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ओलिंपियंस और पैरालिंपियंस करेंगे स्कूलों का दौरा, बच्चे-किशोर खेलों से गढ़ेंगे नई मिसाल

देश के स्कूली बच्चों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हमारे ओलिंपियन एवं पैरालिंपियन अलग-अलग राज्यों के 75 स्कूलों का दौरा करने जा रहे हैं। वे बच्चों से संवाद कर उन्हें खेलों के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 11 Dec 2021 02:48 PM (IST)
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जानेें कैसे छोटी आयु से ही बच्चों को उनकी पसंद के खेलों में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी...
अंशु सिंह। झारखंड के जोन्हा पंचायत के जराटोली गांव की रिंकी मुंडा ने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह एथलीट बनेंगी। दिहाड़ी मजदूर पिता के पास इतने साधन एवं संसाधन नहीं थे कि वह बेटी को पढ़ाने की सोच सकें। खेल तो बहुत दूर की बात थी।

रिंकी का भी अधिकांश समय परिवार की देखभाल करने में ही जाता था। खेतों में छोटे-मोटे काम कर वह अपने अभिभावकों की मदद करती थीं। एक दिन उनका संपर्क अहान फाउंडेशन के वालंटियर्स से हुआ और रिंकी ने खेल के माध्यम से आगे बढ़ने का निर्णय लिया। उन्होंने एथलेटिक्स को चुना, जिसके लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती। वह जंगलों में दौड़ने का अभ्यास करतीं। फाउंडेशन उनकी पढ़ाई व फिटनेस का ध्यान रखता है।

हाल ही में 16 वर्षीय रिंकी ने दिल्ली की 5.27 किलोमीटर की मैराथन दौड़ 22 मिनट में पूरी कर प्रथम स्थान प्राप्त किया। अहान फाउंडेशन की संस्थापक रश्मि तिवारी बताती हैं, 'गांवों में लड़कियां खेलती ही नहीं हैं। स्कूल भी कम हैं। जो हैं,वहां खेल की न कोई सुविधा है और न ही उस पर जोर दिया जाता है। जबकि खेल को अगर रोजगार से जोड़ा जाए तो सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। हमें बच्चों को बताना होगा कि स्पोर्ट्स में सिर्फ खिलाड़ी नहीं बनते, बल्कि ट्रेनर,फिटनेस एक्सपर्ट, कोच आदि बनने के अनेकानेक विकल्प खुल जाते हैं।' रश्मि के अनुसार, अहान फाउंडेशन से करीब साढ़े चार सौ लड़कियां जुड़ी हैं जो अपनी घरेलू जिम्मेदारियां निभाते हुए फुटबाल,एथलेटिक्स,शतरंज,लंबी दूरी की दौड़ में खुद को दक्ष बनाने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन रेजिडेंशियल स्पोर्ट्स स्कूल खुलने से सबसे अधिक इन्हीं गरीब-आदिवासी लड़कियों को लाभ मिलेगा। क्योंकि उन्हें घर की अत्यधिक जिम्मेदारियों से राहत मिलेगी। इन स्कूलों में दाखिले के बाद वे पढ़ाई के साथ खेलों पर ध्यान दे पाएंगे। सबसे अहम बात कि उन्हें पौष्टिक आहार एवं सक्षम प्रशिक्षक की निगरानी में सीखने व बढ़ने को मिलेगा।

पढ़ाई के साथ खेलों के प्रति बढ़ता रुझान

दोस्तो, स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया (साइ) के ऊपर देश के किशोरों-युवाओं को खेलों के लिए प्रोत्साहित करने, उन्हें आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर, उपकरण, प्रशिक्षण आदि देने की जिम्मेदारी है। इसके अलावा, विभिन्न स्पोर्ट्स के नामी-गिरामी खिलाड़ी भी एकेडमी के माध्यम से बच्चों को स्पोर्ट्स में प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्हें खेल के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने का अवसर दिया जा रहा है। भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान रितु रानी का कहना है कि, 'आज के बच्चों-किशोरों-युवाओं में पहले से कहीं अधिक विश्वास आया है। वे जागरूक हैं। ऐसे में जितनी जल्दी उनका खेलों से जुड़ाव होता है,उनकी जीवनशैली पर उतना ही अधिक प्रभाव पड़ता है। वह स्वास्थ्यवर्धक खाने के प्रति सचेत हो जाते हैं।

