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महिलाओं के लिए रात अंधेरी है रोशन करने होंगे चिराग, रात में काम करने से जुड़े हैं कई सामाजिक भय

रात में कोई महिला जब काम से घर लौट रही होती है तो वह स्वयं की सुरक्षा समाज के सवालों की चिंता करती रहती है। उसके जेहन में चल रहा होता है कि घर कैसे पहुंचूंगी? रास्ते में कोई मुश्किल तो नहीं होगी? घरवाले कहेंगे इतनी देर कैसे हो गई?

By Shashank PandeyEdited By: Updated: Sat, 20 Feb 2021 09:51 AM (IST)
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महिलाओं की तकलीफें तब आसान होंगी, जब समाज साथ देगा। (फोटो: दैनिक जागरण/प्रतीकात्मक)

नई दिल्ली, यशा माथुर। देर रात काम करने के बाद जब घर जाती हूं तो अपार्टमेंट की लिफ्ट में चुपचाप, नजरें चुराकर घुसती हूं और भगवान से मनाती हूं कि मुझे कोई न देखे। एक अपराधी की तरह महसूस करती हूं मैं। अगर किसी दिन कोई टकरा गया तो कहना नहीं भूलता है, इतनी देर से आती हो तुम। मुझे अपनी सफाई देना बिल्कुल पसंद नहीं है। मैं कार से जाती हूं फिर भी सुरक्षा की चिंता रहती है। घर के लोग जागते रहते हैं। उन्हें मेरे रात में काम करने से एतराज नहीं है, लेकिन समाज के सवाल विचलित करते हैं। मुझे एहसास कराते हैं जैसे मैं गलत काम कर रही हूं।

हाल ही में मेरे साथ ठक-ठक गिरोह वाली घटना हुई। दो आदमियों ने मेरी गाड़ी को ठक-ठक किया। जब मैंने गाड़ी का शीशा नीचे किया तो उन लोगों ने कार में कळ्छ खराब होने की बात कही। कार रोककर जब मैं खराबी देखने के लिए नीचे उतरी तो इस दौरान गाड़ी की अगली सीट पर रखा मेरा बैग पार हो गया, जिसमें कुछ जरूरी कागजात, कुछ नकदी और गैजेट्स थे। पुलिस आज तक कोई सुराग नहीं ढूंढ़ पाई है, लेकिन रात में ड्राइविंग को लेकर मैं जरूर डर गई हूं। जब शहर में रहकर इस तरह की स्थितियां मैं झेल रही हूं तो ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए रात में काम करना कितना मुश्किल होता होगा।

बदल जाता है नजरिया

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों बजट पेश करते समय आधी आबादी को रात की पारी में सभी श्रेणी के काम करने की इजाजत दी है और पर्याप्त सुरक्षा का भरोसा दिलाया है ताकि देश की र्आिथक प्रगति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सके। वित्त मंत्री का कदम सकारात्मक है, लेकिन समाज भी महिलाओं को रात में देर तक काम करने को सकारात्मक तरीके से ले तब न। महिलाओं के रात में देर तक काम करने और चांद तले घर लौटने के बीच सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसका दुरुस्त होना जरूरी है। महिलाओं को रात में काम करने पर क्या सुविधाएं मिल रही हैं और क्या मिलनी चाहिए? यह बहस का विषय है। महिलाओं की समस्याओं को लेकर सजग संस्थान ब्रेकथ्रू की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य कहती हैं, काम करना औरत के लिए वैसे ही मुश्किल होता है। 

जब महिलाएं घर से बाहर काम के लिए जाती हैं तो उन पर दोहरी जिम्मेदारी आ जाती है। पति, भाई या पिता घर का काम करें तो समाज ठीक नहीं मानता। दूसरे, महिलाएं जब घर से बाहर आकर काम करती हैं तो समाज, परिवार के नजरिए में फर्क आ जाता है जिससे उन्हेंं जूझना पड़ता है। रात में काम करने वाली लड़कियों के लिए समाज सवाल उठाता है कि वे जाती कहां हैं? हम जब फैक्ट्री में औरतों के साथ रात में काम करते थे तो उन्होंने बताया कि उनके पति पूछते हैं कि तुम हर रोज एक ही ऑटो वाले के साथ फैक्ट्री क्यों जाती हो? उसके साथ तुम्हारा क्या संबंध है? पति ने यह नहीं सोचा कि सुरक्षा के लिहाज से मैैंने एक ऑटो वाला तय किया है।

