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कोरोना के नए वैरिएंट से बचाव के लिए क्या बूस्टर डोज की जरूरत है? सफदरजंग के डायरेक्टर जुगल ने बताई कई जरूरी बातें

New Variant of Corona प्रदूषण और वायरल संक्रमण मिल जाता है तो और घातक हो जाता है। इसका कारण यह है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्व सांस के जरिये शरीर में पहुंचकर श्वसन तंत्र को जख्मी करते हैं। इस वजह से प्रदूषण बढ़ने पर नाक व गले में जलन जैसा महसूस होता है। प्रदूषण रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करती है।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Mon, 25 Dec 2023 06:30 AM (IST)
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सफदरजंग के डायरेक्टर जुगल ने बताई कई जरूरी बातें

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में ठंड के साथ-साथ इन दिनों प्रदूषण भी अधिक बना हुआ है। वहीं कोरोना के नए सब-वैरिएंट के कारण संक्रमण बढ़ने की आंशका भी जताई जा रही है। दिल्ली में अभी तक कोरोना के खास मामले नहीं बढ़े हैं। फिर भी नए सब-वैरिएंट को लेकर थोड़े लोग चिंतित दिखने लगे हैं।

सरकार ने भी अस्पतालों को अलर्ट जारी कर जांच बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। इसके मद्देनजर कोरोना के नए सब-वैरिएंट से संक्रमण बढ़ने की संभावनाओं, प्रदूषण के बीच वायरस के संक्रमण के प्रभाव, ठंड के बीच प्रदूषण अधिक होने से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान और उससे बचाव के तौर तरीकों पर सफदरजंग अस्पताल के प्रिवेंटिव कम्युनिटी मेडिसिन के निदेशक प्रोफेसर डा. जुगल किशोर से रणविजय सिंह ने बातचीत की। पेश है उस

बातचीत का प्रमुख अंश:-

कोरोना के नए सब-वेरिएंट जेएन.1 से संक्रमण बढ़ने की आशंका जताई जा रही है, यह कितनी चिंता की बात है?

देश के कुछ हिस्से में अभी कोरोना के जो मामले देखे गए हैं, उसके मामले अमेरिका में सितंबर में आने शुरू हुए थे। इसके बाद अमेरिका में मामले बढ़ते गए। वहां के लोगों के माध्यम से दूसरे कुछ देशों में इसका संक्रमण पहुंचा। यह आमिक्रोन के ही वैरिएंट बीए.2.86 के स्वरूप में बदलाव होने से बना है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे रुचि का वैरिएंट बताया है।

इसका मतलब है कि इसका संक्रमण बढ़ने से मामले बढ़ेंगे लेकिन यह ज्यादा घातक नहीं होगा। डब्ल्यूएचओ ने इस चिंताजनक वैरिएंट नहीं बताया है। कोरोना के मामले बढ़ते घटते रहेंगे। यह नया सब-वैरिएंट संक्रमण करेगा, यह सही है लेकिन ओमिक्रोन का वैरिएंट होने से जोखिम नहीं है। खांसी, जुकाम, सर्दी, हल्का बुखार व शरीर में दर्द जैसी परेशानियां होंगी। पहले से सांस, किडनी, डायबिटीज, दिल, हाइपरटेंशन इत्यादि पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों व बुजुर्गों को निमोनिया होने का खतरा रहेगा। इसलिए सतर्क रहना जरूरी है।

इस वैरिएंट को लेकर लोगों की चिंता बढ़ गई, आप इसे किस रूप में देखते हैं?

सरकार ने इसको लेकर अलर्ट इसलिए जारी किया है। यह इसलिए जरूरी है कि क्योंकि यह नया सब-वैरिएंट जितना तेजी फैलेगा, उसके स्वरूप में भी बदलाव होने का खतरा उतना ही ज्यादा रहेगा। इसलिए जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिये वायरस पर नजर रखना और सतर्कता जरूरी है। साथ ही संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी है कि अनावश्यक रूप से भीड़ वाली जगहों पर नहीं जाना है।

इन दिनों प्रदूषण भी अधिक है, क्या प्रदूषण भी संक्रमण बढ़ाने में जोखिम का काम कर सकता है?

प्रदूषण और वायरल संक्रमण मिल जाता है तो और घातक हो जाता है। इसका कारण यह है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्व सांस के जरिये शरीर में पहुंचकर श्वसन तंत्र को जख्मी करते हैं। इस वजह से प्रदूषण बढ़ने पर नाक व गले में जलन जैसा महसूस होता है। प्रदूषण रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करती है। ऐसे में किसी वायरस का संक्रमण होने पर बीमारी गंभीर होने की आशंका रहती है।

इसलिए सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव डिजीज ) व अस्थमा के मरीजों को अपनी दवाएं लगातार लेते रहें। इसके अलावा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक रखने के लिए पूरी नींद लें व पौष्टिक भोजन करें। खांसी, जुकाम हो तो मास्क लगाकर बाहर निकलें और नियमित अंतराल पर हाथ धोते रहें।

क्या प्रदूषण के कारण कोरोना या फ्लू का संक्रमण अधिक बढ़ने का खतरा रहता है?

मरीजों के खांसने और छींकने के कारण निकले ड्रापलेट से कोरोना और फ्लू का संक्रमण फैलता है। वायरस ड्रापलेट में मौजूद रहते हैं। ऐसी थ्योरी है कि संक्रमित मरीजों के खांसने या छींकने से निकला ड्रापलेट वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्वों के साथ चिपककर थोड़ी अधिक दूर जा सकते हैं। इससे संक्रमण अधिक हो सकता है लेकिन किसी अध्ययन में यह बात सामने नहीं आई है।

कोरोना के नए सब-वैरिएंट से बचाव के लिए क्या टीके की अतिरिक्त डोज लिए जाने की जरूरत है?

मौजूदा परिस्थिति में टीके की अतिरिक्त डोज की जरूरत नहीं दिखती। ठंड के बीच प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए किस तरह नुकसानदायक हो सकता है? यदि मौसम ठंडी हो और हवा नहीं चलने तो प्रदूषक तत्व वातावरण में ज्यादा ऊपर नहीं उठा पाते। इस वजह से प्रदूषक तत्व वातावरण में कम दूरी पर मौजूद रहते हैं। इस वजह से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस होने की आशंका रहती है।

इसके अलावा ठंड होने पर शरीर का थर्मल सिस्टम बिगड़ने से धमनियों में सिकुड़न होता है। वहीं प्रदूषण होने पर पीएम-2.5 सांस के जरिये ब्लड में पहुंचने से धमनियों में ब्लाकेज हो सकता है। इस वजह से हार्ट अटैक का जोखिम रहता है। इस वजह से ठंड के साथ प्रदूषण अधिक घातक होता है। रात व सुबह के वक्त तापमान कम रहता है। इस दौरान हार्ट अटैक का खतरा अधिक होता है। 

इसके अलावा सर्दी के मौसम में ठंड से बचने के लिए हम घर की खिड़कियों को भी बंद रखते हैं। साथ ही कंबल या रजाई में चेहरा भी ढंक कर सोने पर कई बार आक्सीजन की कमी हो जाती है। सोते वक्त यह भी कई बार हार्ट अटैक का कारण बनता है।

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