शरिया बचाने को राजनीतिक समाधान भी तलाशेगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, राहुल गांधी और अमित शाह से मांगेगा समर्थन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता देने के ऐतिहासिक निर्णय के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उतर आया है। बोर्ड ने कहा कि वह शरिया को बचाने राजनीतिक समाधान भी तलाशेगा। बोर्ड को खासकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी व सपा मुखिया अखिलेश यादव से सकारात्मक समर्थन की उम्मीद है। साथ ही सत्ता पक्ष से भी समर्थन मांगेगा।
नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करता मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) मामले के समाधान के लिए राजनीतिक विकल्प भी तलाशेगा। बोर्ड ने तय किया है कि इस मामले को लेकर उसका प्रतिनिधिमंडल सत्ता पक्ष और विपक्षी दल के नेताओं से मिलकर संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की मांग करेगा।
खासकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी व सपा मुखिया अखिलेश यादव से सकारात्मक समर्थन की उम्मीद है। इंडी गठबंधन (INDI Alliance) को लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समाज का बड़ा समर्थन मिला है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया शरिया के खिलाफ
एक दिन पहले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमेटी की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए उसे शरिया के विरूद्ध बताया गया है। साथ ही कहा गया कि देश का मुस्लिम शरिया से बंधा है। यह निर्णय लागू होता है तो समाज को मुस्लिम कानून के विरूद्ध चलने को मजबूर किया जाएगा, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।कानूनी समिति को सौंपा मामला
वैसे, बोर्ड ने आगे की रणनीति तय करने के लिए मामले को अपनी कानूनी समिति को सौंप दिया है, जो कानूनी, संवैधानिक और लोकतांत्रिक विकल्प सुझाएगी। लेकिन बोर्ड को उम्मीद कम ही है कि इस मामले का हल न्यायालय से निकलेगा।
सुप्रीम कोर्ट जाकर कोई फायदा होगा?
बोर्ड के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार, पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट ऐसा निर्णय दे चुका है। इसलिए, कानून के जानकारों से गहनता से विमर्श हो रहा है कि पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने से कोई लाभ मिलेगा अथवा नहीं।सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने गत 10 जुलाई को दिए ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि तलाक शुदा मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ते की हकदार हैं। ऐसा ही फैसला सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1985 में ऐतिहासिक शाहबानो मामले में भी दिया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की असल चिंता इस निर्णय के साथ देश में बढ़ती समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मांग की है।
बोर्ड के पदाधिकारी के अनुसार, ऐसे में एक विकल्प संसद के जरिए कानून का बनता है। लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार से इस मामले में समर्थन की उम्मीद कम ही है। तब भी बोर्ड ने यह निर्णय लिया है कि हम सत्तापक्ष से मिलने के लिए समय मांगेंगे और अवसर मिलने पर अपनी मांग रखेंगे।
इसी तरह विपक्षी नेताओं से भी मिलना तय किया गया है। उन्होंने बताया कि अभी यह तय नहीं किया गया है कि सत्तापक्ष में प्रधानमंत्री या गृहमंत्री से मिलने का समय मांगा जाएगा या विपक्ष में राहुल गांधी या अखिलेश से। यह बाद में तय किया जाएगा। साथ ही विस्तृत मांगपत्र भी तैयार किया जाएगा। फिलहाल यह तय हुआ है कि हम सभी राजनीतिक दलों से मिलेंगे और अपनी मांग रखेंगे।
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