बिना डरे निपटिए सवालों से

जब लड़कियां देर रात काम कर लौटती हैं तो वे पहले से ही घबराई होती हैं। उन्हेंं समाज का भय होता है। चोरी-छिपे घर में दाखिल होती हैं और कतराती हैं कि लोगों की सवाल पूछती आंखें उन्हेंं देखें नहीं, उनसे कुछ पूछे नहीं, लेकिन कुछ लोग सवाल करने से बाज नहीं आते। उनसे कैसे निपटा जाए? आप पहली बार अपनी तरफ से अपने हालात, काम के घंटे और ड्यूटी के बारे में धीरज के साथ बता सकती हैं, लेकिन जब कोई बार-बार पूछे तो उसे समझा दीजिए कि यह उनकी चिंता का विषय नहीं है।

आकांक्षा सहगल टीवी चैनल की नौकरी के दौरान अक्सर लेट आतीं तो देखतीं कि पड़ोस वाली आंटी ने दरवाजा खोलकर झांका है और उन्हेंं देखा है। हर दिन ऐसा ही होता। एक दिन आंटी से रहा नहीं गया और पूछ बैठीं, बेटा इतनी रात में कहां से आती हो? आकांक्षा ने कहा, आंटी जब दिन में घर पर रहूंगी तो आप मेरे यहां आइए मैं आपको आराम से हर चीज बताऊंगी। वैसे मेरी लाइफ से आपको क्या लेना है? इसके बाद उन आंटी ने न तो कभी दरवाजा खोलकर देखा और न ही कोई प्रश्न किया। कुछ इस तरह से बिना डरे सामना भी करना होता है समाज के सवालों का।

कंपनी कैब से मानसिक शांति

विश्व बैंक के मुताबिक भारत में साल 2020 में श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 19 फीसद है। इस भागीदारी को बढ़ाने के लिए महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे लाना जरूरी है। रात में काम को बेहतर बनाना भी कार्यस्थल की स्थितियों को सुधारने का ही हिस्सा है जिससे महिला कर्मचारी सुविधा महसूस कर सकें और काम करने के लिए उत्साहित रहें। सुविधा के नाम पर कळ्छ बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी महिला कर्मचारियों को ऑफिस आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट उपलब्ध कराती हैं, जो काफी हद तक महिलाओं को सहज करता है। हालांकि इसका पैसा उन्हीं से लिया जाता है और कई लोगों को साथ लेने के चक्कर में कई बार जल्दी जाना और देर से घर पहुंचना पड़ता है, लेकिन इस विकल्प को लेकर लड़कियां मानसिक शांति महसूस करती हैं।

मैटलाइफ में सीनियर एसोसिएट, सप्लाई चेन मैनेजमेंट, अश्मिता मिश्रा कहती हैं, पिछले पांच साल से नाइट शिफ्ट कर रही हूं। मुझे अभी तक कोई समस्या नहीं हुई है। ऑफिस में भी माहौल ठीक है। हमारी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। ट्रांसपोर्ट दिया जाता है। हम शाम साढ़े पांच बजे से रात ढाई बजे तक काम करते हैं। इसके बाद हमें रोका नहीं जाता। हां, अगर काम ज्यादा है तो शिफ्ट से कुछ देर पहले बुलाया जाता है।

कर रहीं दूसरों की सुरक्षा

पुणे की दीपा परब ने समाज के नियमों और सोच से अलग हटकर देश का पहला महिला बाउंसर ग्रुप रणरागिनी बनाया है, जो अपनी ही नहीं, बल्कि दूसरे लोगों की भी सुरक्षा करता है। दीपा को महिलाओं से किए जाने वाले फर्क पर एतराज है। वह कहती हैं कि क्या रात पर पुरुषों का एकाधिकार है? क्यों महिलाएं रात में बाहर नहीं जा सकतीं और अगर वे ऐसा करती हैं तो उनकी नैतिकता और चरित्र पर सवाल क्यों उठाए जाते हैं? इन सवालों का जवाब मैं रणरागिनी बनकर देना चाहती हूं?। मैं लोगों के दिमाग से यह बात निकालना चाहती हूं कि रात में घर से बाहर निकलकर काम करने वाली महिलाओं का सीधा संबंध उनके चरित्र से होता है। लोगों को अपनी निम्न मानसिकता को बदलना होगा और ये बदलाव सिर्फ महिलाएं ही ला सकती हैं। एक मीडिया संगठन में काम करने वाली वंदना कहती हैं, मैंने कई वरिष्ठ लोगों के बारे में सुना है कि वे लड़कियों को जॉब पर रखना ही नहीं चाहते। वे कहते हैं कि लड़कियां एक तो छुट्टियां बहुत लेती हैं। दूसरे, उनको काम के लिए देर रात में रोक नहीं सकते। फील्ड में नहीं भेज सकते। यह सरासर नाइंसाफी है। कई बार इंटरव्यू में ही पूछ लिया जाता है कि वे दफ्तर कैसे आएंगी? संस्थानों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने यहां महिलाओं के अनुरूप माहौल बनाएं। उनको अधिक मौके दें। अवसर व सुविधाएं दें ताकि बराबरी का वातावरण बन सके।

