Move to Jagran APP

Delhi AIIMS: मां ने एक बार फिर दिया बेटे को जन्म, देश में पहली बार हुई ऐसी सर्जरी; बचाई बच्चे की जान

माएं अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी भी दाव पर लगा देती हैं। उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली एक महिला(33) ने अपने कूल्हे की हड्डी का हिस्सा दान कर गर्दन के रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर से पीड़ित अपने नवजात बच्चे को जिंदगी दी।

By Ranbijay Kumar SinghEdited By: GeetarjunUpdated: Fri, 12 May 2023 07:49 PM (IST)
Hero Image
मां ने फिर दिया बेटे को 'जन्म', देश में पहली बार हुई ऐसी सर्जरी; बचाई बच्चे की जान

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। माएं अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी भी दाव पर लगा देती हैं। उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली एक महिला(33) ने अपने कूल्हे की हड्डी का हिस्सा दान कर गर्दन के रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर से पीड़ित अपने नवजात बच्चे को जिंदगी दी।

एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने मां द्वारा दान की गई हड्डी से बच्चे के गर्दन के रीढ़ की हड्डी को जोड़ा। एम्स के डॉक्टरों ने यह सर्जरी पिछले वर्ष 10 जून को की थी। एम्स के डॉक्टरों का दावा है कि देश में इतने कम उम्र के बच्चे के गर्दन के रीढ़ की टूटी हुई हड्डी को बगैर किसी धातु के इंप्लांट के जोड़ने का पहला मामला है।

सर्जरी के करीब 11 माह बाद बच्चा वेंटिलेटर से बाहर निकला। इसलिए बुधवार को बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

वह अपनी मां शालू व पिता सुमित कुमार के साथ वापस मेरठ जा चुका है। सुमित ने बताया कि 18 दिसंबर 2021 को मेरठ के ही अस्पताल में बच्चे का जन्म हुआ था। जन्म के तीन माह बाद एमआरआई जांच कराने पर पता चला कि गर्दन के रीढ़ की हड्डी में परेशानी है।

इस वजह से पिछले वर्ष मई में बच्चे को लेकर एम्स ट्रामा सेंटर पहुंचे। एम्स के न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि जन्म के समय बच्चे का वजन 4.5 किलोग्राम था। वजन अधिक होने से सामान्य प्रसव के दौरान बच्चे को खिंचने के कारण गर्दन के रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। साथ ही ब्रकीयल प्लेक्सस (कंधे के नर्वस) में इंजरी हो गई थी।

ब्रकीयल प्लेक्सस रीढ़ की हड्डी से संवेदी संकेतों को हाथों में भेजता है। इससे हाथों में मूवमेंट होता है। जब बच्चे को एम्स ट्रामा सेंटर में लाया गया था तब उसके दायें हाथ में कोई हलचल नहीं हो पा रहा था। दायां हाथ व दोनों पैरों में भी खास मूवमेंट नहीं थी। इतने कम उम्र के बच्चे की हड्डियां विकसित नहीं होती।

इस वजह से रीढ़ की हड्डी में धातु के कृत्रिम इंप्लांट लगाकर जोड़ना संभव नहीं था। इसलिए बच्चे की मां ने कूल्हे के सबसे ऊपरी हिस्से की हड्डी (इलियक क्रेस्ट बोन) का पांच सेंटीमीटर हिस्सा दान किया। सर्जरी के लिए एक साथ दो आपरेशन थियेटर इस्तेमाल किए गए। एक ऑपरेशन टेबल पर बच्चे की मां की सर्जरी कर बोन दान की प्रक्रिया पूरी कराई गई।

दूसरे ऑपरेशन टेबल पर बच्चे की सर्जरी गई। 15 घंटे तक चली इस सर्जरी के दौरान बच्चे के गर्दन के रीढ़ की हड्डी में बोन ग्राफ्ट किया गया। साथ ही रीढ़ की हड्डी के अगले हिस्से में 2.5 मिलीमीटर की पीएलएलए (पाली-एल-लैक्टाइड) प्लेट व पिछले हिस्से में विशेष तरह के सूचर टेप का इस्तेमाल कर उसे फिक्स किया गया।

सर्जरी के बाद बच्चा करीब 11 माह तक वेंटिलेटर पर रहा। उसका पहला जन्म दिन भी ट्रामा सेंटर में ही मनाया गया। करीब नौ दिन पहले बच्चा वेंटिलेटर से बाहर आया। वह खुद से सांस लेने लगा है, खाना भी खाने लगा है। माता-पिता की बातों पर प्रतिक्रिया भी देने लगा है। वेंटिलेटर सपोर्ट हटाने के बाद एक सप्ताह तक निगरानी में रखा गया। एमआरआइ जांच में पाया गया कि उसकी रीढ़ की हड्डी भी जुड़ गई है। हाथ पैर में मूवमेंट भी देखा जा रहा है लेकिन उसे पूरी तरह ठीक होने में अभी वक्त लेगा। बच्चे के गले में अभी ट्यूब डली हुई है। सब कुछ ठीक रहा तो इसे पांच-छह माह बाद निकाला जाएगा।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।