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    लोकतंत्र और जाति व्यवस्था एक साथ नहीं रह सकती है... पूर्व स्पीकर मीरा कुमार ने अखिल भारतीय अध्यक्ष सम्मेलन में कहा

    दिल्ली विधानसभा में अखिल भारतीय अध्यक्ष सम्मेलन में मीरा कुमार ने कहा कि लोकतंत्र और जाति व्यवस्था साथ नहीं चल सकते। उन्होंने विट्ठलभाई पटेल के योगदान को भी सराहा जिन्होंने केंद्रीय विधानसभा में विधायी मानदंडों की स्थापना की। मीरा कुमार ने स्वतंत्रता आंदोलन में 1857 से लेकर विट्ठल भाई पटेल के संघर्ष को याद किया।

    By V K Shukla Edited By: Kushagra Mishra Updated: Mon, 25 Aug 2025 06:12 PM (IST)
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    दिल्ली विधानसभा में आयोजित अखिल भारतीय अध्यक्ष सम्मेलन के अंतिम दिन पहुंची मीरा कुमार। जागरण

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा में आयोजित अखिल भारतीय अध्यक्ष सम्मेलन के अंतिम दिन सोमवार को पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि लोकतंत्र और जाति व्यवस्था एक साथ नहीं रह सकती है।

    कहा कि जैसे अमरबेल जिस पेड़ पर उगती है, उसे सुखा देती है और इस तरह खुद को जीवित रखती है, वैसे ही जाति व्यवस्था भी समाज के साथ ऐसा ही करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि समानता स्थापित करना लोकतंत्र की आत्मा है, जो अंततः इसके बिना निष्प्राण हो जाएगी।

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    इसके साथ ही कुमार ने ब्रिटिश शासन के दौरान केंद्रीय विधानसभा के लिए चुने गए पहले भारतीय अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल के योगदान पर प्रकाश डाला और कहा कि लोकसभा सत्रों की अध्यक्षता करते हुए उनके संघर्षों और अनुभवों ने उन्हें प्रेरित किया है।

    विट्ठल भाई पटेल के केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष रहते हुए विधायी मानदंडों को स्थापित किया। मीरा कुमार ने कहा कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने का आंदोलन 1857 में शुरू हो चुका था।

    अंग्रेजी सत्ता ने उसे कुचलना के लिए भरसर प्रयास किया। उस समय की संसद में सारे अधिकार वायसराय के पास होते थे। संसद में प्रस्ताव लाए जा सकते थे, पास किया जा सकते थे मगर उन्हें मानने का अधिकार या ना मानने का अधिकार वायसराय के पास होता था ।

    उस समय केंद्रीय विधानसभा पर पूरी तरह अंग्रेजी सत्ता का नियंत्रण होता था। कहा कि 1925 में जब विट्ठल भाई पटेल केंद्रीय विधानसभा के पहले भारतीय अध्यक्ष बने तो अंग्रेजों ने उस समय सोचा भी नहीं था कि केंद्रीय विधानसभा में विट्ठल भाई पटेल अंग्रेजों के सारे अधिकारों को छिन्न-भिन्न कर देंगे।

    विट्ठल भाई पटेल 1925 से लेकर 1930 तक केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष रहे और उन्होंने 1930 में स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने के लिए इस पद से त्यागपत्र दिया। अपने इस कार्यकाल में उन्होंने अंग्रेजों को विधायी परंपराओं का पालन करना सिखाया।

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