Mirza Ghalib Birth Anniversary: मिर्जा गालिब ने खुद को बताया था ‘आधा मुसलमान’, 1847 में जाना पड़ा था जेल
Mirza Ghalib Birth Anniversary महान शायर गालिब का जन्मदिन आज है। उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था। उनका पूरा नाम मिर्जा असद उल्लाह बेग खां उर्फ गालिब था। शायरी का जिक्र होते ही लोगों को गालिब की याद आती है।
By Abhishek TiwariEdited By: Updated: Tue, 27 Dec 2022 10:38 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib) का नाम कौन नहीं जानता। हर मोहब्बत करने वाला आशिक मिर्जा गालिब के शेर, शायरी और गजल जरूर पढ़ता है। हर कोई उनकी शायरी का कायल है। गालिब के बारे में कुछ दिलचस्प किस्से भी हैं, जिन्हें कम ही लोग जानते होंगे।
मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ "गालिब" था। इनका जन्म आगरा में 27 दिसंबर 1797 को एक हुआ था। इनकी शायरियों में साहित्य और उर्दू भाषा का समावेश था। गालिब को पत्र लिखने का बहुत शौक था। इसीलिए उन्हें पुरोधा भी कहा जाता था।
उज्बेकिस्तान से आए थे गालिब के पूर्वज
गालिब के दादा मिर्जा कोबान बेग खान, अहमद शाह के शासनकाल में समरकंद (उज्बेकिस्तान) से भारत आए थे। गालिब के पिता मिर्जा अब्दुल्ला बेग खान ने लखनऊ के नवाब और हैदराबाद के निजाम के लिए काम किया था। गालिब जब 5 साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया। तब गालिब का पालन पोषण उनके चाचा मिर्जा नसरूल्लाह बेग खान ने किया था।
ऐसे जुड़ा मिर्जा शब्द
दिल्ली के सुल्तान बहादुर शाह जफर-II ने 1850 ई. में गालिब को "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-दौला" की उपाधि प्रदान की थी। इसके अलावा गालिब को "मिर्ज़ा नोशा" की उपाधि भी दी थी। इसके बाद गालिब के नाम के साथ "मिर्जा" शब्द जुड़ गया।मुगल दरबार में थे इतिहासविद मिर्जा गालिब से बहादुर शाह जफर-II ने कविता के लिए 1854 ई. में गालिब को अपना शिक्षक नियुक्त किया था। बाद में बहादुर शाह जफर ने गालिब को अपने बड़े बेटे "शहजादा फखरूदीन मिर्जा" का भी शिक्षक नियुक्त किया था। इसके अलावा गालिब मुगल दरबार में शाही इतिहासविद के रूप में भी काम करते थे।
11 साल की उम्र में लिखी पहली कविता मिर्जा गालिब जब 11 साल के थे तभी उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी। गालिब की मातृ भाषा उर्दू थी। इसके अलावा तुर्की और फारसी भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। साथ ही अरबी, दर्शन तर्कशास्त्र की भी उन्होंने पढ़ाई की थी।बदल दिया गालिब का जन्म स्थान आगरा में जिस स्थान पर गालिब का जन्म हुआ था। आज वह "इन्द्रभान कन्या अन्तर महाविद्यालय" के नाम से जाना जाता है। जिस कमरे में गालिब का जन्म हुआ था। उसे आज भी सुरक्षित रखा गया है।
जुआ खेलने पर गए थे जेल गालिब को साल 1847 में जेल भी जाना पड़ा था। इसकी वजह उनका जुआ खेलना था। अंग्रेज सरकार ने उस वक्त उन पर 200 रुपये का जुर्माना और सश्रम कारावास की सजा दी थी।हाजिर जवाबी थे गालिब गालिब के संबंध में एक कहानी लोकप्रिय है। एक बार गालिब आम खा रहे थे। जमीन पर छिलके जमा कर रखे थे। वहां खड़े एक व्यक्ति ने उन छिलकों को अपने गधे को खाने के लिए दिया। गधे ने उन छिलकों को खाने से इंकार कर दिया। इस पर सज्जन व्यक्ति ने गालिब का मजाक उड़ाते हुए कहा कि "गधे भी आम नहीं खाते हैं"। इस पर गालिब ने अपनी हाजिर जवाबी का परिचय देते हुए कहा कि "गधे ही आम नहीं खाते हैं"।
कभी नहीं रखा रोजा मुसलमान होने के बावजूद गालिब ने कभी रोजा नहीं रखा था। वह खुद को आधा मुसलमान कहते थे। एक बार एक अंग्रेज अफसर ने पूछा तो उन्होंने बताया था कि मैं शराब पीता हूं, लेकिन सूअर नहीं खाता हूं। इसलिए मैं आधा मुसलमान हूं।
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