दिल्ली कांग्रेस को एकजुट करने की राह कठिन, अध्यक्ष के बाद प्रभारी की भी अनदेखी
पिछले सप्ताह कांग्रेस पार्टी ने सरकारी कर्मचारियों का रुका हुआ वेतन दिलाने के लिए मुख्यमंत्री निवास तक न्याय मार्च निकाला तो उसमें भी कई नेता नहीं आए।
By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 10 Aug 2020 09:48 AM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली कांग्रेस को एकजुट करना टेढ़ी खीर होता जा रहा है। पार्टी नेता प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी को तो गंभीरता से ले ही नहीं रहे थे, अब दिल्ली प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल की भी अनदेखी करने लगे हैं। आलम यह है कि उनके आह्वान पर भी वरिष्ठ कांग्रेसी घर से नहीं निकल रहे हैं। शुक्रवार को पार्टी ने सरकारी कर्मचारियों का रुका हुआ वेतन दिलाने के लिए मुख्यमंत्री निवास तक न्याय मार्च निकाला तो उसमें भी कई नेता नहीं आए। कोई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नहीं, कोई पूर्व सांसद नहीं, पूर्व मंत्री भी केवल एक और पूर्व विधायक भी सिर्फ छह। चंद नेताओं और जिलाध्यक्षों ने ही मौके पर पहुंच कर नारेबाजी की और मुख्यमंत्री कार्यालय में ज्ञापन सौंप कर चले गए। कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि संगठन की मजबूती को लेकर न अध्यक्ष गंभीर हैं, न ही प्रभारी। ऐसे में घर से निकलकर करें भी तो क्या करें।
प्रशिक्षण के नाम पर दिया उपदेश दिल्ली कांग्रेस हर स्तर पर बिखरी पड़ी है, कार्यकारिणी का गठन तक नहीं हो पा रहा है। बावजूद इसके जिला और ब्लॉक अध्यक्षों को राष्ट्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर के मुद्दों पर उपदेश दिया जा रहा है। रविवार को प्रदेश पार्टी कार्यालय में इसे लेकर बाकायदा दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आरंभ हुआ। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव व ट्रे¨नग इंचार्ज सचिन राव ने करावल नगर, बाबरपुर, कृष्णा नगर, पटपड़गंज, किराड़ी और रोहिणी के जिला और ब्लॉक अध्यक्षों को बताया कि किस स्तर पर कैसे मुद्दे उठाए जाएं। लेकिन, कई के लिए यह बोरियत भरे सत्र से अधिक कुछ नहीं था। अध्यक्षीय वक्तव्य पर भी बहुत से लोग झपकी लेते नजर आए। शिविर में पहुंचे ज्यादातर नेताओं का तर्क था कि पहले नेताओं-कार्यकर्ताओं को आपस में जोड़िए, उसके बाद ही तो जनता के बीच पैठ बनेगी।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- यह हर कोई मानता है कि 15 साल के कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में विकास हुआ था। 15 साल तक मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने हर क्षेत्र में दिल्ली का अभूतपूर्व विकास किया था।
- दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में दिल्ली में कांग्रेस गठबंधन की करारी हार हुई थी। जहां कांग्रेस को मिले मतों का फीसद पिछले साल की तुलना में कम हुआ था, वहीं, 70 में 67 सीटों पर जमानत भी जब्त हो गई थी। इस बार भी कांग्रेस शून्य पर सिमट गई।
- दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चीफ सुभाष चोपड़ा अपनी बेटी तो चुनाव प्रभारी कीर्ति आजाद अपनी पत्नी तक को नहीं जितवा सके।