Ram Mandir: अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने पर घर लाए थे ईंट, पत्नी-बच्चे मारते थे ताने; अब 31 साल बाद रामलला का करेंगे दर्शन
फरीदाबाद के मुकेश कौशिक बताते हैं कि 06 दिसंबर 1992 को अयोध्या में सरयू में स्नान करने के बाद विवादित ढांचा गिराने की ओर चल पड़े थे। ढांचा गिरने के बाद अपने साथ एक ईंट लेकर वह अपने घर आ गए थे। कई साल बाद तक पत्नी व बच्चों ने खूब ताने मारे और उनसे कई माह तक बात तक नहीं की थी लेकिन आज जब अयोध्या में राम मंदिर...
दीपक गुप्ता, दक्षिणी दिल्ली। छह दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने का दृश्य आज भी आंखों के सामने घूमता नजर आता है और जब वह आंखे बंद कर सोचते हैं तो उनके सामने लाखों की भीड़ ढांचा गिराती नजर आती है। कभी-कभी आंखे भर आती है कि यदि उन्हें कुछ हो जाता तो परिवार का क्या होता, लेकिन अब मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर गर्व महसूस हो रहा है।
ढांचा गिरने पर घर लाए थे एक ईंट
यह बाते बदरपुर के मुकेश कौशिक ने खुद पर गर्व महसूस करते हुए बताई। बताया कि वहां ढांचा गिरने के बाद अपने साथ एक ईंट लेकर वह अपने घर आ गए थे। 31 साल पहले अयोध्या में विवादित ढांचा किस तरह से गिराया गया और किस तरह का वहां 6 दिसंबर 1992 में माहौल था।
किस तरह कार सेवकों में अपने भगवान रामलला को विराजमान करने का जुनून था। आओ जानते है ग्रीन फील्ड कॉलोनी फरीदाबाद निवासी मुकेश कौशिक से आंखों देखी। मुकेश कौशिक ने बताया कि वह चार दिसंबर की रात में बदरपुर से अपने साथी विजय गुप्ता सहित दर्जनभर कारसेवकों के साथ ट्रेन में बिना रिजर्वेशन कराए ही चल दिए थे।
पांच दिसंबर की सुबह छह बजे वह अयोध्या पहुंचे और वहां सरयू नदी में स्नान करने के बाद भगवान श्रीराम के दर्शन किए। उसके बाद मंदिर में घूमने के बाद रात में परिसर में ही सो गए। उसके बाद छह दिसंबर की सुबह उठे और स्नान करने के बाद भगवान श्रीराम के जयघोष लगाने शुरू कर दिए थे।
उस समय मौजूद से दस लाख से ज्यादा कारसेवक
वहां करीब दस लाख से अधिक कारसेवक खड़े थे और उनके अंदर भगवान राम को उनका स्थान दिलाने का जोश भरा था। जब जय श्रीराम, रामलाल हम लाएंगे, मंदिर वहीं बनवाएंगे, एक धक्का और दो आदि के नारे लगते थे तो ऐसा लगता था कि आसमान की ऊंचाई कम रह गई हो और आसमान कहीं फट न जाए।
देखते ही देखते भीड़ ने विवादित ढांचा को गिराना शुरू कर दिया और दूर से आवाज आती थी कि पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे है, लेकिन किसी को अपनी जान की चिंता नहीं थी और हर कोई भगवान राम का मंदिर बनवाना चाहता था। मुकेश कौशिक ने बताया कि वह छह दिसंबर की रात में वहां से एक ईंट व पटका लेकर चल दिए।
उन्हें खुद पर गर्व महसूस हो रहा था और उस समय उनकी उम्र 32 साल थी। जब वह घर आए तो सभी ने प्रशंसा की। उसके बाद अपने कार्यालय गए तो वहां कुछ ने विरोध किया और कुछ ने पीठ थप थपाकर बधाई देते हुए उनकी हिम्मत बढ़ाई। आज अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा होने से लगता है जो कदम उन्होंने उठाया था आज वह पूरा हो रहा है। वह भी जल्द अयोध्या में जाकर भगवान श्रीराम के दर्शन करेंगे।
न जान की परवाह, न बच्चों की चिंता
मुकेश कौशिक बताते हैं कि उस समय उनकी उम्र 32 साल थी और शादी को दस साल हो गए थे। उस समय दो बेटे व एक बेटी थी, लेकिन अपने रामलला को विराजमान करने का जोश अलग ही था और रामलला के लिए अपने परिवार की चिंता तक नहीं की, लेकिन अब जब भी उस समय को याद करता हूं तो आंखों में आंसू निकल आते है तो यदि उनको गोली लग जाती तो उनके परिवार का क्या होता और वह किसके सहारे रहते।
पत्नी व बच्चे भी मारते थे ताने
मुकेश कौशिक बताते है जब वह वहां से वापस आए तो उसके कई साल बाद तक पत्नी व बच्चों ने खूब ताने मारे और उनसे कई माह तक बात तक नहीं की थी, लेकिन आज पत्नी व बच्चे भी उनके कदम को सही ठहराते है, क्योंकि भगवान राम को उनका घर जो मिल गया है।
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