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Museums in Delhi: इस साल दिल्ली को मिलेगा एक और म्यूजियम, जानिए इसमें क्या होगा खास?

दिल्ली का यह पहला किला है जिसका मुगलों से बहुत पहले का लंबा इतिहास है और यह बात हवा हवाई में नहीं की जा रही है इसके पूरे प्रमाण हैं। पुराना किला के टीले पर कभी बने महल से पांडवों ने अपनी राजधानी चलाई है। धार्मिक ग्रंस्थों के अनुसार यह वही स्थान है जहां पांडवों की राजधानी थी। इस समय को पांच हजार साल पुराना माना जा रहा है।

By V K Shukla Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Tue, 02 Jan 2024 01:11 PM (IST)
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Museums in Delhi: इस साल दिल्ली को मिलेगा एक और म्यूजियम, जानिए इसमें क्या होगा खास?
वी के शुक्ला,नई दिल्ली। अमेरिका से भारत वापस लाए गए 300 से अधिक पुरावशेष जल्द ही जनता पुराना किला में देख सकेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर पिछले साल अमेरिका ने अलग अलग हिस्सों में इन्हें भारत को सौंप दिया था।

इन पुरावशेष में अधिकतर मूर्तियां हैं।इन ऐतिहासिक मूर्तियों को पुराने किले में रखा जाएगा जिसकी तैयारियां की जा रही हैं।अप्रैल तक यहां म्यूजियम शुरू कर देने की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की योजना है।

पुराना किला से जुड़ा है लंबा इतिहास

पुराना किला में पहले से भी इसी तरह का एक म्यूजियम है। जहां विदेश से वापस लाईं गई कई मूर्तियों को रखा गया है। पुराना किला की बात करें तो यह किला भी अपने आप में एक इतिहास है।

दिल्ली का यह पहला किला है जिसका मुगलों से बहुत पहले का लंबा इतिहास है और यह बात हवा हवाई में नहीं की जा रही है, इसके पूरे प्रमाण हैं।

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अब तक छह बार पुराना किला में हुई है खोदाई

पुराना किला के टीले पर कभी बने महल से पांडवों ने अपनी राजधानी चलाई है। धार्मिक ग्रंस्थों के अनुसार यह वही स्थान है जहां पांडवों की राजधानी थी। इस समय को पांच हजार साल पुराना माना जा रहा है। इसी से संबंधित साक्ष्य जुटाने के लिए पुराना किला में 1955 से अब तक छह बार खोदाई हुई है।

आजादी के बाद से लेकर अभी तक छह बार इसके इतिहास को लेकर साक्ष्य जुटाने के लिए खोदाई हुई है।अभी तक करीब 3100 साल पहले से यहां बसावट के प्रमाण मिल चुके हैं। अमेरिका से लाई गईं मूर्तियों की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर न्यूयार्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास को कुछ साल पहले अमेरिकी अधिकारियों ने जो मूर्तियां लौटाई थीं, वे भारत आ चुकी हैं और पुराना किला में पहुंचा दी गई हैं।

तस्करी के गिरोहों द्वारा चुराई गई थीं धरोहर

मूर्तियां ईसा पूर्व 2000 साल तक पुरानी हैं। इन्हें लौटाते हुए अमेरिका ने कहा था कि हमें भारत के लोगों को सैकड़ों आश्चर्यजनक धरोहर को वापस करने पर गर्व है। ये धरोहर कई जटिल तस्करी के गिरोहों द्वारा चुराई गई थीं।अमेरिकी सरकार ने ये धरोहर अंतरराष्ट्रीय तस्कर सुभाष कपूर की आर्ट गैलरी, अन्य आर्ट गैलरी के साथ-साथ तस्करी के कई नेटवर्क से बरामद की थी।

सुभाष कपूर के खिलाफ एक जांच के परिणामस्वरूप 235 से अधिक धरोहर को जब्त कर लिया गया था, जिन्हें सीधे भारत से या अन्य अन्य देशों के माध्यम से अमेरिका ले जाया गया था।भारत और अमेरिका के बीच सांस्कृतिक विरासत को लेकर रिश्तों को मजबूती देने के उद्देश्य से अमेरिका ने इन्हें भारत वापस भेजने के लिए भारतीय अधिकारियों को सौंपा है।

2000 ईसा पूर्व के हैं कुछ पुरावशेष

बहुत सी कलाकृतियां 11वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी की अवधि के बीच की हैं। कुछ पुरावशेष 2000 ईसा पूर्व के हैं। टेराकोटा का एक फूलदान दूसरी शताब्दी का है। करीब 45 पुरावशेषष ईसा पूर्व दौर के हैं। कांस्य संग्रह में मुख्य रूप से लक्ष्मी नारायण, बुद्ध, विष्णु, शिव पार्वती और 24 जैन तीर्थंकरों की प्रसिद्ध मुद्राओं की अलंकृत मूर्तियां हैं।

देवताओं के अलावा कंकलामूर्ति, ब्राह्मी और नंदीकेश की भी मूर्तियां हैं।इन कलाकृतियों में तीन सिर वाले ब्रह्मा, रथ पर आरूढ़ सूर्य, शिव की दक्षिणामूर्ति, नृत्य करते गणेश की प्रतिमा भी है।इसी तरह खड़े बुद्ध, बोधिसत्व मजूश्री, तारा की मूर्तियां हैं। जैन धर्म की मूर्तियों में जैन तीर्थंकर, पद्मासन तीर्थंकर, जैन चौबिसी के साथ अनाकार युगल और ढोल बजाने वाली महिला की मूर्ति शामिल हैं।

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