दिल्ली-NRC में बड़े भूकंप का खतरा नहीं, लेकिन भवनों की रेट्रोफिटिंग है जरूरी
दिल्ली-एनसीआर में आए दिन भंकूप के झटके आते रहते हैं जिससे प्रदेश के यमुनापार और पुरानी दिल्ली की इमारतों को नुकसान की आशंकाएं बनी रहती है। इसी मुद्दे पर डा. ओपी मिश्रा से संजीव गुप्ता ने बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी बातचीत के अंश।
By Jagran NewsEdited By: Nitin YadavUpdated: Mon, 03 Apr 2023 08:22 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। सिस्मिक जोन चार में होने के कारण दिल्ली-एनसीआर को आए दिन भूकंप के झटके लगते रहते हैं। हालांकि, ये झटके छोटे और चंद सेकंड के ही होते हैं, लेकिन इससे लोगों में घबराहट होना आम बात है।
यमुनापार और पुरानी दिल्ली की इमारतों को नुकसान की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में यह सवाल भी हर बार सामने आ जाता है कि अगर कभी बड़ा भूकंप आ गया, तो क्या होगा? आखिर भूकंप के झटकों से दिल्ली-एनसीआर का क्षेत्र कितना सुरक्षित है? कितनी तीव्रता का भूकंप यहां तबाही मचा सकता है?
भूकंप से जानमाल के संभावित नुकसान को रोकने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा रहे हैं? ऐसे ही सवालों को लेकर केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक डा. ओपी मिश्रा से संजीव गुप्ता ने बातचीत की।
कुछ-कुछ समय के अंतराल पर दिल्ली-एनसीआर को भूकंप के झटके लगते रहते हैं। क्या यह भविष्य के प्रति किसी बड़े खतरे का संकेत है?
ये झटके किसी खतरे का नहीं, बल्कि पृथ्वी के गतिमान होने का संकेत हैं। जमीन के भीतर कुछ-कुछ गतिविधियां चलती रहती हैं। जहां तक खतरे की बात है, तो उसके लिए सूक्ष्म माइक्रोजोनेशन की प्रक्रिया पर काम चल रहा है। इसके तहत मिट्टी की जांच, इमारतों, पुलों एवं पुराने भवनों की मजबूती को परखा जा रहा है। इसके बाद इसी के अनुरूप स्थानीय प्रशासन को स्थिति की बेहतरी के सुझाव दिए जाते हैं।
क्या दिल्ली-एनसीआर की माइक्रोजोनेशन प्रक्रिया पूरी हो गई है?
जी हां, इस पर वर्ष 2016 में एक रिपोर्ट भी जारी की जा चुकी है, जिसके मुताबिक दिल्ली-एनसीआर सिस्मिक जोन चार, यानी दूसरे सबसे ज्यादा संवेदनशील जोन में जरूर है, लेकिन यहां जानमाल का बड़ा खतरा नहीं है। वह इसलिए, क्योंकि जब शहरों को जोन में बांटा गया था, तो फिजिक्स के इम्पेरिकल ला को आधार बनाया गया था, जिसमें भूकंपीय झटकों के प्रभाव को तवज्जो दी गई। लेकिन, जानमाल की हानि के संदर्भ में इंटेनसिटी ला अधिक मायने रखता है। इसमें यह मायने रखता है कि भूकंप कितना बड़ा और शक्तिशाली है।
क्या यह कहा जा सकता है कि दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों से कुछ खास नुकसान होने की आशंका नहीं है?बिल्कुल, दिल्ली में भूकंप के झटकों से जानमान का नुकसान तभी संभव है, जब उसकी गहराई जमीन से लगभग 100 मीटर नीचे और चौड़ाई लगभग 50 मीटर तक हो। लेकिन, इतना बड़ा भूकंप यहां आ ही नहीं सकता, क्योंकि यहां ऐसी कोई फाल्ट लाइन नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में छोटे भूकंप ही आते रहेंगे। रिक्टर स्केल पर पांच या छह की तीव्रता वाले भूकंप यहां बहुत ही कम आते हैं।
लेकिन कई बार भूकंप का अधिकेंद्र दिल्ली ही होता है। 22 मार्च को ही आए एक भूकंप का अधिकेंद्र पश्चिमी दिल्ली था। इसकी क्या वजह है?जिस भूकंप का अधिकेंद्र दिल्ली होता है, उसकी वजह यमुना का पैलियो चैनल (जमीन के नीचे मौजूद प्राचीन जलमार्ग) है। दिल्ली में यमुना नदी का स्वरूप और आकार पहले काफी बड़ा था, जो बाद में शहर की आबादी बढ़ने से छोटा हो गया है। काफी जगह सड़कें बन गई हैं, निर्माण कार्य भी हो गए हैं, लेकिन अभी भी जमीन के नीचे पानी बह रहा है। इसी तरह दिल्ली में कई जगह पहले जलाशय हुआ करते थे, जिन पर अब इमारतें बन गई हैं। यहां भी जमीन के नीचे पानी मौजूद है। दलदली जमीन की हलचल से ही छोटे-मोटे भूकंप आते रहते हैं।
माइक्रोजोनेशन में क्या सामने आया था? दिल्ली में कहां पर ज्यादा खतरा संभावित है?यमुना नदी के आसपास बनी इमारतें संवेदनशील कही जा सकती हैं। इसकी वजह उनके नीचे की रेतीली मिट्टी है। इसके अलावा जो इमारतें बहुत पुरानी हो गई हैं और जो भूकंपरोधी नहीं हैं, उनको भी रेट्रोफिटिंग की जरूरत है। यानी, इमारत के मौजूदा ढांचे में ही लोहे की सपोर्ट देना।दिल्ली-एनसीआर के लोगों को भूकंपीय झटकों को लेकर क्या सलाह देना चाहेंगे?
भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन एहतियातन उपायों से इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है। दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी भूकंप के तेज झटकों के बीच इससे होने वाला नुकसान कम करने के लिए सरकारी स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम और माक ड्रिल का आयोजन किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने भूकंप का जोखिम कम करने के लिए नए भवन डिजाइन कोड भी बनाए हैं, उनका पालन किया जाना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह कि घबराने की जरूरत कतई नहीं है, केवल अपने घर और दफ्तर का भूकंपरोधी होना सुनिश्चित कीजिए।
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