Move to Jagran APP

मरीजों की जिंदगी में खुशियों का उदय हैं कैंसर रोग विशेषज्ञ 'डॉ. रवि', मिला पद्मश्री सम्मान

डॉ. रवि ने कहा मेरा मानना है कि कैंसर का इलाज बहुत दूर जाकर नहीं कराना चाहिए क्योंकि इलाज लंबा चलता है बार-बार अस्पताल जाना होता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 14 Feb 2020 09:06 AM (IST)
Hero Image
मरीजों की जिंदगी में खुशियों का उदय हैं कैंसर रोग विशेषज्ञ 'डॉ. रवि', मिला पद्मश्री सम्मान
नई दिल्ली, मनु त्यागी। असम में कछार कैंसर अस्पताल व अनुसंधान केंद्र (सिलचर कैंसर संस्थान) चला रहे 55 वर्षीय डॉ. रवि कानन को हालही पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया है। सौ बेड वाले इस अस्पताल में गरीबों के इलाज की बेहतर व्यवस्था है। अन्य राज्यों से भी लोग सिलचर स्थित इस अस्पताल में इलाज को पहुंचते हैं।

डॉक्टर का एक ही मकसद होता है मानव सेवा

डॉ. कानन ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा, डॉक्टर का एक ही मकसद होता है मानव सेवा। किसी का भी इलाज रुकना नहीं चाहिए। मेरे कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. कृष्णमूर्ति मुझसे हमेशा यही बात कहते थे कि डॉक्टर और अस्पताल का फर्ज है कि मरीज उनके पास कैसी भी स्थिति में आए, उसकी जेब नहीं उसके हालात देखने चाहिए, उसकी बीमारी का तुरंत इलाज देना चाहिए। उसकी आर्थिक स्थिति यदि कमजोर है तो कैसे भी उसके लिए सहयोग के रास्ते बनाए जाएं, लेकिन मरीज बगैर इलाज के न लौटे...। उनकी इसी सीख को आत्मसात कर बरसों से इस पेशे के माध्यम से मानव सेवा कर रहा हूं।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी उन्हें गुमनाम सितारे की तरह बताया 

सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. रवि कानन को जब पद्मश्री प्रदान किया गया, तब केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी उन्हें गुमनाम सितारे की तरह बताया था। डॉ. रवि ने बताया कि वह चेन्नई के एक बड़े अस्पताल में काम करते हुए करियर से संतुष्ट थे, सब ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन असम से डॉ. चिन्मॉय चौधरी का फोन आया। उन्होंने उन्हें असम के सिलचर में बुलाया। रवि कहते हैं, ये वर्ष 2007 की बात है। मैं वहां गया। देखा कि लोगों के लिए इलाज की आसपास कोई व्यवस्था नहीं थी। इलाज के लिए 300 किमी दूर जाना पड़ता था।

डॉ. चिन्मॉय के सहयोग से गांव में धीरे-धीरे लोगों ने जमापूंजी लगाकर एक छोटे से अस्पताल की शुरुआत की थी, अब उसमें इलाज का दायित्व मेरा था। ऐसी स्थिति थी कि वहां हर घर में कैंसर के मरीज होते थे। एक तो लोगों के पास पैसा नहीं, ऊपर से ऐसी बीमारी जिसमें गरीब परिवार की तीन पीढ़ियां तक उबर नहीं पातीं। अंतत: मैंने और पत्नी सीता ने तय किया और हम असम में ही बस गए। अब इस अस्पताल में असम के विभिन्न हिस्सों के अलावा बिहार और आसपास के अन्य राज्यों से भी लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं।

नि:शुल्क इलाज, अस्पताल का रखरखाव

डॉ. रवि ने कहा, मेरा मानना है कि कैंसर का इलाज बहुत दूर जाकर नहीं कराना चाहिए, क्योंकि इलाज लंबा चलता है, बार-बार अस्पताल जाना होता है। यह भी जरूरी है कि इलाज एक ही अस्पताल में पूरा हो। मरीज बहुत उम्मीद से आते हैं। ऐसे में उन्हें यहां ठहराने की भी व्यवस्था है ताकि इलाज पाकर ही लौटें। दूर से आने वाले मरीज व उनके तीमारदारों के रहने की व्यवस्था सुलभ की गई है। महज 15 रुपये में कमरा और 10 रुपये में खाना। यदि किसी के पास वह भी नहीं है तो कोई बाध्यता नहीं है...। कम से कम में या नि:शुल्क इलाज, अस्पताल का रखरखाव, नई मशीनें, कर्मचारियों का वेतन आदि के लिए सरकार, असम एयरपोर्ट अथॉरिटी, टाटा जैसे संस्थानों और सीएसआर इत्यादि के रूप में आर्थिक सहयोग मिलने लगा है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।