दुश्मनों पर चीते की फुर्ती से किया था हमला, पीछे नहीं हटाए कदम, हंसते हुए हो गए शहीद
21 जुलाई 1999 को दुश्मनों ने नरेंद्र के कैंप पर हमला बोल दिया। नरेंद्र के साथ ही उनकी बटालियन के जवानों ने मजबूती से मोर्चा संभालते हुए दुश्मनों को पीछे हटाया।
By Amit MishraEdited By: Updated: Mon, 30 Jul 2018 04:38 PM (IST)
नोएडा [मनीष तिवारी]। कारगिल में शहीद हुए वीरों की यादें परिवार के सदस्यों, गांव, मोहल्ले में ही नहीं देश के हर नागरिकों के जहन में आज भी ताजा हैं। कारगिल शहीदों में ग्रेटर नोएडा के सैथली गांव निवासी नरेंद्र भाटी का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। लड़ाई में उन्होंने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। बाद में वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी वीरगाथा आज भी लोगों की जुबान पर हैं।
दुश्मनों को यमलोक पहुंचाने की ठान लीनरेंद्र का सपना देश की सेवा करना था। सेवा का जज्बा लिए वह 1993 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी ड्यूटी बारामुला के चंडुसा क्षेत्र में थी। उनकी 130 बटालियन के जवानों ने दुश्मनों को यमलोक पहुंचाने की ठान ली थी। 21 जुलाई 1999 को दुश्मनों ने उनके कैंप पर हमला बोल दिया। नरेंद्र के साथ ही उनकी बटालियन के जवानों ने मजबूती से मोर्चा संभालते हुए दुश्मनों को पीछे हटाया।
कदम पीछे नहीं हटे
दोनों ओर से गोलियों की बौछार शुरू हो गई। नरेंद्र व साथी जवान चीते की फुर्ती दिखाते हुए दुश्मनों पर टूट पड़े। डटकर सामना करते हुए नरेंद्र ने कई दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया। इस दौरान एक गोली नरेंद्र को लगी। दिल में देश की रक्षा का जज्बा होने के कारण उनके कदम पीछे नहीं हटे। जख्मी होने बावजूद यह शेर मोर्चे पर डटा रहा। पाकिस्तानी घुसपैठियों को लगा कि यह रणबांकुरा अपने कदम पीछे नहीं हटाएगा तो उन्होंने ग्रेनेड से हमला कर दिया और नरेंद्र हंसते-हंसते शहीद हो गए।
गांव में बना मेमोरियल
गांव में शव पहुंचते ही हजारों लोग जुट गए। शहीद के सम्मान में सभी ने वीरता के नारे लगाए। नरेंद्र की मूर्ति लगाकर गांव में मेमोरियल स्थल बनाया गया, जिसका उद्घाटन करने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गांव आए थे। बाद में सैथली से छौलस, नंगला गांव तक जाने वाली लगभग दस किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण भी शहीद नरेंद्र के नाम पर किया गया।
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