DU के लॉ फैकल्टी के सिलेबस में मनुस्मृति को नहीं किया जाएगा शामिल, विरोध के बाद वीसी ने खारिज किया प्रस्ताव
दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि छात्रों के सिलेबस में मनुस्मृति को शामिल किए जाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया है। विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए डीयू की अकादमिक परिषद में चर्चा के लिए प्रस्ताव भेजा था। विधि शास्त्र के पेपर में सेमेस्टर एक और छह में बदलाव किया जाना था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि छात्रों को सिलेबस में मनुस्मृति पढ़ाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया गया है। डीयू के वीसी प्रो. योगेश ने वीडियो संदेश जारी कर इसकी जानकारी दी। इससे पहले, मनुस्मृति को सिलेबस में जोड़ने का प्रस्ताव लाया गया था, जिसको लेकर शिक्षकों के एक वर्ग ने इस कदम की तीखी आलोचना की है।
विधि संकाय ने अपने प्रथम और तृतीय वर्ष के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के लिए सिलेबस को संशोधित करने के लिए डीयू की अकादमिक परिषद में चर्चा के लिए प्रस्ताव भेजा था। विधि शास्त्र के पेपर में सेमेस्टर एक और छह में बदलाव किया जाना था। संशोधनों के अनुसार, मनुस्मृति पर दो पाठ - जी एन झा द्वारा मेधातिथि के मनुभाष्य के साथ मनुस्मृति और टी कृष्णासावमी अय्यर द्वारा मनु स्मृति की टिप्पणी 'स्मृतिचंद्रिका' को छात्रों के लिए पेश करने का प्रस्ताव था।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने रिजेक्ट किया लॉ फैकल्टी का प्रस्ताव, नहीं पढ़ाया जाएगा मनुस्मृति। डीयू के वाइस चांसलर प्रो. योगेश सिंह ने दी जानकारी। #DU #Manusmriti #DelhiUniversity #LawFaculty pic.twitter.com/sPtF6uDIrN
— Sunit Suman🇮🇳 (@sksuman538) July 11, 2024
24 जून की बैठक में किया गया था अनुमोदित
संशोधनों का सुझाव देने के निर्णय को विधि संकाय की डीन प्रो. अंजू वली टिकू की अध्यक्षता में संकाय सिलेबस समिति की 24 जून की बैठक में सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। इस कदम पर आपत्ति जताते हुए, सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एसडीटीएफ) ने डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह को पत्र लिखकर आपत्ति जताई थी।उन्होंने कहा है कि मनुस्मृति महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों के प्रति विरोधी दृष्टिकोण का प्रचार करती है। यह प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध है। सिंह को लिखे एक पत्र में, एसडीटीएफ के महासचिव एसएस बरवाल और अध्यक्ष एसके सागर ने कहा कि छात्रों को मनुस्मृति को एक सुझाव के रूप में पढ़ने की सिफारिश करना अत्यधिक आपत्तिजनक है क्योंकि यह पाठ भारत में महिलाओं और हाशिए के समुदायों की प्रगति और शिक्षा के प्रतिकूल है।
एसडीटीएफ ने की थी प्रस्ताव को वापस लेने की मांग
पत्र में लिखा है, "मनुस्मृति में कई धाराओं में यह महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों का विरोध करती है। मनुस्मृति के किसी भी खंड या हिस्से का परिचय हमारे संविधान की मूल संरचना और भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।" एसडीटीएफ ने मांग की है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए और 12 जुलाई को होने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इसे मंजूरी न दी जाए।संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया
उन्होंने कुलपति से मौजूदा संकाय और संबंधित स्टाफ सदस्यों को मौजूदा सिलेबस के आधार पर विधि शास्त्र के पेपर पढ़ाए जाने का अनुरोध किया। इंडियन टीचर्स नेशनल कांग्रेस के महासचिव और विधि के प्राध्यापक डॉ. मेघराज ने कहा, "जो विषय पहले और छठवें सेमेस्टर में जोड़े जा रहे हैं, वे शोध के विषय हो सकते हैं। इन्हें अलग से पढ़ाया जा सकता है, लेकिन इन्हें विधि सिलेबस में पढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। वर्तमान समाज के अनुसार जो प्रथाएं इनके विरुद्ध हों, उन्हें सिलेबस का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। यह संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है।"डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव प्रो. आभा देव हबीब ने कहा, एनसीईआरटी से लेकर डीयू के सिलेबस में बदलाव किए जा रहे हैं। इसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
ये भी पढ़ें- NEET-UG Exam 2024:'सवालों के नहीं मिले जवाब, नहीं होगी सुनवाई', कहकर चले गए जज साहब; इंतजार करते रह गए छात्र
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।