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'सरस्वती वंदना और सूर्य नमस्कार का विरोध करें मुस्लिम छात्र', जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अधिवेशन में प्रस्ताव पारित

प्रस्ताव में मुस्लिम अभिभावकों से आग्रह किया गया है कि वह अपने बच्चों में तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रति विश्वास पैदा करें और शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी बहुदेववादी प्रथाओं में भाग लेने से बचें। यदि जबरदस्ती की जाए तो विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें। यह प्रस्ताव ऐसे समय में लाया गया है जब मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा पर सरकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा जोर दिया जा रहा है।

By Nimish Hemant Edited By: Sonu Suman Updated: Fri, 05 Jul 2024 10:55 PM (IST)
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जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति के दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन शुक्रवार को प्रस्ताव पारित।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कभी आधुनिक शिक्षा की पैरोकारी करने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद शिक्षण संस्थानों में टकराव के नए रास्ते पर आगे बढ़ रही है। अपने इस मंसूबे को वह छात्रों के जरिये अमल में लाने की तैयारी कर रही है। जमीयत ने स्कूलों में सरस्वती वंदना, धार्मिक गीतों और सूर्य नमस्कार जैसी गतिविधियों को अधार्मिक बताते हुए मुस्लिम छात्रों से इनका बहिष्कार और विरोध करने का आह्वान किया है।

इसके साथ ही मुस्लिम छात्रों के लिए आधुनिक शिक्षा के साथ कुरान पढ़ने और कंठस्थ कराने तथा फारसी की शिक्षा की पैरोकारी की है। जमीयत मुख्यालय में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति के दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन शुक्रवार को इससे संबंधित प्रस्ताव पारित किया गया।

प्रस्ताव में मुस्लिम अभिभावकों से आग्रह किया गया है कि वह अपने बच्चों में तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रति विश्वास पैदा करें और शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी बहुदेववादी प्रथाओं में भाग लेने से बचें। यदि जबरदस्ती की जाए तो विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें। यह प्रस्ताव ऐसे समय में लाया गया है, जब मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा पर विभिन्न सरकारों के साथ ही बुद्धिजीवियों द्वारा भी जोर दिया जा रहा है। 

मुस्लिम युवाओं से आधुनिक शिक्षा का किया था आह्वान

खुद जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने एक दिन पहले अधिवेशन में मुस्लिम युवाओं से आधुनिक शिक्षा के माध्यम से देश की सेवा का आह्वान किया था। लेकिन अगले ही दिन शुक्रवार को मदनी ने कहा कि जमीयत विशुद्ध धार्मिक संगठन है। यह आधुनिक शिक्षा के विरोध में नहीं है, लेकिन हमारा स्पष्ट मानना है कि नई पीढ़ी को बुनियादी धार्मिक शिक्षा प्रदान किए बिना स्कूल की शिर्क (किसी को अल्लाह के बराबर दर्जा देना) वाली शिक्षाओं पर आधारित पाठ्यक्रम न पढ़ाया जाए।

आरटीई इस्लामी मदरसों पर लागू नहीं: मदनी

मौलाना महमूद मदनी ने उत्तर प्रदेश के गैरमान्यता प्राप्त 4,204 मदरसों में पढ़ रहे बच्चों को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून के तहत अन्य स्कूलों में प्रवेश दिलाने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय का भी तीखा विरोध किया। इसपर टकराव वाला रुख अपनाते हुए मदनी ने कहा कि हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि इस्लामी मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून से अलग हैं। यह अधिकार हमें संविधान ने दिया है, जिसे हम छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। 

धर्म आधारित आरक्षण की मांग

अधिवेशन में धर्म आधारित आरक्षण की पैरोकारी करते हुए सरकार से मांग की गई कि अनुच्छेद 341 में संशोधन किया जाए, ताकि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल राज्यों की तरह मुसलमानों और ईसाइयों को पूरे देश में आरक्षण का अधिकार मिले। इसके साथ ही फलस्तीन मामले में इजराइल को भारत द्वारा हथियार देने, देश में उन्मादी हिंसा, सामान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को लेकर सरकार की आलोचना की गई।

वजू का पानी रिसाइकिल किया जाए

अधिवेशन में कहा गया कि पानी का संरक्षण और पौधारोपण मानवता के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य हैं। हमारी मस्जिदों में ऐसी व्यवस्था हो कि वजू का पानी रीसाइकिल और री-यूज हो जाए। इसी तरह अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए। यह सदका-ए-जारिया (जिसका पुण्य मिलता रहेगा) भी है।

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