JEE-NEET Exam 2020: परीक्षा को लेेकर केजरीवाल के फैसले को एलजी ने पलटा, फिर उभरे मतभेद
नीट-जेईई परीक्षा को स्थगित करने को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच जारी घमासान के दौरान उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूराे। कोरोना महामारी के दौरान नीट-जेईई परीक्षा को स्थगित करने को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच जारी घमासान के दौरान उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि देशभर में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं ऐसे में परीक्षा को रोक देना चाहिए। वहीं इससे संबंधित प्रस्ताव दिल्ली सरकार ने तैयार किया था। जिसमें कहा गया था कि नीट-जेईई की परीक्षा को रोक दिया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को राजस्व मंत्री ने स्वीकार कर लिया था। जिसके बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी मुहर लगा दी थी। मगर जब यह प्रस्ताव उपराज्यपाल अनिल बैजल के पास भेजा गया तो उन्हाेंने इसे ठुकरा दिया। दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (डीडीएमए) के उपराज्यपाल चेयरमैन भी हैं। उन्हें इस हैसियत से इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए परीक्षा कराने की अनुमति दे दी।
दिल्ली सरकार से जुडे़ सूत्रों का कहना है कि राजस्व मंत्री कैलाश गहलोत ने छात्रों के हित में परीक्षा न कराने संबंधित फाइल को आगे बढ़ाया था। इसका समर्थन करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने परीक्षा स्थगित करने के प्रस्ताव का समर्थन किया था। लेकिन, अनिल बैजल ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव और बढ़ सकती है। मालूम हो कि नीट-जेईई परीक्षा सितंबर माह में ही होनी है।
बता दें कि देशभर में बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने छात्रों केे हित में सितंबर में होने वाली नीट-जेईई की परीक्षा रद्द करने को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को पत्र लिखा था। सिसोदिया ने पत्र में लिखा था कि केंद्र सरकार जेईई-नीट की परीक्षा के नाम पर लाखों छात्रों की ज़िंदगी से खेल रही है। उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया था कि पूरे देश में ये दोनो परीक्षाएं तुरंत रद्द करें और इस साल एडमिशन की वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने सुझाव दिया था कि इस अभूतपूर्व संकट के समय में अभूतपूर्व कदम से ही समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने दर्क दिया था कि दुनियाभर में शिक्षण संस्थान एडमिशन के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। हम भारत में क्यों नहीं कर सकते? बच्चोंकी ज़िंदगी प्रवेश परीक्षा के नाम पर दांव पर लगाना कहां की समझदारी है?
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