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भाषा का सरलीकरण हो, तुष्टिकरण नहीं: कवि प्रसून जोशी

भाषा को अपनी सूक्ष्म अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने पर शब्द निकलते हैं जिसमें संदेश होता है। संवादी के मंच पर प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि भाषा का सरलीकरण हो तुष्टिकरण न हो। उन्होंने कहा कि लोक भाषा की आड़ में भौंड़ापन नहीं चल सकता। इसके साथ ही उन्होंने युवाओं को इंटरनेट मीडिया से अत्यधिक सामग्री को आत्मसात करने से बचने की भी सलाह दी।

By ajay rai Edited By: Geetarjun Updated: Sat, 14 Sep 2024 05:38 PM (IST)
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प्रो. रवि प्रकाश टेकचंद्राणी के संवाद पर बोलते गीतकार और कवि प्रसून जोशी।

अजय राय, नई दिल्ली। भाषा को अपनी सूक्ष्म अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने पर शब्द निकलते हैं, जिसमें संदेश होता है। संवादी के मंच पर प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि भाषा का सरलीकरण हो, तुष्टिकरण न हो। उन्होंने कहा कि लोक भाषा की आड़ में भौंड़ापन नहीं चल सकता। इसके साथ ही उन्होंने युवाओं को इंटरनेट मीडिया से अत्यधिक सामग्री को आत्मसात करने से बचने की भी सलाह दी।

डीयू प्रांगण में कान्फ्रेंस सेंटर स्थित संवादी के मंच पर अपनी चिरपरिचित छवि के साथ पहुंचे प्रसून जोशी का स्वागत जोरदार तालियों के साथ हुआ और उन पर एक संक्षिप्त वीडियो दिखाकर दर्शकों को रूबरू कराया गया। बड़ी संख्या में युवाओं को देखकर उत्साहित शब्दों के जादूगर प्रसून जोशी ने राधा कृष्ण के प्रेम को छंद में अभिव्यक्त कर सबको मुग्ध कर दिया।

उन्होंने कहा कि प्रेम मां, बहन सबसे हो सकता है और कृष्ण हर रूप में मौजूद हैं। इस संवाद में उन्होंने जीवन में प्रेम को अपने शब्दों में घोलकर माहौल खुशनुमा बना दिया। इसके साथ ही युवाओं को सलाह भी दिया कि दिन भर रील में खोकर सामग्री की खुराक की अधिकता से ज्यादा जरूरी है कि मस्तिष्क को जितनी जरूरत है उतनी ही खुराक दी जाए।

गीतकार जोशी ने भारतीय सिनेमा और ओटीटी में संवाद या गानों में गाली के इस्तेमाल पर दोटूक कहा कि भाव को व्यक्त करने के लिए मेहनत करनी होगी, आलसी लोग इस तरह का हल्का काम करते हैं। अच्छी चीज के लिए कदम बढ़ाना होगा। लोक भाषा की आड़ में भौंड़ापन बिल्कुल नहीं चलेगा।

उन्होंने बताया कि कई बार उनके लिखे गानों के शब्दों को सरल करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उनके लिखे गाने फिर भी लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे में भाषा का सरलीकरण हो सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल तुष्टिकरण के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

जोशी ने भारत की संस्कृति को लेकर साकारात्मक तरीके से सोचने और उसपर गर्व करने का आह्वान किया। इस पर उन्होंने अपनी कविता भी सुनाई...मैं रहूं या न रहूं, यह देश रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं को जामवंत की जरूरत है, जो उन्हें उनकी शक्ति बता सके। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय नवाचार को जुगाड़ कहने वालों को संदेश दिया कि इसे जुगाड़ कह कर छोटा न बनाएं।

इसके साथ ही उन्होंने अपने गृह राज्य उत्तराखंड से अपने जु़ड़ाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि उनके लिखे गानों में उनके प्रदेश में उपयोग में लाए जाने वाले और प्रकृति को दर्शाने वाले शब्द उपयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी संस्कृति से जुड़े रहना अच्छा लगता है।

अपने गीतों में सार्थक शब्दों के चयन और मां के प्रति समर्पण को उन्होंने मंच से भी अभिव्यक्त किया। तारे जमीं पर का गीत...तुझे सब है पता है न मां और रंग दे बसंती का गीत...लुका छिपी बहुत हुई गाने को गाकर प्रसून जोशी ने सबको भावुक कर दिया।

गीत के बोल सुनाते वक्त खुद प्रसून जोशी रो पड़े। थोड़ी देर के लिए हर कोई उनके साथ खो सा गया। इसके साथ ही दर्शकों के बीच मौजूद पांच श्रेष्ठ युवाओं को उनकी कविता के लिए दैनिक जागरण की तरफ से सम्मानित भी किया।

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