इसी प्रकार,किसी भी खिलाड़ी के आगे बढ़ने में सही मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण के साथ अभिभावकों का समर्थन बहुत अहम होता है। अगर मेरे भाई ने हाकी से नहीं जोड़ा होता तो आज कहानी कुछ औऱ होती। खुश हूं कि आज मैं अन्य लड़कियों को प्रेरित कर पा रही हूं। उनका मनोबल बढ़ा है। हमारे क्लब से लड़कों के साथ लड़कियों का बड़ी संख्या में जुड़ना इसका एक उदाहरण है। वे सभी पढ़ाई के साथ कोच की निगरानी में अपनी ट्रेनिंग कर रहे हैं। खेल की बारीकियां सीख रहे हैं। उन्हें समय पर उचित डाइट दी जाती है। रितु की मानें तो टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन के बाद से बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों में भी खेलों को लेकर नया जोश एवं आत्मविश्वास आया है। वे खेलों में संभावनाओं को देखते हुए बेटों के साथ बेटियों को खेलने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।'

कम आयु में प्रशिक्षण के बड़े फायदे: विभिन्न खेलों में बच्चों को आगे बढ़ाने में स्कूलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, इसे प्रबंधन भी समझने लगा है। तभी तो स्पोर्ट्स फेडरेशन,क्लब,एकेडमी की सहायता से एक इकोसिस्टम विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। बच्चों को खेलों में आगे आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। खेलों के आयोजन से सही समय पर टैलेंट को पहचानने में मदद मिल रही है। वरिष्ठ क्रिकेट कोच फूलचंद शर्मा के अनुसार, जिन बच्चों को क्रिकेट खेलने का शौक अथवा जुनून होता है, उन्हें आमतौर पर छह-सात वर्ष की आयु से ही कोच से प्रशिक्षण लेना शुरू कर देना चाहिए। समय से कदम उठाने पर बारह वर्ष की आयु में बच्चा अंडर-14 में खेलने के लिए तैयार हो जाता है।

फूलचंद कहते हैं, ‘क्रिकेट एक टीम स्पोर्ट्स है जिसमें मेहनत के साथ बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसे में बच्चों को स्कूल प्रबंधन, कोच एवं अभिभावकों के सहयोग एवं प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। इसमें बच्चे का अपना जुनून भी काफी मायने रखता है। उनकी क्षमता को कहीं से कम करके नहीं आंका जा सकता है। शहरी बच्चों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे मानसिक रूप से कहीं अधिक मजबूत होते हैं। खेल के प्रति एकाग्रता भी अच्छी रहती है।‘ 2019 से इन्होंने एक मुहिम चला रखी है,जिसके अंतर्गत ग्रामीण परिवेश के बच्चों-किशोरों (11 से 16 वर्ष की आयु) के लिए निश्शुल्क ट्रायल आयोजित कराया जाता है।

हर वर्ष 400 से 500 बच्चों के आवेदन आते हैं। इनमें से चार बच्चों का चयन कर उन्हें निश्शुल्क कोचिंग आदि दी जाती है। वह आगे कहते हैं,‘यदि अन्य लोग व संस्थाएं भी ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रायल कैंप लगाएं तो हमें अच्छे टैलेंट मिल सकते हैं। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो यहां क्रिकेट में आगे बढ़ने वाले बच्चों को पहले जिला स्तर पर खेलना होता है। इसके लिए बकायदा फार्म भरे जाते हैं। उसके बाद सात-आठ टीम बनाकर ट्रायल होता है। मैच होते हैं। फिर जोन लेवल के लिए चयन होता है। उम्दा प्रदर्शन करने वालों का कानपुर में ट्रायल होता है। वहीं से राज्य स्तर की टीम के लिए खिलाड़ियों का चयन होता है।‘ यही प्रक्रिया अन्य राज्यों में भी है। हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ किशोर-युवा ही स्वस्थ समाज एवं प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। खेलों से बच्चों-किशोरों में न सिर्फ टीम स्पिरिट,लीडरशिप स्किल,एनालिटिकल थिंकिंग, बल्कि जोखिम लेने एवं लक्ष्य बनाने का आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। फिटनेस एक्सपर्ट नीरज एक्सरसाइज एवं स्पोर्ट्स को हर किसी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं, जिसे रोजमर्रा की रूटीन में शामिल किया जाना चाहिए। क्योंकि इससे न सिर्फ स्वास्थ्य समस्याएं दूर होती हैं,बल्कि बच्चे-किशोर ऊर्जावान महसूस करते हैं।

