200 साल बाद भी नहीं पैदा हुआ ऐसा दूसरा शख्स, जानें- कौन है वह महान आदमी
कहा जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब की दो कमजोरियों शराब और जुए की लत ने उन्हें तबाह कर दिया।
नई दिल्ली (जेपी यादव)। मिर्ज़ा ग़ालिब ये सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि समूचे हिंदुस्तान के साथ दक्षिण एशिया की भी विरासत है, जो 200 साल बाद भी वही रवानी लिए हुए है। ये शायर ग़ालिब की कलम का ही जादू है कि आज भी लोग उनकी शायरी के कायल हैं और दो सदी बाद भी उनकी रुहानी शख्सियत का जादू बरकरार है।
ग़ालिब के समकालीन और भी कई शायर थे, जिन्होंने उम्दा नज़्म-ग़ज़ल लिखी, लेकिन ग़ालिब की ऊंचाई को कोई दूसरा शायर नहीं पा सका। इस शायर ने ग़ज़ल को वो पहचान दी कि ग़ज़ल नाम हर आम-ओ-खास की ज़बान पर आ गया।
यह अलग बात है कि 'दीवान-ए-ग़ालिब' पढ़ने और समझने के लिए उर्दू की समझ होनी जरूरी है। वरना, आपको डिक्शनरी देखनी पड़ेगी और गालिब ने भी समय रहते इसे महसूस किया और सादा ज़बान इस्तेमाल की। बाद के दिनों में ग़ालिब ने वही अशआर लोगों ने सराहे जो लोगों की ज़बान में कहे गए।
मिर्ज़ा ग़ालिब को उर्दू, फारसी और तुर्की समेत कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने फारसी और उर्दू रहस्यमय-रोमांटिक अंदाज में अनगिनत गजलें लिखीं, जो शायरी की मिसाल बन गईं।
हाल फिलहाल में ग़ालिब के ऊपर 'एंटी नेशनल ग़ालिब' नाटक लिखने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी दानिश इकबाल का कहना है कि ग़ालिब अपने दौर के इकलौते शायर थे, जिन्होंने कामयाबी की इतनी बड़ी ऊंचाई को छुआ।
नाटककार दानिश कहते हैं, 'ग़ालिब अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं। कठोर अंग्रेजी शासन के बावजूद उन्होंने बड़ी बेफिक्री से अपनी नज्में लिखीं। ज़िदगी, प्यार मोहब्बत, दुख, खुशी...हर विषय पर लिखा।'
'एंटी नेशनल ग़ालिब' नाटक लिखने पर दानिश कहते हैं, 'हां... ग़ालिब की बेबाकी और हर विषय पर उनकी चलने वाली कलम ने ही मुझे यह नाटक लिखने के लिए प्रेरित किया।'
वह आगे कहते हैं, 'दरअसल, इन दिनों हर कोई वजह हो या न हो जन हित याचिका दाखिल करने को बेताब नजर आता है। एक दिन बैठे-बैठे मुझे ख्याल आया और 'एंटी नेशनल ग़ालिब' नाटक लिख डाला।' यह सटायर है कि लोग बेवजह एक दिन ग़ालिब जैसे शायर को भी कोर्ट में घसीट सकते हैं। कहा जाता है कि ग़ालिब अपनी शायरी लिखने के दौरान ख़ुद के पूरी तरह संतुष्ट होने को ही तरजीह देते थे।
ट्रैजि़डी के शायर थे ग़ालिब
यूं तो ग़ालिब ने हर मिजाज और मूड की शायरी लिखी है, लेकिन उन्हें ट्रैजिडी का ही शायर माना जाता है। इसके पीछे है उनकी निजी ज़िंदगी। उन्होंने अपनी ज़िदंगी में तमाम नाकामियां झेलीं। उन्होंने ब्रिटिश अत्याचार को बेहद करीब से देखा और झेला भी।
अपनी आंखों के सामने ग़ालिब ने सात बच्चों को दम तोड़ते देखा। यह दर्द ग़ालिब को अंदर तक तोड़ गया ऊपर से शराब की लत ने मिर्जा असदुल्लाह बेग खान को मिर्ज़ा ग़ालिब बना दिया। उनके लिए यूं ही नहीं कहा जाता-'हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और'
जानें ग़ालिब के बारे में
ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। बहुत ही छोटी उम्र में ग़ालिब की शादी हो गई थी।
ग़ालिब के सात बच्चे हुए, लेकिन उनमें से कोई भी जिंदा नहीं रहा सका। कहा जाता है कि अपने इसी दुख से उबरने के लिए उन्होंने शायरी का दामन थाम लिया। कहा जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब की दो कमजोरियों शराब और जुए की लत ने उन्हें तबाह कर दिया।
आखिरकार 15 फरवरी 1869 को ग़ालिब की मौत हो गई। उनका मकबरा दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन इलाके में बनी निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास ही है।