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राजनिवास Vs दिल्ली सरकार: LG की गृह मंत्रालय को चिट्ठी- अदालतों को गुमराह कर रही सरकार; AAP का आया करारा जवाब

राजनिवास ने दिल्ली सरकार पर अदालतों को गुमराह करने और झूठी दलीलों हलफनामों के जरिये उपराज्यपाल कार्यालय को बदनाम करने का बड़ा आरोप लगाया है। एलजी के प्रधान सचिव की ओर से केंद्रीय गृह सचिव को लिखे गए पत्र पर दिल्ली सरकार ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सरकार ने कहा सरकार और केंद्रीय प्रशासन के बीच बढ़ते तनाव के चलते उसे अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

By sanjeev Gupta Edited By: Pooja Tripathi Updated: Fri, 05 Apr 2024 10:33 AM (IST)
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एलजी और दिल्ली सरकार फिर आमने-सामने। फाइल फोटो जागरण

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनिवास ने दिल्ली सरकार पर अदालतों को गुमराह करने और झूठी दलीलों एवं हलफनामे के जरिये उपराज्यपाल कार्यालय को बदनाम करने का बड़ा आरोप लगाया है।

एलजी वीके सक्सेना के प्रधान सचिव आशीष कुंद्रा ने केन्द्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को लिखे गए छह पेज के पत्र में ऐसे कई मामलों का जिक्र किया गया है जिनमें दिल्ली सरकार के वकीलों द्वारा कोर्ट को गुमराह किया गया। मीडिया में भी झूठी एवं गलत जानकारियां दी गईं।

आलम यह रहा कि अदालतों में विभिन्न मामलों में दिल्ली सरकार बनाम राजनिवास एक प्रचलित मानदंड बन गया। इस पत्र का उद्देश्य गृह मंत्रालय को दिल्ली सरकार द्वारा विभिन्न अदालतों में अनावश्यक मुकदमेबाजी को लेकर पूरे घटनाक्रम से अवगत कराना है।

अदालतों में चल रहे मामलों का भी चिट्ठी में है जिक्र

कुंद्रा ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे कई मामलों का जिक्र किया और कहा कि इससे न केवल न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ पड़ा, बल्कि 'अपमानजनक' मुकदमेबाजी पर करोड़ों रुपये खर्च हुए और सरकारी अधिकारियों का समय बर्बाद हुआ।

पत्र में कहा गया है, अदालतों को गुमराह करने के अलावा, एक भ्रमित करने वाली विकृत कहानी बनाने का प्रयास किया गया, जो जनता के मन में उपराज्यपाल की छवि को खराब करता है।

राजनिवास ने कहा कि जल मंत्री आतिशी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर उपराज्यपाल को वित्त विभाग से जल बोर्ड को फंड जारी करने का निर्देश देने की मांग की।

एलजी के बारे में नकारात्मक छवि बनाने का था इरादा

अधिकारी ने कहा कि यह मामला एक 'स्मोकस्क्रीन की तरह था, जिसका उद्देश्य एलजी के बारे में नकारात्मक छवि बनाना था, क्योंकि वित्त और जल दोनों विषयों को स्थानांतरित कर दिया गया था।

अधिकारी ने कहा, 'उपराज्यपाल की उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में कोई भूमिका नहीं है और कोई भी फाइल उनके माध्यम से नहीं भेजी जाती है।' उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की पहली ही तारीख पर एलजी को नोटिस जारी नहीं करने का फैसला किया।

बाल संरक्षण आयोग का भी उठाया मुद्दा

दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा दायर एक याचिका का जिक्र करते हुए कि उसके फंड को एलजी ने रोक दिया था, अधिकारी ने कहा कि याचिकाकर्ता को 10 सुनवाई के बाद इसे वापस लेना पड़ा जब एक विशेष वकील ने दावों का जोरदार विरोध किया।