रात में खुद की सुरक्षा कैसे करें

- अपनी कैब की जानकारी घरवालों को फॉरवर्ड कर दें।

- अपनी लाइव लोकेशन भी शेयर कर लें।

- अपने फोन की हिस्ट्री में अपने घर का नंबर सबसे ऊपर रखें।

- ऑटो में हैं तो उसके नंबर का फोटो खींचकर स्वजनों को भेज दें।

- चिली स्प्रे, कोई नुकीली चीज अपने साथ रखें।

- शोर मचाने से परहेज न करें।

- सीसीटीवी कैमरे की जद में पहुंचने की कोशिश करें।

- नई तकनीक के साथ आ रहे सेफ्टी डिवाइस की जानकारी रखें और एक-दो खरीद ही लें।

- सुरक्षा से जुड़े एप फोन में रखें।

परिवार करे सहयोग संस्थान बनें जवाबदेह

ब्रेकथ्रू संस्था की अध्यक्ष व सीईओ के सोहिनी भट्टाचार्य के मुताबिक, सुरक्षा की बात करें तो इसको लेकर हमारे देश में बहस छिड़ने के बावजूद महिलाएं सड़क पर, बस स्टॉप पर सुरक्षित नहीं हैं। सार्वजनिक स्थलों पर वे यौन शोषण झेलती हैं, लेकिन उनके पास ऐसा कोई कानूनी कदम नहीं होता जिसके प्रयोग से वे एफआइआर आदि करवा सकें। मेरे खयाल से सुरक्षा हर बार औरत की ही जिम्मेदारी बन जाती है। उससे ही बोला जाता है कि बैग में मिर्च का स्प्रे रखो, सेल्फ डिफेंस सीखो या रात को काम पर बाहर न जाओ, लेकिन अगर आप काम करती हैं तो आपको रात में भी कार्यस्थल पर जाना पड़ सकता है। इसमें पहली जिम्मेदारी तो परिवार की होगी, जो महिला के साथ सहयोग करे और उसके रात में नौकरी करने को बुरा न माने। कंपनी की भी जवाबदेही है जैसे रात को महिला अकेली घर जा रही है तो उसे सुरक्षित वाहन उपलब्ध करवाए। जहां से वाहन आ रहा है उस वेंडर को भी जवाबदेह बनाया जाए। जहां महिला-पुरुष साथ काम कर रहे हैं वहां सहयोगियों को महिला के आसपास ऐसा वातावरण बनाना चाहिए कि कोई उसके बारे में गलत बात न कर सके। ऐसा माहौल बने, जो औरत के लिए सुरक्षित और सकारात्मक हो।

कंपनी की तरफ से यौन शोषण की नीति पर अमल करना और उसके नियमों को लागू करना जरूरी है। इसके अलावा, कानून व्यवस्था लागू करने वालों को भी महिलाओं की सुरक्षा के प्रति जागरूक किए जाने की जरूरत है, क्योंकि इनकी मानसिकता भी यही होती है कि अगर औरत रात में काम कर रही है तो वह आसानी से टारगेट बनाई जा सकती है। इनको यह बताने की जरूरत है कि औरत की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी ही है। अगर कोई घटना घटती है तो उसे गाइड करना उनका कर्तव्य है।

अपनी सुरक्षा खुद ही देखनी होगी

प्रोफेशनल मॉडल शिवाली राजपूत कहती हैं कि मैं रात को घर आती हूं तो लोगों की बदली निगाहों का सामना करना पड़ता है। आज जिस तरह का माहौल है उसमें हमें अपनी सुरक्षा खुद ही मैनेज करनी पड़ेगी। मेरे शो रात को ही होते हैं। मेरा परिवार भी सहयोग करता है। मैं हर दिन नए लोगों के साथ मिलती हूं, क्योंकि नए लोग हमें जानेंगे तभी हमें काम मिलेगा। कभी-कभी मम्मी कहती हैं कि रात में इतनी देर से आना ठीक नहीं, लेकिन हमारा काम ऐसा है कि देर रात होती ही है। कई बार तो मैं अपने भाई को बुला लेती हूं।

मेरे लिए महिला सुरक्षा अहम

एंटरप्रेन्योर इंजीनियर खुशबू सोलंकी शर्मा कहती हैं कि हम अहमदाबाद में रहते हैं। हमारे यहां महिलाओं की सुरक्षा का बहुत ध्यान रखा जाता है। मैं रात के दो बजे अपनी गाड़ी से घर जाती हूं, लेकिन कभी कोई दिक्कत नहीं आई। हालांकि कंपनी की डायरेक्टर के रूप में कभी हमें महिला कर्मचारियों को काम से रोकना पड़ता है तो ऑफिस में सहयोगी साथ रहते हैं। कोई न कोई रुकता है। मैं खुद भी होती हूं और यह सुनिश्चित करती हूं कि सब लोग सुरक्षित घर पहुंच जाएं।