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7000 वर्ष पहले कैसे बनते थे घर? कैसी होती थी लोगों की जिंदगी? राखीगढ़ी में एएसआइ की खोदाई में मिले अहम साक्ष्य

राखीगढ़ी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खोदाई में कई अहम साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आज से 7000 साल पहले भी लोग योजनाबद्ध तरीके से मकान बनाते थे। इस दौरान जलभराव नहीं हो इसका भी विशेष ध्यान रखा जाता था।

By Jp YadavEdited By: Updated: Sun, 08 May 2022 07:40 AM (IST)
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हरियाणा के राखीगढ़ी में एएसआइ की खोदाई में मिले कई अहम साक्ष्य, 7000 वर्ष पहले कैसे बनते थे घर
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। हड़प्पन के विश्व के सबसे बड़े पुरातात्वित स्थल राखीगढ़ी पर इस साल की गई खोदाई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को एक नया तथ्य मिला है। खोदाई में इस बात के पूरे साक्ष्य मिले हैं कि आज से 7000 साल पहले भी लोग योजनाबद्ध तरीके से मकान बनाते थे। बस्तियों में पानी निकासी की व्यवस्था बेहतर होती थी। सड़कों से मिलती हुई गलियां होती थीं।

सड़कों व गलियों में मोड़ पर कच्ची मिट्टी को जलाकर ईंटों को मजबूत कर लगाया जाता था, ताकि मोड़ पर निर्माण को नुकसान नहीं पहुंचे। खोदाई में मुहर, मृदभांड व हाथी दांत,सोने, मानव की हडिडयों की वस्तुएं और मिट्टी के खिलौने मिले हैं। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए एएसआइ ने अगले साल सितंबर से भी यहां खोदाई जारी रखने का फैसला लिया है।

राखीगढ़ी की वर्तमान खोदाई करा रहे एएसआइ के संयुक्त महानिदेशक डा संजय मंजुल ने कहा है कि राखीगढ़ी में बहुत संभावनाएं हैं, इसलिए अगले साल भी यहां खोदाई कराई जाएगी। वर्तमान उत्खनन इस महीने के अंत तक पूरा हो जाएगा और अगले चरण का उत्खनन कार्य सितंबर 2022 तक शुरू हो जाएगा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और हरियाणा सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन की प्रक्रिया चल रही है, जिसके अनुसार राखीगढ़ी की प्राचीन वस्तुओं को हरियाणा सरकार द्वारा बनाए गए संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।राखीगढ़ी का पुरातत्व स्थल हिसार शहर से 57 किमी और नई दिल्ली से 150 किमी उत्तर-पश्चिम में हरियाणा के जिला हिसार में नारनौद तहसील में है।

साइट के पुरातात्विक साक्ष्य राखीखास और राखीशाहपुर और इसके आसपास के कृषि क्षेत्रों के वर्तमान गांवों को कवर करते हुए लगभग 350 हेक्टेयर में फैले हुए हैं। राखीगढ़ी में सात टीले हैं। इस स्थल की खोदाई सबसे पहले 1998-2001 में पुरातत्व संस्थान, एएसआइ द्वारा की गई थी। बाद में, डेक्कन कालेज, पुणे ने 2013 से 2016 तक खांदाई की।

2020-21 के केंद्रीय बजट के अनुसार भारत सरकार द्वारा घोषित एक परियोजना के तहत स्थल को पांच प्रतिष्ठित स्थलों में से एक के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 24 फरवरी 2022 को उत्खनन शुरू हुआ।

किस टीला में क्या मिला

टीला-एक में अन्य गतिविधियों के अलावा जैसे अर्ध-कीमती पत्थरों की बड़ी मात्रा में अपशिष्ट मिले हैं। जो व्यापक तौर पर मोतियों जैसी वस्तुओं के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता था। पाए गए अवशेषों के अनुसार सड़क के साक्ष्य 2.6 मीटर की सामान्य चौड़ाई के साथ पाए गए हैं। इस सड़क के दोनों ओर मिट्टी की दो दो ईंटें लगी हैं। जिससे सिद्ध होता है कि इसे व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है। इसकी गलियां पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण दिशा में 18 मीटर तक जाती हैं। वर्तमान में मिट्टी के ईंटों के 15 भाग दिखाई दे रहे हैं।

टीला- एक से दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित टीला- तीन की खुदाई की जा रही है, जहां जली हुई ईंट की दीवार मिली है, जो पूर्व-पश्चिम दिशा में है। वर्तमान में आगंतुकों के लिए 11 मीटर लंबाई, 58 सेमी चौड़ाई और 18 ईंट की ऊंचाई वाली खुली दीवार मिली है। यह जली-ईंट मिट्टी-ईंटों के संयोजन में पाई गई है। दीवार के दक्षिणी भाग में इस दीवार से सटे ईंटों से बनी एक नाली मिली है।

टीला एक और टीला- तीन में मुहर, हाथी और हड़प्पा लिपि से संबंधित टेराकोटा की बगैर पकी हुईं वस्तुएं शामिल हैं। टेराकोटा और स्टीटाइट से बने कुत्ते, बैल आदि पशुओं की मूर्तियां, बड़ी संख्या में स्टीटाइट की माला, अर्ध-कीमती पत्थरों के मोती, तांबे की वस्तुएं आदि भी खोदाई में मिली हैं।

टीला-सात जो कि टीला- एक के 500 मीटर उत्तर में स्थित है। पिछली खुदाई में यहां लगभग 60 कब्रें मिलीं थीं। इस बार इस क्षेत्र की खोदाई में दो कब्रें मिली हैं। ये कब्रें दो महिलाओं की होने की पहचान हुई है। महिलाओं को मिट्टी के बर्तन और सजे हुए गहनों और शेल चूड़ियों के साथ दफनाया गया है।

गहनों में बीड्स का उपयोग हुआ है। एक कंकाल के साथ तांबे का छोटा दर्पण मिला है।से कंकााल 5000 साल पुराने माने जा रहे हैं। मगर एएसआइ ने इनका डीएनए कराने के लिए नमूना भिजवाया है जिससे इनके पुराने होने की सही जानकारी मिल सकेगी। 

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