पत्नी शुभ्रा मुखर्जी सबसे करीबी सहेली थीं शेख हसीना की। दोनों परिवारों का मिलना-जुलना होता। शेख हसीना 2010 में जब प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली आईं तो खासतौर पर वे शुभ्रा जी से मिली थीं। अगस्त, 2015 में शुभ्रा जी का निधन हुआ तो हसीना ढाका से उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए दिल्ली आईं थीं अपनी पुत्री पुतुल के साथ।

इमरजेंसी के दौर में यहां रहीं हसीना
ढाका के धनमंडी स्थित आवास में शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का 15 अगस्त,1975 को कत्ल कर दिया गया था। उस भयावह कत्लेआम के समय शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं। इसलिए उन सबकी जान बच गई थीं। पति न्यूक्लियरसाइंटिस्ट थे। वे जर्मनी में ही कार्यरत थे। शेख हसीना को उस कत्लेआम ने तोड़ कर रख दिया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण देने का फैसला लिया था। इंदिरा गांधी और शेख मुजीब-उर-रहमान के निजी संबंध थे। इसलिए उस हत्याकांड के बाद उनका बांग्लादेश वापस जाने का सवाल ही नहीं था।

शेख हसीना को पंडारा पार्क के सी-ब्लॉक में सरकारी आवास मिला, जिसमें ड्राइंग रूम के साथ-साथ तीन बैड रूम थे। सेवकों के लिए अलग से कमरे थे। शेख हसीना राजधानी में कमोबेश गैर-राजनीतिक ही रहीं। वे जब यहां आईं तब भारत में इमरजेंसी लगी हुई थी। संभव है कि इस कारण से उन्हें बहुत से लोगों से मुलाकात करने की इजाजत नहीं थी। वे खुद भी कम ही लोगों से मिलती थीं।

 ‘हू किल्ड मुजीब’ मुजीब की हत्या पर लिखी सबसे प्रमाणिक किताब
शेख हसीना के साथ उनके पिता के एक करीबी सहयोगी एएल खातिब भी रहने लगे थे। उन्होंने ही मुजीब की हत्या पर एक अहम पुस्तक- ‘हू किल्ड मुजीब’ लिखी थी। वे पेशे से पत्रकार थे। इसे विकास पब्लिकेशन ने छापा था। इसे मुजीब की हत्या पर लिखी सबसे प्रमाणिक किताब माना जाता है। उस दौरान दिल्ली में उनसे उनकी पार्टी के नेता, बुद्धीजीवी, लेखक, कवि भी मिलने आते थे। उस दौर में शेख हसीना से कोई मिलने जाता था, तब उनके पति भी वहां आ जाते थे। वे भारत के एटोमिकएनर्जी कमीशन से जुड़ गए थे। यहां पर शोध कर रहे थे। वे बेहद कुलीन इंसान थे।

पंडारा पार्क पर हैं ढेरों यादें
शेख हसीना का राजधानी दिल्ली में आना-जाना लगा रहता है। वे जब भी दिल्ली आने लगती हैं तो उम्मीद बंधती है कि वो अपने पंडारा पार्क वाले पुराने आवास में अवश्य जाएंगी गुजरे दौर की यादों को ताजा करने के लिए। इस बीच, कुछ साल पहले राजधानी की पार्क स्ट्रीट सड़क का नाम बदलकर बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर रख दिया गया है। वे बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन में केंद्रीय शख्सियत रहे हैं और वे बांग्लादेश के दो बार राष्ट्रपति रहे हैं। उन्होंने कोलकाता के मौलाना आजाद कॉलेज से कानून की पढ़ाई की थी और वहां पर छात्र राजनीति में शामिल हुए थे।

(लेखक साहित्यकार भी हैं) 

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