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दिल्ली में अनंगपाल तोमर ने 27 मंदिरों के साथ किया था अनंगताल का निर्माण

अनंग जो देहरहित हो...जिसके शरीर का आकार न हो। लेकिन इस अनंग ताल का तो आकार भी है सरोवर की ऐतिहासिकता भी दिल्ली के सामयिक ही है। फिर भी वक्त के थपेड़ों में इसकी अनदेखी होती रही लेकिन हर वक्त गुजरा है।

By Pradeep ChauhanEdited By: Updated: Fri, 06 May 2022 04:02 PM (IST)
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लौह स्तंभ 1052 ई.में दिल्ली लाया गया था, ऐसा उस पर अंकित लेख से ही स्पष्ट होता है ।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। इस ताल को दिल्ली के प्रारंभिक कालखंड का प्रतीक माना जाता है। इतिहास के पन्नों को पलटने पर महरौली स्थित लौह स्तंभ शिलालेख से जानकारी मिलती है कि अनंग पाल द्वितीय ने दिल्ली को बसाया और लालकोट को वर्ष 1052-1060 के बीच बनवाया। अंग्रेजी इतिहासकार ए कनिंघम के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) के समय अलाई मीनार के निर्माण के लिए पानी अनंगताल से ही मंगवाया जाता था। इससे एक और तथ्य जुड़ता नजर आता है कि परवर्ती शासकों ने भी महरौली में और उसके आसपास अनगढ़े पत्थरों से अनेक सीढ़ीयुक्त बावलियां बनवाईं।

इतिहासकार उपिंदर सिंह की किताब 'दिल्ली : प्राचीन इतिहास के अनुसार अनंगताल के ऊपरी हिस्से से आंशिक रूप से दक्षिण-पश्चिमी कोना ही दिखता है। इस खुले भाग को देखने से लगता है कि यहां किसी प्रकार की सीढ़ीनुमा सरंचना थी या घेरने वाली दीवार, जो कुंड के चौड़े और लंबे चबूतरे से जुड़ी थी। इस संरचना से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके मूल प्रारूप में अनंगपाल द्वितीय ने कालांतर परिवर्तन किया था। वही अनंगपाल द्वितीय जिन्हें अनंगपाल तोमर के नाम से जाना जाता और तोमर वंशी थे। इन्हें ही ढिल्लिका पुरी के संस्थापक जो अंतत: दिल्ली हुई माना जाता है।

27 मंदिरों के साथ हुआ था निर्माण : पुरातत्वविदों के अनुसार अनंगताल कुतुब परिसर में स्थित विष्णु गरुड़ ध्वज स्तंभ (लौह स्तंभ) तथा महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय द्वारा निर्मित 27 मंदिरों के साथ ही निर्मित विराट सरोवर था। जिसका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा डा.बीआर मणि के निर्देशन में वर्ष 1993-95 में इस स्थल का उत्खनन कार्य किया गया था। इसमें अनंगताल की गहराई 13 मीटर और इसकी परिमाप 100 मीटर से अधिक मापी गई। अनंगताल में पानी के स्तर में पहुंचने के लिए बहुत ही सुंदर सीढिय़ां निर्मित की गई थीं।

कालखंड को दर्शाती है यह झील : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डा बीआर मणि कहते हैं कि अनंगताल बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से है। 1992-95 की बात है...हमारा तो पेशा भी इस तरह का है तो जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना स्वाभाविक हो जाता है। इतिहास से जुड़ाव बना ही रहता है। इसी क्रम में मेरी जिज्ञासा अनंगपाल को लेकर थी, तब दिल्ली मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद के नाते सर्वोच्च समिति से अनुमति लेकर यहां खोदाई कराई थी जिसमें तालाब की सीढिय़ां मिलीं।

अनंगपाल के किला लालकोट के महल क्षेत्र के खंडहर जमीन में दबे मिले थे। और भी उस कालखंड को प्रमाणित करने वाली वस्तुएं मिली थीं। अब इस झील की प्यास बुझाने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर इस जगह को एक पहचान दिलाकर यहां पर्यटक आराम से पहुंच सकें इसके लिए सुगम रास्ता भी निर्मित करने की जरूरत है।

