Mahatma Gandhi : हापुड़ में चौधरी रघुवीर नारायण सिंह त्यागी के महल में विश्राम किया था गांधी ने
Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary बात 29 अक्टूबर 1929 की है महात्मा गांधी पहली बार उत्तर प्रदेश में हापुड़ जिले के गांव असौड़ा आए थे।
हापुड़ [मनोज त्यागी]। बात 29 अक्टूबर 1929 की है, महात्मा गांधी पहली बार हापुड़ जिले के गांव असौड़ा आए थे। और चौधरी रघुवीर नारायण सिंह त्यागी के महल में रात्रि विश्राम किया था। जब अगले दिन सुबह में गांधी महल के बाहर बने मंदिर की ओर टहल रहे थे तभी वहां सफाई कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था। उन्होंने सफाई कर्मी से पूछा कि तुम झाड़ू कहां तक लगाते हो? तब उसने कहा कि मंदिर के अंदर भी मैं ही झड़ू लगाता हूं। यह सुनकर महात्मा गांधी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने इस बात का जिक्र अपने अखबार नवजीवन, यंग इंडिया और हरिजन में भी किया। उन्होंने अखबार में लिखा कि 'असहयोग के जमाने में भी तथाकथित अस्पृश्यों के लिए भी मंदिर के दरवाजे खुले हैं। यह जमींदारी में एक अनुकरणीय दृष्टांत है। भारत में हजारों जमींदारियों में हजारों मंदिर हैं। जमींदारों को अपने मंदिरों में अस्पृश्यों के लिए खोलने से कोई नहीं रोक सकता। अन्य तरीकों से भी अस्पृश्यों से स्नेह भाव बढ़ा सकते हैं। जैसे चौधरी साहब ने किया है।
...जब गांधी ने कहा अंग्रेजों की तरह हमारे पास भी एक राजा
गांधी जी ने इस बात का जिक्र कई सभाओं में भी किया था। महात्मा गांधी दो बार असौड़ा गांव पधारे हैं। दूसरी बार वह वर्ष 1930 में असौड़ा रियासत में आए थे। इस दौरान वह कुछ देर ही चौधरी रघुवीर नारायण सिंह के पास रुके थे। महात्मा गांधी चौधरी रघुवीर नारायण सिंह का अपना मित्र मानते थे। महात्मा गांधी ने मुंबई की एक सभा में कहा था कि 'यदि अंग्रेजों के पास तमाम राजा हैं, तो हमारे पास भी एक राजा है चौधरी रघुवीर नारायण सिंह।'
इस बात का उल्लेख भी मुंबई के अखबारों में मिलता है। गांधीवादी आंदोलन पर विशेषज्ञता रखने वाले डॉ विघ्नेश त्यागी बताते हैं कि एक बार उन्होंने चौधरी रघुवीर नारायण सिंह के पुत्र सुखवंश नारायण सिंह का साक्षात्कार किया था।
सुखवंश नारायण सिंह ने बताया था कि गांधी जी अपने समय का सद्उपयोग बहुत अच्छे से करते थे। जब भी गांधी जी मेरठ के आस-पास कहीं भी आते थे, तो वह स्वयं अपनी कार में बैठाकर गांधी जी को सभी जगह लेकर जाते थे। अक्सर ऐसा होता था कि गांधी जी कार की पिछली सीट पर बैठते थे और कुछ देर बाद ही खर्राटे मारने लगते थे। जब मै उन्हें सोते हुए देखता था, तो गाड़ी की रफ्तार धीरे कर लेता था। ताकि उनकी नींद में खलल न पड़े। होता यह था कि जगह-जगह गांधी जी की सभाएं होती थीं और उन्हें आराम के लिए बहुत कम समय मिलता था, तो वह कार (उस समय की मोटर गाड़ी) में ही आराम कर लिया करते थे।
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