अधिकारी ने पत्र में उल्लेख किया है कि दिल्ली सरकार के स्थायी वकीलों ने अब के कार्यान्वयन के लिए राजधानी में अनुरूप और गैर-अनुरूप वार्डों की पहचान और वर्गीकरण से संबंधित एक मामले में एलजी और उनके कार्यालय को बदनाम करते हुए 'स्पष्ट रूप से गलत और भ्रामक बयान' दिए हैं। इसी तरह उत्पाद शुल्क नीति भी रद कर दी गई।

फाइलों की प्राप्ति में देरी की भी शिकायत की

कुंद्रा ने दावा किया कि अदालत द्वारा नियुक्त समिति ने अगस्त 2022 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी और इसकी फाइल राजनिवास को जनवरी 2024 में प्राप्त हुई। जबकि सरकारी वकीलों ने यह दावा करके हाईकोर्ट को गुमराह किया कि फाइल इतने समय तक एलजी के पास लंबित थी।

कुंद्रा ने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें 'फरिश्ते' योजना को रोकने के लिए भ्ज्ञी एलजी को जिम्मेदार ठहराया गया और इस मुद्दे को मीडिया में एक कथित 'कानूनी झगड़े' के रूप में 'खेला' गया।

अधिकारी ने कहा, ...यह फिर से मुद्दे को उलझाने और 'हस्तांतरित विषय' की जिम्मेदारी एलजी पर डालकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का एक प्रयास था। जबकि न तो यह स्कीम और न ही भुगतान रोकने में एलजी की कोई भूमिका रही है।

अदालत के प्रस्तावों को भी रोकने का किया दावा

एलजी के प्रधान सचिव ने कहा कि सक्सेना ने दिल्ली सरकार के एनसीटी अधिनियम, 1993 के ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स के संबंधित खंड को लागू किया। उन्होंने हाईकोर्ट और जिला अदालतों में न्यायिक बुनियादी ढांचे के उन्नयन से संबंधित प्रस्तावों से संबंधित फाइलें मांगीं।

दिल्ली के मंत्री ने भी प्रस्तावों को मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा कि परियोजनाओं को 2019 में हाईकोर्ट द्वारा पहले ही मंजूरी दे दी गई थी और सरकार के पास लंबित थीं।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रस्तावों को इतने लंबे समय तक लंबित रखने के लिए दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी।

एलजी के सचिव के खत पर दिल्ली सरकार ने दी कड़ी प्रतिक्रिया

एलजी के प्रधान सचिव की ओर से केंद्रीय गृह सचिव को लिखे गए पत्र पर दिल्ली सरकार ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। आप सरकार का कहना है कि सरकार और केंद्रीय प्रशासन के बीच बढ़ते तनाव के चलते उसे अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे में सरकार का कहना है कि देश की अदालतें ही अंतिम विकल्प हैं क्योंकि अधिकारी मंत्रियों के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं और एलजी भी ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अपेक्षित कार्रवाई नहीं करते हैं।

सरकार का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली की निर्वाचित सरकार को 'सेवाएं' विभाग आवंटित करने के बावजूद, केंद्र सरकार ने जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम के माध्यम से शीर्ष अदालत के फैसलों की अवहेलना करते हुए इन शक्तियों को खत्म कर दिया।

सरकार ने ये दावे भी किए

सरकार का कहना है कि केंद्र द्वारा नियुक्त अधिकारी मंत्रियों के निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं और एलजी भी मंत्रियों की आकांक्षाओं की उपेक्षा कर रहे हैं। नौकरशाही के गतिरोध के चलते जलबोर्ड के फंड, फरिश्ते योजना, बस मार्शल और स्मॉग टावर सहित महत्वपूर्ण योजनाओं को रोक दिया गया है।

सरकार का कहना है कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ तौर पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा एक सर्वसम्मत फैसले में, 'सेवाओं' का प्रबंधन करने और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के दिन-प्रतिदिन के मामलों की देखरेख करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकार की पुष्टि की है।

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