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पढिए मदर्स डे पर प्रेरक महिलाओं की कहानी, कैसे विपरीत हालात में पाया मुकाम; बनीं प्रेरणा

Mothers Day 2022 आज मां समाज के किसी सवाल से घबराती नहीं अनावश्यक परंपराओं को बेटी के रास्ते में आड़े नहीं आने देती। उसे स्वावलंबन की राह पर बढ़ाने के रास्ते खोल देती है। बेटी मजबूत तो है पर मां की मजबूती उसे और भी दृढ़ बना देती है।

By Amit SinghEdited By: Updated: Thu, 05 May 2022 05:07 PM (IST)
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Mother's Day 2022: आज की मां अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए डटकर खड़ी है...

यशा माथुर। एक समय था जब मां अपनी बेटी की तरक्की चाहती थी, लेकिन जमाने के डर से उसे घर में ही रहने की सलाह देती थी। फिर जब बेटी अपने फैसले पर अडिग हुई तो मां ने उसके मन का काम करने के लिए नैतिक समर्थन दिया। बदलते दौर में अब मां अपनी बेटी के स्वावलंबन में शारीरिक रूप से भी मेहनत करती है। बेटी की पढ़ाई या करियर को आगे बढ़ाने के लिए अपना सर्वस्व बेटी के भविष्य को चमकाने में लगा देती है।

मिला मां का साथ तो बनीं मिसाल: जालंधर (पंजाब) की मिनी रियात की मां जसपाल कौर जब उनकी ढाल बनकर खड़ी हो गईं तो उन्होंने मिसाल कायम करते हुए दुनिया को दिखा दिया कि अगर मां साथ है तो बेटी के हारने की कोई सूरत ही नहीं है। पिता की घाटे में चल रही फैक्ट्री को न केवल लाभ में लाईं मिनी, बल्कि कंपनी के टर्नओवर को 85 करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया। मिनी अकाल स्प्रिंग लिमिटेड की प्रबंध निदेशक (एमडी) हैं। मिनी बताती हैं, पिता के निधन के समय मेरी उम्र करीब 22 वर्ष थी।

सबसे बड़ा सवाल था कि परिवार व कारोबार कैसे चलेगा। ऐसे समय में मां ने कहा, जिंदगी में कुछ भी नामुमकिन नहीं है, हौसला रखो। उस समय परिवार के अन्य बुजुर्गों ने मां से कहा था कि एक लड़की के लिए फैक्ट्री चलाना आसान नहीं है, लेकिन मां ने मेरा साथ दिया। उन्होंने हौसला दिया तो मैंने पिता की कंपनी के स्टाफ के साथ बैठकें कीं और उनका सहयोग मांगा। पिता के साथ अच्छे संबंधों के चलते स्टाफ ने भी कंपनी को खड़ा करने में साथ दिया। बेहतर गुणवत्ता और प्रबंधन की वजह से आज हमारी कंपनी को महिंद्रा एवं महिंद्रा और टाटा जैसी कंपनियों से आर्डर मिल रहे हैं।

भा गई मां की कला: भोपाल (मप्र) की इंजीनियर श्रेया श्रीवास्तव को मां मंजुला की कला का रास्ता इतना भाया कि उन्होंने उनसे कला सीखी, उसे डिजिटल बनाया और अपना ब्रांड एलियन चिक्की बनाकर व्यवसाय शुरू कर दिया। दरअसल, नैनो टेक्नोलाजी में इंजीनियरिंग करने और पांच साल मार्केटिंग फील्ड में काम करने के बाद भी श्रेया को कुछ खालीपन सा लगता था। उन्हें कुछ रचनात्मक करना था और इसमें उनका साथ दिया मां मंजुला ने, जो खुद एक बेहतरीन कलाकार हैं और बहुत सुंदर पेंटिंग करती हैं। मां की सहमति से श्रेया ने नौकरी छोड़ व्यवसाय शुरू किया। श्रेया कहती हैं, मैंने डिजिटल आर्ट में दक्षता हासिल कर खुद का ब्रांड एलियन चिक्की बनाया। इसमें कला से जुड़ी चीजों को बेचती हूं दरअसल, लोगों की मांग पर उनके दिमाग में अंकित सुनहरी यादों को डिजिटल आर्ट में तब्दील कर उन्हें लौटाती हूं ताकि वे उस याद को वास्तविक स्वरूप में अपने पास रख सकें।

