राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने के आसार कम हैं लेकिन तेज झटकों से नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए एहतियात बरतने सहित सभी आवासीय-व्यावसायिक भवनों की रेट्रोफिटिंग को अनिवार्य बताया जा रहा है। दरअसल राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र द्वारा हाल ही में एनसीआर भर में जमीन के नीचे भूकंप की दृष्टि से एक अध्ययन किया गया है।
By sanjeev GuptaEdited By: GeetarjunUpdated: Wed, 04 Oct 2023 12:12 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने के आसार कम हैं, लेकिन तेज झटकों से नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए एहतियात बरतने सहित सभी आवासीय-व्यावसायिक भवनों की रेट्रोफिटिंग को अनिवार्य बताया जा रहा है।
दरअसल, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र द्वारा हाल ही में एनसीआर भर में जमीन के नीचे भूकंप की दृष्टि से एक अध्ययन किया गया है। इसमें सामने आया है कि बेशक शहर की आबादी बढ़ने से यहां कंक्रीट का जंगल बड़ा हो गया है, लेकिन जमीन के नीचे पानी अभी भी बह रहा है।
जमीन के अंदर सूखा क्षेत्र होने से भूकंप का ज्यादा खतरा
इसी तरह दिल्ली में बहुत सी जगह पहले जलाशय हुआ करते थे, जिन पर अब इमारतें बन गई हैं। यहां भी जमीन के नीचे पानी मौजूद है। पानी और दलदली जमीन होने से ही बड़े भूकंप का खतरा नहीं है। यदि जमीन के नीचे सूखा क्षेत्र होता तो बड़े भूकंप की संभावना बढ़ जाती।
भवनों का भूकंप रोधी होना जरूरी
इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि बड़े भूकंप का खतरा भले कम हो, लेकिन अगर भवन भूकंप रोधी नहीं होंगे तो हिमाचल क्षेत्र में आने वाले बड़े भूकंपों के झटके भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। खासकर यमुना के आसपास बनी इमारतें सर्वाधिक संवेदनशील हैं।
इमारत की मरम्मत की जरूरत
वजह, उनके नीचे रेतीली मिट्टी है। इसके अलावा जो इमारतें बहुत पुरानी हो गई हैं और जो भूकंपरोधी नहीं हैं, उनको भी रेट्रोफिटिंग की जरूरत है। मतलब, इमारत के मौजूदा ढांचे में ही लोहे की सपोर्ट देना।
एनसीआर में जमीन के अंदर 25 सिस्मोग्राफी केंद्र
इस अध्ययन के बाद यह भी तय हुआ है कि एनसीआर में फिलहाल जमीन के नीचे 25 सिस्मोग्राफी केंद्र हैं। लेकिन अब 15 जीरो जियोडेटिव तकनीक वाले सेंसर उपकरण भी लगाए जाएंगे। इनकी मदद से जमीन के भीतर होने वाली गतिविधियों का और बेहतर ढंग से आकलन करना संभव हो सकेगा। इनकी सहायता से यह भी पता चल सकेगा कि किसी भूकंप से पहले चट्टानों के बीच रगड़ या हलचल की क्या स्थिति थी।
भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन एहतियातन उपायों से इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। एनसीआर सहित उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भूकंप के तेज झटकों के बीच इससे होने वाला नुकसान कम करने के लिए सरकारी स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम और माक ड्रिल का आयोजन किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने भूकंप का जोखिम कम करने को नए भवन डिजाइन कोड भी बनाए हैं, उनका पालन किया जाना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह कि घबराने की कतई जरूरत नहीं है, अपने घर और दफ्तर का भूकंपरोधी होना सुनिश्चित कीजिए, बस। -ओपी मिश्रा, निदेशक, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र।
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दिल्ली में 3 सितंबर को आया जोरदार भूकंप
दोपहर दो बजकर 51 मिनट पर आए भूकंप के झटकों के बाद दहशत में लोग दफ्तर और घरों से बाहर निकल गए और देर तक बाहर ही रहे। ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों को ये झटके काफी तेज लगे। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.2 मापी गई।
इसका अधिकेंद्र नेपाल के दिपायल से 38 किलोमीटर दूर जमीन के अंदर पांच किमी गहराई में था। इसके झटके उत्तर भारत के कई राज्यों में महसूस किए गए। इससे पहले दोपहर दो बजकर 25 मिनट पर भी भूकंप के हल्के झटके महसूस हुए थे। इसका केंद्र भी नेपाल था। उस वक्त इसकी तीव्रता 4.6 मापी गई थी।
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