विश्व भर में जितने भी देश और राज्य हैं वे अपने को स्थापित करने वालों का सम्मान करते हैं। मगर दिल्ली ऐसा राज्य है जो अपने को स्थापित करने और नाम देने वाले राजा अनंगपाल को अब तक सम्मान नहीं दे सकी। अनंगताल ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर है, यह स्थल हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से भी जोड़ता है। मगर अनंगताल अभी राष्ट्रीय स्मारक नहीं है। बहुत से लोग इससे जुड़ चुके हैं, अभियान को शुरू करने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा कृष्ण गोपाल का मार्गदर्शन रहा है।

  • इस स्थल की कराई गई हैरिटेज वाक में वह लखनऊ से पहुंचे थे, इसे देखकर प्रभावित हुए थे। बाद में अलग अलग तारीखों में केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी और अर्जुन राम मेघवाल भी इस स्थान पर आए। अब इस स्थल को राष्ट्रीय संस्मारक घोषित किए जाने के लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्री किशन रेड्डी ने आदेश जारी किया है। उम्मीद है कि जल्द ही हमें एक गौरवशाली इतिहास वाला स्मारक मिलेगा। तरुण विजय, चेयरमैन, राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण
अनंगताल को लेकर क्या है इतिहास:  तोमर राजवंश के समय उनकी राजधानी का स्थान परिवर्तित होता रहा था । प्रारंभ में वह अनंगपुर में थी। अनंगपाल द्वितीय ने अपनी राजधानी अनंगपुर से स्थानांतरित कर योगिनीपुर और महिपालपुर के बीच स्थित ढिल्लिकापुरी में स्थापित की। यह स्थान वर्तमान में महरौली के पास स्थित है। इस समय से पूर्व ही ढिल्लिका में कुछ मंदिर और भवन निर्मित हो चुके थे ।अपने शासनकाल के दूसरे वर्ष में ही अनंगपाल ने लौह स्तंभ की स्थापान की तथा इसी को आधार बनाकर अनेक निर्माण कार्य करवाए और लालकोट नामक किला बनवाया।

कुव्वत उल इस्लाम के शिलालेख तथा एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मंदिर निर्मित करवाए थे। उन्होंने लौह स्तंभ के निकट ही अनंगपाल नामक सरोवर भी निर्मित करवाया। इस सरोवर से थोड़ी दूर विशाल भवन था, जो लौह स्तंभ को घेरे हुए था। इन सब निर्माणों के चारों ओर लालकोट गढ़ बनवाया गया था। अनंगपाल द्वारा यह सभी निर्माण किस क्रम में किए गए थे, इसके कुछ संकेत प्राप्त होते हैं। लौह स्तंभ 1052 ई.में दिल्ली लाया गया था, ऐसा उस पर अंकित लेख से ही स्पष्ट होता है ।

कनिंघम ने उस लेख को समत दिहालि 1109 अन्गपाल वहि पढ़ा था और अर्थ किया था संवत् 1109 अर्थात 1052 ईस्वी में अनंगपाल ने दिल्ली बसाई । परंतु ÓवहिÓ शब्द बसाने के लिए न होकर वहनÓ करने के लिए प्रयोग किया गया है तथा उस लेख का आश्य है कि सन् 1052 ईस्वी में अनंगपाल द्वारा यह स्तंभ लाया गया। दिहालि का अभिप्राय Óदिल्लीÓ से है। उस समय दिल्ली में विक्रम संवत प्रचलित हो गया था। उसके पूर्व वलभी संवत का प्रयोग किया जाता था।

यह लेख निश्चयत: अनंगपाल द्वितीय ने स्वयं अंकित नहीं कराया था, बल्कि स्तंभ को दिल्ली लेकर आने वाले कारीगर ने उसे अंकित किया था। यह विदित होता है कि सन. 1052 ईस्वी से प्रारंभ होकर यह निर्माण कार्य 1067 ई. तक चलते रहे। गढ़वाल की पोथी के अनुसार संवत 1117 मार्गशीर्ष सुदी दशमी अर्थात सन. 1067 ई. तक मंदिर और भवन बन रहे थे, यह कारीगर के लेख से पूर्णत: स्पष्ट है ।

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