National Doctor’s Day 2025: मिलिए डॉ. अनिता सक्सेना से... जिन्होंने हजारों मासूमों के दिल का इलाज कर दिया नया जीवन
एम्स की पूर्व कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अनिता सक्सेना ने हृदय की जन्मजात बीमारियों के इलाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स शुरू कराया और प्रोस्टाग्लैंडीन इंजेक्शन के देश में उत्पादन को बढ़ावा दिया। उनके नेतृत्व में हुए अध्ययनों से जन्मजात हृदय रोगों की गंभीरता का पता चला जिससे इलाज की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।

रणविजय सिंह, नई दिल्ली। वैसे तो देश में ऐसे कई डॉक्टर हुए जिन्होंने अपने कार्य व नवाचार से चिकित्सा सुविधाओं को सुलभ बनाने में अहम योगदान दिया। खासतौर पर बात जब हृदय रोगों की हो तो कई चर्चित डॉक्टरों के चेहरे नजर के सामने आ जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जो चर्चाओं में भले कम रहे, लेकिन लीक से हटकर काम किया।
उन्हीं में से एक हैं मासूमों के दिल की डॉक्टर अनिता सक्सेना, जिन्होंने दिल की बीमारी से जूझते हजारों बच्चों को इलाज के जरिये नया जीवन दिया और बच्चों के दिल के इलाज की सुविधाएं बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। एम्स के कार्डियोलाजी के विभागाध्यक्ष पद से वर्ष 2021 में सेवानिवृत होने के बाद वह अभी ओखला स्थित फोर्टिस अस्पताल में सेवा दे रही हैं।
वर्ष 1985 में जब उन्होंने बतौर फैकल्टी एम्स में ज्वाइन किया था तब पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी के अलग डॉक्टर नहीं होते थे। इस वजह से बच्चों के दिल की बीमारियों का ठीक से इलाज नहीं हो पाता था। यह बात उन्हें खटकती थी। इसलिए वह वर्ष 1988 में इंग्लैंड में पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी में एक वर्ष का प्रशिक्षण लेकर वापस एम्स में बच्चों के हृदय रोग का इलाज शुरू किया।
हृदय की जन्मजात बीमारियों की सुविधाएं बढ़ाने में निभाई अहम भूमिका
उन्होंने बताया कि देश में हर वर्ष दो लाख से ढाई लाख बच्चे हृदय की जन्मजात बीमारियों के साथ जन्म लेते हैं। 40,000-50,000 हजार बच्चों की बीमारी इतनी गंभीर होती है कि वे बच नहीं पाते हैं। पहले ऐसा कोई आंकड़ा मौजूद नहीं था।
लिहाजा, इस समस्या को कोई समझने को तैयार नहीं था। उनके नेतृत्व में वर्ष 2009 से तीन वर्ष तक चले एक अध्ययन में 20 हजार नवजात बच्चे की स्क्रीनिंग व इकोकार्डियोग्राफी जांच की गई। इसमें एक हजार में से नौ बच्चे दिल की बीमारी से पीड़ित पाए गए।
तब यह बात सामने आई कि देश में हर सौ में से एक बच्चा दिल की जन्मजात बीमारी से पीड़ित होता है। पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी के डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए उन्होंने पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स की शुरुआत कराई। उन्होंने कहा कि पहले के मुकाबले पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी की सुविधाएं बड़ी हैं, लेकिन सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में अभी काफी सुधार की संभावनाएं हैं।
प्रोस्टाग्लैंडीन इंजेक्शन देश में बनाने के लिए किया प्रेरित
एक वक्त प्रोस्टाग्लैंडीन इंजेक्शन देश में नहीं बनता था। दिल की जन्मजात बीमारी से पीड़ित कई नवजात बच्चों को यह इंजेक्शन लगाने की जरूरत पड़ती है। विदेशी फार्मा कंपनियों द्वारा निर्मित इंजेक्शन महंगा होने से बहुत मरीज खरीद नहीं पाते थे।
इसके मद्देनजर कुछ फार्मा कंपनियों के अधिकारियों से बातचीत की। जिसके बाद यह इंजेक्शन यहां बनना शुरू हुआ। एम्स के बाद उन्हें पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, रोहतक का वाइस चांसलर नियुक्त होने पर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने वहां भी पीडियाट्रिक कार्डियोलाजी की शुरुआत कराई।
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