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मां के दूध से तैयार होगी इस गंभीर बीमारी की दवा, दिल्ली एम्स के रिसर्च से खुलासा

म्यूकोरमाइकोसिस के संक्रमण को खत्म करने के लिए मां के दूध को बहुत फायदेमंद बताया गया। दिल्ली एम्स के शोध में खुलासा हुआ कि मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन बेहद असरदार है। इस रिसर्च को कई डॉक्टरों ने मिल कर किया है। काला फंगस का संक्रमण अनियंत्रित डायबिटीज कैंसर के साथ ही आइसीयू में भर्ती मरीजों को सबसे अधिक रहता है।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Thu, 27 Jun 2024 07:42 PM (IST)
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मां के दूध के लैक्टोफेरिन प्रोटीन से तैयार होगी काला फंगस की दवा। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। बेहद जानलेवा माने जाने वाले काला फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) के संक्रमण को नष्ट करने में मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन बेहद असरदार है। एम्स के बायोफिजिक्स व माइक्रोबायोलाजी विभाग के डाक्टरों द्वारा लैब में किए गए शोध में यह बात सामने आई है।

मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन से हो सकती है दवा तैयार

हाल ही में एम्स का यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (फ्यूजर माइक्रोबायोलाजी जर्नल) में प्रकाशित हुआ है। एम्स के डाक्टरों का दावा है कि आगे चलकर मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन से काला फंगस की दवा तैयार हो सकती है। जिसका एम्फोटेरिसिन-बी के साथ इस्तेमाल किया जा सकेगा।

इन लोगों को होता है काला फंगस का अधिक संक्रमण

एम्स के बायोफिजिक्स विभाग की प्रोफेसर डा. सुजाता शर्मा, डा. प्रदीप शर्मा, डा. तेज पी सिंह, व माइक्रोबायोलाजी विभाग की प्रोफेसर प्रोफेसर डा. इमैकुलाटा जेस ने मिलकर किया है। काला फंगस ( black fungus) का संक्रमण अनियंत्रित डायबिटीज, कैंसर, अंग प्रत्यारोपण, बर्न के मरीजों व आइसीयू में भर्ती मरीजों को होने का खतरा अधिक रहता है। क्योंकि उन मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।

कोरोना के दौर में स्टेराइड के अधिक इस्तेमाल, कोरोना के दुष्प्रभाव से बहुत मरीजों का पैंक्रियाज प्रभावित होने व रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से भारत सहित कई देशों में काला फंगस का संक्रमण बढ़ गया था। इसके संक्रमण से बहुत लोगों की मौतें भी हुई थीं और एम्फोटेरिसिन-बी की कालाबाजारी बढ़ गई थी।

संक्रमण होने पर फंगस को दवा से भी रोक पाना मुश्किल-डॉ.

डा. सुजाता शर्मा ने कहा कि काला फंगस का संक्रमण होने पर फंगस को दवा से भी रोक पाना मुश्किल होता है। इसलिए शरीर के प्रभावित हिस्से की सर्जरी करनी पड़ती है। इसके अलावा एम्फोटेरिसिन-बी दवा दी जाती है। इस बीमारी में मृत्यु दर 30 से 80 प्रतिशत तक है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज को संक्रमण कितना हुआ है।

शुरुआती चरण के संक्रमण में मृत्यु दर कम और गंभीर संक्रमण होने पर मृत्यु दर अधिक है। इसका संक्रमण बेहद जानलेवा होने के कारण इसके इलाज के लिए नई दवा तैयार करने की जरूरत महसूस की गई। इसलिए एम्स को शोध का जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने बताया कि मां के दूध में लैक्टोफेरिन प्रोटीन होता है जो बैक्टिरिया, फंगस इत्यादि के संक्रमण से बचाव करता है।

प्रसव के बाद शुरुआती तीन दिन के मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन ज्यादा प्रभावी होता है। मां के दूध से लैक्टोफेरिन को अलग कर लैब में काला फंगस पर एम्फोटेरिसिन-बी के साथ लैक्टोफेरिन देकर उसका प्रभाव देखा गया। शोध में पाया गया कि एम्फोटेरिसिन-बी के साथ लैक्टोफेरिन देने पर दवा आठ गुना अधिक असर करती है और यह काला फंगस के संक्रमण को रोक देता है।

इस शोध के बाद अब केंद्र सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मिले फंड से अभी जानवरों पर का ट्रायल चल रहा है। यह ट्रायल सफल होने के बाद इंसानों पर इसका ट्रायल किया जाएगा। लैक्टोफेरिन इंसान के शरीर में ही मौजूद एक प्रोटीन है। इसलिए इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है।

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