स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया (साई) की योजनाएं

  • सब जूनियर ट्रेनी स्तर के लिए नेशनल स्पोर्ट्स टैलेंट कंटेस्ट स्कीम। इसमें आठ से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूली स्तर से ही प्रशिक्षित किया जाता है
  • सब जूनियर ट्रेनी स्तर के लिए आर्मी बायड स्पोर्ट्स कंपनी स्कीम। भारतीय सेना स्पोर्ट्स अथारिटी आफ इंडिया से साथ मिलकर आठ से 16 वर्ष की आयु के बच्चों को स्पोर्ट्स में ट्रेन करती है। साढ़े 17 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ट्रेनीज को सेना में प्लेसमेंट भी मिलती है
  • जूनियर ट्रेनी स्तर के लिए स्पेशल एरिया ग्रांट स्कीम। इसके तहत ग्रामीण, आदिवासी एवं तटीय क्षेत्रों से 18 वर्ष तक की आयु के स्पोर्टिंग टैलेंट की तलाश की जाती है और उन्हें खेल में पारंगत बनाया जाता है
  • सीनियर ट्रेनी लेवल के लिए सेंटर आफ एक्सीलेंस स्कीम। सीनियर नेशनल लेवल के विजेताओं को क्षेत्रीय साइ केंद्रों पर आधुनिक प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। वे साल में 330 दिन वहां प्रशिक्षण करते हैं

वरिष्ठ खिलाड़ियों के अनुभव का ले सकेंगे लाभ: टोक्यो ओलिंपिक में जैवलिन थ्रो में रजत पदक विजेता पैरालिंपियन देवेंद्र झाझरिया ने बताया कि हम सभी के कोई न कोई रोल माडल होते हैं, जिनसे मिलने की इच्छा भी होती है। खेल-संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्कूलों का दौरा करने के अभियान से नि:संदेह बच्चों का हौसला बढ़ेगा। खिलाड़ी जब अपने अनुभव साझा करेंगे, संघर्ष से जीत के किस्से सुनाएंगे तो उससे किशोरों में निश्चित रूप से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। उनमें खेल को लेकर एक स्पष्ट विजन बनेगा। वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढे़ंगे। इससे कहीं न कहीं आने वाले वर्षों में ओलिंपिक खेलों के लिए वे खुद को तैयार करने के बारे में सोचेंगे। जहां तक स्कूलों में खेल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की बात है तो इस दिशा में अभी काफी प्रयास करने की आवश्यकता है। वैसे मैं मानता हूं कि खेल मैदान खेल की पहली सीढ़ी होते हैं। जिन स्कूलों या स्थानों पर जमीन उपलब्ध है, वहां कबड्डी, खो-खो, एथलेटिक्स जैसे खेलों का प्रशिक्षण बिना किसी देरी के शुरू किया जा सकता है।

स्पोर्ट्स पाठ्यक्रम पर हो जोर: गाजियाबाद डीपीएस स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति गुप्ता ने बताया कि अब जब स्कूली स्तर पर पढ़ाई के साथ खेल-संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर है, ऐसे में स्पोर्ट्स पाठ्यक्रम को नये सिरे से देखने की जरूरत है, ताकि भविष्य के खिलाड़ी तैयार किए जा सकें। खेलों को लेकर एक ‘स्ट्रक्चर्ड प्रोग्राम' तैयार किया जाना चाहिए। आज जिन स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं, संसाधन एवं प्रशिक्षित फिजिकल टीचर हैं, वहां स्पोर्ट्स के लिए तीन से अधिक कक्षाएं निर्धारित हैं। वहां के बच्चे कहीं अधिक फिट भी होते हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं के अभाव के साथ बच्चों को पौष्टिक आहार तक नहीं मिल पाता है। मिड डे मील की अपनी कमियां हैं। इस पर ध्यान देना होगा।

खेलने के साथ देती हूं प्रशिक्षण भी: जम्मू-कश्मीर की किकबाक्सिंग चैंपियन तजामुल इस्लाम ने बताया कि मैं कश्मीर के बांदीपुर के छोटे से गांव तारकोपरा से हूं। गांव से कुछ दूरी पर एक एकेडमी थी जहां मैं मार्शल आर्ट सीखने जाती थी। एक दिन स्टेडियम के करीब कुछ लड़के-लड़कियों को पंचिंग की ट्रेनिंग करते देखा। पिता जी से कहा कि मुझे भी वही करना है। उसके बाद से किकबाक्सिंग शुरू कर दी। पहले वर्ष में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता जीती। फिर 2015 में नेशनल किकबाक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड (सब-जूनियर) जीता। इसके अगले साल इटली में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी गोल्ड लिया। अभी हैदर स्पोर्ट्स एकेडमी शुरू की है, जहां काफी लड़के-लड़कियां प्रशिक्षण लेने आते हैं। हाल ही में मैंने वर्ल्ड किकबाक्सिंग चैंपियनशिप के अंडर-14 श्रेणी में गोल्ड मेडल हासिल किया है। मैं मानती हूं कि जीत के लिए उम्र नहीं, हौसला चाहिए। मुझे किकबाक्सिंग में मजा आता है। अपना बेस्ट परफार्मेंस देने पर ध्यान देती हूं। खेलने के अलावा पढ़ना एवं अन्य बच्चों को प्रशिक्षण देना पसंद है।

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