चुनावी महासमर: विकास की ऊंची छलांग लगाना चाहता है एनसीआर, दिल्ली के पास के शहरों में काफी बदलाव की जरूरत
नई दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) न सिर्फ यहां रहने वालों बल्कि पूरे देश की आकांक्षाओं का क्षेत्र है। देश के किसी दूरदराज के क्षेत्र जिले में कोई रोजगार के लिए छटपटाता है तो उसे एनसीआर याद आता है और वो कई सौ किमी की यात्रा कर यहां पहुंच जाता है। राजधानी का दिल्ली के साथ लगते नोएडा गाजियाबाद गुरुग्राम फरीदाबाद सोनीपत जैसे शहरों में जिस तरह विस्तार हुआ है।
सौरभ श्रीवास्तव, नई दिल्लीl नई दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) न सिर्फ यहां रहने वालों, बल्कि पूरे देश की आकांक्षाओं का क्षेत्र है। देश के किसी दूरदराज के क्षेत्र जिले में कोई रोजगार के लिए छटपटाता है तो उसे एनसीआर याद आता है और वो कई सौ किमी की यात्रा कर यहां पहुंच जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी का दिल्ली के साथ लगते नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत जैसे शहरों में जिस तरह विस्तार हुआ है, वह साफ नजर आता है। नौकरी या कारोबार करने वाले हजारों लोग प्रतिदिन इन शहरों से एक-दूसरे शहर में और दिल्ली में इस तरह आते-जाते हैं कि इन शहरों के बीच बनी सीमाएं भी बेमानी हो गई हैं।
यही वजह है कि एनसीआर अब विकास की राह में समग्र रूप से आगे बढ़ना चाहता है। उसकी समस्याएं एक हैं और उसके मुद्दे भी एक हैं। यदि इस क्षेत्र के 13 सांसद एक सोच के साथ एक दिशा में काम करें तो यह क्षेत्र कुछ ही वर्षों में दुनिया के किसी भी विकसित देश की राजधानी के समकक्ष खड़ा हो सकता है।
एनसीआर के भीतर एक शहर से दूसरे शहर जाने में लगने वाला टोल ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की परिकल्पना के विपरीत है। एनसीआर के कई ऐसे क्षेत्र भी हैं, जो राजधानी के बेहद करीब होते हुए भी विकास के मामले में अत्यंत पिछड़े हैं। ये दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम या फरीदाबाद जैसे शहरों से मेट्रो इत्यादि से सीधे जुड़ भी नहीं सके हैं।
इन क्षेत्रों को भी विकास की दौड़ में आगे लाने के लिए इन्हें रिंग रेल से जोड़ना एक बेहतर विकल्प हो सकता है, जिसका ढांचा तैयार है, सिर्फ पटरी पर फिर से लाने की आवश्यकता है। मेट्रो के चौथे चरण की परियोजनाएं पिछड़ गई हैं तो पानीपत और अलवर तक की रैपिडेक्स परियोजनाएं शुरू ही नहीं हो सकी हैं।
दिल्ली समेत पूरा एनसीआर गंभीर पेयजल संकट के करीब पहुंच चुका है। भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है और पानी के स्रोत सीमित हो चुके हैं। वहीं, अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन व अनधिकृत निर्माण वन क्षेत्र की सुरक्षा के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। एनसीआर के लोग सुबह होते ही जिस सबसे बड़ी परेशानी से जूझते हैं, वो है यातायात जाम।
अपने घर से निकलकर काम पर जाना हो या घर से पास के मेट्रो स्टेशन तक भी पहुंचना हो, सबसे पहले उनका वास्ता यातायात जाम से पड़ता है। आधे-एक घंटे का जाम लगना तो यहां सामान्य बात है। वायु प्रदूषण की स्थिति यह है कि यदि पेरिस से तुलना की जाए तो दिल्ली का एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) सामान्यतया दस गुना अधिक ही रहता है।
एनसीआर के शहरों से दिल्ली में प्रवेश करने पर दूर से ही कूड़े के पहाड़ नजर आते हैं, जो क्षेत्र में स्वच्छता की बदहाल स्थिति का जीता जागता उदाहरण हैं। प्रदूषित यमुना की दुर्दशा देखकर इसके पास से गुजरने वाले प्रतिदिन निराश होते हैं कि यमुना इतने सालों से कराह रही है और उसकी तकलीफ देखने वाला कोई नहीं है।
एनसीआर में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। सड़कों पर होने वाला अपराध हो या साइबर क्राइम यहां के लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हैं। एनसीआर में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं विश्वस्तरीय होनी चाहिए। यहां अच्छे पर्यटन स्थलों का विकास किया जाना चाहिए।
बड़े उद्योग होने चाहिए, इसके लिए आवश्यक है कि उद्यमियों को उनके अनुकूल माहौल मिले। उद्योग और कारोबार में प्रगति होगी और महिलाओं की सहभागिता बढ़ेगी तो एनसीआर की प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी और यह समृद्ध भी नजर आएगा।
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