मां ने बेटी को दिखाई राह: होशियारपुर (पंजाब) के माहिलपुर की 24 वर्षीया एथलीट हरमिलन आज जिस मुकाम पर हैं, उसकी कल्पना उनकी मां के बिना नहीं की जा सकती। मां माधुरी सक्सेना ने बेटी को मानसिक और शारीरिक रूप से इतना मजबूत बनाया कि आज वह राष्ट्रीय रिकार्ड धारक हैं। मां हर कदम हरमिलन के साथ रहीं। वर्तमान में पावरकाम में सीनियर स्पोट्र्स आफिसर के तौर पर तैनात माधुरी बताती हैं, हरमिलन ने बचपन से खेलों के प्रति दिलचस्पी दिखाई। आठ साल की उम्र में ही मैंने बेटी की प्रतिभा को पहचान लिया था। जब भी हरमिलन मुझे कोचिंग देने के लिए कहती थी तो मैं उसे पहले ग्राउंड का चक्कर लगाने के लिए कहती। यहीं से हरमिलन के एथलेटिक्स करियर की शुरुआत हुई और वह 800 मीटर और 1500 मीटर रेस की इवेंट में राष्ट्रीय रिकार्ड बना चुकी हैं। माधुरी सक्सेना स्वयं बुसान (साउथ कोरिया) में साल 2002 में आयोजित एशियन गेम्स में आठ सौ मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। माधुरी को साल 2003 में अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

मां के साथ से संभाला कारोबार: लखनऊ (उप्र) में जन्मी और पली-बढ़ीं 31 साल की हरफनमौला वर्षा श्रीवास्तव को द पेपर च्वेलरी डिजाइनर के रूप में जाना जाता है। पेपर च्वेलरी के क्षेत्र में वह विश्व एवं राष्ट्रीय रिकार्ड धारक हैं। इनका ब्रांड नाम वर्षा क्रिएशंस है। इसके अंतर्गत वह पेपर च्वेलरी बेचती हैं। उनकी मां निम्मी ने हर कदम पर उनका साथ दिया है। वर्षा कहती हैं, मैंने 19 साल की उम्र में कमाई शुरू की। पिता की अचानक गंभीर बीमारी ने मुझे काफी हताश कर दिया था, परिस्थितियों ने मुझे जिम्मेदारियों का एहसास करवा दिया। मैंने मां को भी पेपर च्वेलरी का हुनर सिखाया और उन्होंने मन से सीखा। इसके बाद हम दोनों ने मिलकर पिता और अपने परिवार के व्यवसाय को संभाला। जब भी मैं किसी काम से बाहर जाती हूं तो मां अच्छे से काम संभाल लेती हैं। जेवर बनाकर आर्डर भेजने की जिम्मेदारी वर्षा की मां बहुत बार खुद पर ले चुकी हैं। वर्षा कागज से बने जेवरों को पैक करने के लिए मां के बनाए कपड़े के छोटे-छोटे पर्स इस्तेमाल करती हैं। ये छोटे पर्स घर पर ही बनाकर मां उनके कारोबार में सहयोग करती हैं।

मुश्किल समय में मिला मां का साथ: पटना (बिहार) की 24 वर्षीया अपर्णा बासु बैंक में उपप्रबंधक पद पर कार्यरत हैं, लेकिन उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया उनकी मां सुनीता गिरि ने। अपर्णा ने नौवीं कक्षा में बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का सपना देखा था, लेकिन घर के लोगों ने इसका विरोध किया, जबकि बेटा होने के चलते भाई दिग्विजय गिरि को घर का पूरा समर्थन मिला। ऐसे में मां अपर्णा ने बेटी का साथ दिया और परिवार के सदस्यों से लड़कर बेटी का नामांकन सचिवालय स्पोट्र्स क्लब में करा दिया। मां ही उसे छोडऩे जाती थीं। वर्ष 2014 में अपर्णा और बेटे का चयन स्पोट्र्स अथारिटी आफ इंडिया की ओर से आल इंडिया बैडमिंटन प्रतियोगिता, बेंगलुरु के लिए हो गया। उस समय भी अपर्णा को बेंगलुरु भेजने को लेकर घर में विरोध हुआ, लेकिन मां उनके साथ खड़ी रहीं। अपर्णा बासु और दिग्विजय दोनों साथ रहकर वहीं पर अभ्यास करने लगे।

