Delhi Air Pollution: वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए चर्चा कम, ठोस उपाय ज्यादा जरूरी
Delhi Air Pollution दिल्ली में मौजूद अन्य ताप बिजली घर लगातार कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं और प्रदूषण फैला रहे हैं। प्रदूषण के कारण लोगों का इम घुटता है जबकि राजनेता अपनी जिम्मेदारी से भागने के रास्ते खोज करते नजर आते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Mon, 12 Dec 2022 12:24 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। प्रति वर्ष 20 अक्टूबर के आसपास दिल्ली को एक झटका लगता है और चेतावनियों का दौर शुरू हो जाता है। यह वह समय है जब वायु प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर होता है। इसके साथ ही शुरू हो जाती है एक-दूसरे को जिम्मेदार बताने और आरोप-प्रत्यारोप की होड़। प्रदूषण के कारण लोगों का इम घुटता है जबकि राजनेता अपनी जिम्मेदारी से भागने के रास्ते खोज करते नजर आते हैं।
प्रदूषण के लिए दूसरी सरकारें भी जिम्मेदार
पिछले कुछ वर्षों से इस तरह के मामलों में दो तरह के कदम उठाए जाते हैं। पहला, दिल्ली सरकार ने एक के बाद एक अध्ययन कराए ताकि प्रदूषण की “असली” वजह का पता लगाया जा सके और जरूरी कदम उठाए जा सकें। दूसरा, उसने इस बात पर जोर दिया कि शहर में प्रदूषण के “बाहरी” कारक भी हैं यानी दूसरी सरकारें इसके लिए जिम्मेदार हैं।
जाहिर है वे “दूसरी” सरकारें तत्काल इस मामले में इनकार कर देती हैं और इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है। हकीकत यह है कि हमें प्रदूषण के स्रोत के बारे में पूरी जानकारी है, भले ही हर क्षेत्र का इसमें योगदान अलग-अलग मौसम में घटता-बढ़ता रहता है।वह है वाहनों, कारखानों, डीजल जेनरेटरों, बिजली संयंत्रों और घरों से उत्पन्न होने वाला उत्सर्जन, सड़क की धूल, भवन निर्माण आदि से होने वाला प्रदूषण आदि।
यह याद रहे कि धूल प्रदूषक नहीं है बल्कि यह जहर है क्योंकि इसमें वाहनों तथा अन्य प्रकार के दहन से उत्पन्न विषाक्त कण चिपके रहते हैं। ऐसे में हर जाड़े में सबसे पहला प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए बल्कि जाड़ों की शुरुआत के पहले हर महीने यह पूछा जाना चाहिए कि इस दहन से संबंधित उत्सर्जन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और क्या कदम उठाने की आवश्यक है।
खेत में फसल अवशेष जलाते हैं किसान
दूसरी बात, इसमें दो राय नहीं है कि जब किसान अपने खेतों को अगले मौसम की बुआई के लिए साफ करते हैं तो वे फसल अवशेषों में जो आग लगाते हैं, वह हवा के बहाव के साथ प्रदूषक तत्त्वों को दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में भी लाते हैं।अगर यह तब होता है जब मौसम प्रतिकूल हो तो प्रदूषण का स्तर बढ़ता है और हवा अत्यधिक घातक हो जाती है। इसके बाद बात आती है उन उद्योगों की जिन्हें दिल्ली से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया था लेकिन जो अभी भी कोयले अथवा खराब माने जाने वाले ईंधन का इस्तेमाल कर रहे हैं।ये उद्योग अब दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में स्थापित हैं और इनके कारण भी प्रदूषण में इजाफा हो रहा है। लब्बोलुआब यह कि वायु प्रदूषण की कोई सीमा नहीं जानता है, इसलिए एक-दूसरे पर अंगुली उठाने की कोशिशों सेकोई सार्थक प्रगति होती नहीं दिखती है। सार्थक प्रयासों की चर्चा के क्रम में लाजिमी तौर पर यह बात सामने आएगी कि उद्योगों और बिजली संयंत्रों में कोयले का इस्तेमाल बतौर ईंधन किया जाता है।
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