वर्ष 2014 में ही एक दिन सड़क अचानक हादसे में अपर्णा बुरी तरह घायल हो गईं। इसके बाद उन्हें चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करानी पड़ी। बेंगलुरु में कुछ दिन इलाज के बाद वह पटना लौटीं। एक साल इलाज चलने के बाद उन्होंने ब्यूटी पार्लर खोला। बेटी अकेली ना पड़ जाए इसलिए मां ने भी उसके काम में हाथ बढ़ाया। अपर्णा कहती हैं, मेरी मां सिर्फ मां ही नहीं, बल्कि एक दोस्त भी हैं। उन्होंने मेरी पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए पटना वीमेंस कालेज में नामांकन करा दिया। इसके बाद मां ही बिजनेस संभालने लगीं। मैं पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी करनी लगी। एचडीएफसी बैंक में डिप्टी मैनेजर पद पर मेरी नौकरी लग गई। अब मैं अपने घर की आर्थिक मदद भी कर रही हूं और कालेज में बैडमिंटन भी खेलती हूं। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी कर रही हूं। मेरे हर मुश्किल समय में मां मेरे साथ खड़ी रहीं। मां हमेशा कहती हैं जहां गलत हो रहा हो, उसका विरोध करो।

जब बच्ची के लिए जागी ममता: तीन संतान होने के बाद भी मधुलिका रानी एक गरीब परिवार की बेटी के सपनों को संवारने का काम कर रही हैं। लोहरदगा (झारखंड) की कैरो निवासी मधुलिका रानी लातेहार गई हुई थीं। गांव में फटे-पुराने एवं मैले वस्त्र पहनी एक छोटी सी बच्ची सुमित्रा पर उनकी नजर पड़ी। गरीबी में सिसक रही उस बच्ची की बातें सुनकर उनके कदम थम गए। बच्ची की मीठी और प्यारी बातें तथा उसके सपने सुनकर उनके अंदर की मां जाग उठी। उस बच्ची के सपनों को पूरा करने के लिए वह ईंट भट्टे पर मजदूरी करने वाले उसके मां-बाप से इजाजत लेकर उसे अपने घर ले आईं। तब से सुमित्रा कैरो में ही मधुलिका रानी के घर में रहती है। इस वर्ष उसने मैट्रिक की परीक्षा दी है।

स्वावलंबन की पक्षधर मां: किड्सटापप्रेस डाट काम के फाउंडर व सीईओ मानसी जवेरी ने बताया कि पारंपरिक गुजराती परिवार की चार बहनों में मैं एक हूं मैं। मेरी मां ने परिवार के विरोध के बावजूद हमें अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाया। वह मानती थीं कि बेटियों को अपने पैर पर खड़ा करने के लिए उन्हें पढ़ाना जरूरी है। मां बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन कुछ न कुछ करने की आदत के कारण वह बच्चों को हिंदी सिखाने लगीं। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती तो लोग क्या कहेंगे? मां ने ही हमारे दिमाग में बिठा दिया कि जो आपको करना है उसकी कोई सीमा नहीं है, कोई बंधन नहीं है। उन्होंने कहकर नहीं बल्कि अपने व्यवहार से सिखाया कि आपको अपना रास्ता खुद बनाना है और मंजिल तक पहुंचना है। चार बच्चे होने के बावजूद उन्होंने अपने हर काम को बेहतर तरीके से किया। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि यह काम मैं नहीं कर सकती। हर काम कर लेने की क्षमता हमारी परवरिश में भी आई। मां ने सिखाया कि सहयोग मांगना जरूरी है। अगर आप मदद मांगेंगे तभी मदद मिलेगी। जब मैंने नौकरी छोड़कर अपना काम शुरू किया तो उन्होंने कहा कि इस बात की परवाह मत करना कि लोग क्या कहेंगे। मंदी के दिनों में नौकरी बचाने के लिए मैं डिलीवरी के 15 दिन बाद ही काम पर चली गई, लेकिन एक कामकाजी मां के रूप में मैंने जाना कि हम बच्चों की देखभाल के लिए इंटरनेट पर और आधी-अधूरी सूचनाओं पर निर्भर थे। इसके बाद मैंने अभिभावकों को हर स्थिति के लिए सही जानकारी देने की ठानी। इसके लिए अपनी वेबसाइट किड्सटापप्रेस डाट काम बनाई और इंटरनेट मीडिया का प्रयोग किया। आज हमारे करीब डेढ़ करोड़ प्रशंसक हैं।

सफलता की नींव बनी मां: अकाल स्प्रिंग लिमिटेड के प्रबंध निदेशक मिनी रियात ने बताया कि मां ने हर कदम पर मेरा साथ दिया और मैं सफलता की मंजिलें तय करती गई। पिता की सपनों की फैक्ट्री को दोबारा शुरू करने और भाई-बहनों का भविष्य संवारने के लिए मैंने शादी नहीं की। एक चुनौती थी, जो पूर्ण समर्पण के बिना संभव नहीं थी। अगर मैं शादी कर लेती तो परिवार बिखर जाता। मेरे जन्म से पूर्व के कर्मचारी आज भी कंपनी की ताकत हैं। पिता के साथ काम कर चुके कर्मचारी आज भी मेरे साथ हैं। इन कमर्चारियों ने कंपनी को घाटे से उबारने के लिए छह-छह महीने वेतन न लेकर भी दिन-रात मेहनत की। यही मेहनत है कि कंपनी की एक नई पहचान बनी है। कंपनी को पंजाब सरकार ने वर्ष 2008 में स्वतंत्रता दिवस पर अमृतसर में स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया था। लुधियाना मैनेजमेंट एसोसिएशन ने सफल युवा उद्यमी के अवार्ड से भी मुझे नवाजा है। मैं स्टाफ के एक सदस्य को हर साल विदेश यात्रा पर लेकर जाती हूं।

साथ लगती है कला प्रदर्शनी: इंजीनियर व डिजिटल आर्टिस्ट श्रेया श्रीवास्तव ने बताया कि मैं आज जो कुछ भी हूं, मां की वजह से हूं। वही मेरी प्रेरणा हैं, भावनात्मक और पेशेवर दोनों रूपों में। मुझे बाहर से किसी शिक्षक या पथ प्रदर्शक की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि मां हमेशा मेरे साथ रहीं। जब मैंने व्यवसाय शुरू किया तो उसमें भी उन्होंने अपने अनुभवों से बताया कि व्यवसाय व कला की मार्केटिंग कैसे करनी चाहिए? क्या करूं कि लोगों को पसंद आए? कैसे लोगों से भावनात्मक जुड़ाव होगा? अपनी कला में किन तत्वों को शामिल करूं कि वह घर-घर पहुंचे? उन्होंने मुझे लोगों की भावनाएं महसूस करना सिखाया, जो मेरे व्यवसाय के लिए सबसे ज्यादा जरूरी थीं। आज मैं लोगों की भावनाएं समझकर उनकी यादों को काफी मग, कोस्टर, कुशन कवर, बैग, केतली, च्वेलरी बाक्स, फ्रिज मैग्नेट, टेबल मैट, वालआर्ट आदि के रूप में उन्हें देती हूं। जब इन्हें पाकर लोग खुशी से उछल पड़ते हैं तो लगता है कि मां की सीख काम कर गई। कई बार मां और मेरी कला की प्रदर्शनी कलावीथिका में साथ-साथ लगती है, तब लोग आकर कहते हैं कि श्रेया तो बिल्कुल मां पर गई है। यह सुनकर हम दोनों एक-दूसरे को देख भावुक हो जाते हैं। मुझे बहुत खुशी होती है कि मुझमें मां का अक्स ही नहीं, उनके गुण भी आए हैं।

[इनपुट लुधियाना से मुनीश शर्मा, भोपाल से दक्षा वैदकर, पटियाला से गौरव सूद, लखनऊ से दुर्गा शर्मा, पटना से पिंटू कुमार, लोहरदगा से शंभू प्रसाद सोनी]

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