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Delhi: स्कूलों में जिंदगी का ककहरा सीखते हैं छात्र, ऑनलाइन परिचर्चा में बोले शिक्षाविद राजेश

एक प्रभावााली और सक्षम स्कूल न सिर्फ एबीसी और 123 सिखाने तक सीमित होता है बल्कि शिक्षक छात्रों को नई चीजें सिखाने के प्रभावी तरीकों पर लगातार काम करते हैं। इस तरह से छात्र समस्याएं सुलझाने के कौशल सीखते हैं।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Tue, 05 Jan 2021 03:15 PM (IST)
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शिक्षाविद राजेश कुमार सिंह की फाइल फोटो
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। किसी बच्चे के लिए, माता-पिता उनके पहले शिक्षक होते हैं, लेकिन जैसे ही बच्चा बढ़ता है, वह समय उसकी सीमाओं को विविध बनाने और उसे स्वतंत्र, शानदार, और एक भरोसेमंद व्यक्तित्व में विकसित करने का होता है। उक्त बातें शिक्षाविद राजेश कुमार सिंह ने कहीं। उन्होने कहा कि आज के जमाने में, शिक्षक की भूमिका सिर्फ शिक्षा मुहैया कराने तक सीमित नहीं है बल्कि अपने विद्यार्थियों के समग्र विकास में भी मददगार है। स्कूल आपके बच्चे को न सिर्फ शैक्षिक समझ प्रदान करते हैं बल्कि स्पोट्र्स या मनोरंजन गतिविधियों में भी उन्हें सक्षम बनाते हैं।

शिक्षक और स्कूल स्टाफ छात्रों पर सकारात्मक असर डालते हैं और उन्हें ऐसे कौशल विकास के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिससे उन्हें अपनी जिंदगी के सफर में मदद मिलेगी। स्कूल परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर छात्रों पर सकारात्मक असर डालते हैं।

शैक्षणिक क्षमता

प्रत्येक स्कूल छात्र जिंदगी पर असर डालने में महत्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि इससे उन्हें अपनी अधिकतम शैक्षिक क्षमता को सामने लाने में मदद मिलती है। एक प्रभावााली और सक्षम स्कूल न सिर्फ एबीसी और 123 सिखाने तक सीमित होता है बल्कि शिक्षक छात्रों को नई चीजें सिखाने के प्रभावी तरीकों पर लगातार काम करते हैं। इस तरह से छात्र समस्याएं सुलझाने के कौशल सीखते हैं। ये एक्स्ट्रा को-करीकुलर एक्टीविटीज ऐसी मानसिक ताकत और स्थायित्व के निर्माण में मददगार होती हैं जिनसे छात्रों को ज्यादा स्वतंत्र और पेशेवर बनाने का अवसर मिलता है। समस्या समाधान या समाधान तलााने से छात्रों को सफल होने तक प्रयास करते रहने की प्रेरणा मिलती है।

सामाजिक कौशल

मुख्य फोकस शिक्षा पर होने के साथ स्कूलों का दूसरा कार्य भी है और वह है बच्चे के अंदर ज्ञानवर्द्धक कौशल का निर्माण करना। एक छात्र शैक्षिक तौर पर श्रेठ प्रर्दान नहीं कर सकता है, लेकिन दोस्तों और सहपाठियों के समर्थन से, छात्र अपनी क्षमता बढ़ाते हैं और दूसरे छात्रों के साथ आकर्षक संवाद के बारे में सीखते हैं, और इसे मजबूत संबंधों के तौर पर प्रदर्शित करते हैं। किसी बच्चे की भावनात्मक और सांस्कृतिक परिपक्वता अन्य सभी क्षेत्रों में बाल विकास के लिए जरूरी आधारों का प्रतिपादन करती है। छात्र अपना ज्यादातर समय स्कूल में बिताते हैं और एक मजबूत सामाजिक संबंध के निर्माण और सहानुभूतिपूर्ण तरीके से छात्रों के विकास के लिए अच्छे पाठ्यक्रम महत्वपूर्ण होते हैं

चरित्र निर्माण एवं आत्म-अवधारणा

चरित्र और मूल्यों पर ध्यान देना हमेशा अच्छी शुरुआत होती है, जिससे कि ऐसे समय पर आधार मजबूत बने जब उसकी वाकई जरूरत हो। चरित्र निर्माण शैक्षिक उपलब्धियों के संदर्भ में विकल्प नहीं है, लेकिन इसके लिए सहायक है। चूंकि स्कूल में पढ़ने, लिखने और अंकगणित पर पाठ में जल्दी दिलचस्पी दिखती है, लेकिन साथ ही यह बच्चों को सहानुभूति, सम्मान और ईमानदारी के बारे में सीखने में भी मदद करता है। शुरू में, यहां बोलने से पहले अपने हाथ उठाएं और अपने हाथ सीखे रखकर बैठें जैसे शिष्टाचार के बारे में सिखाया जाता है। बाद में, स्कूली शिक्षा में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों के बारे में चर्चाओं के बारे मे समझ प्रदान की जाती है। तब तक बच्चे पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं और बाहरी दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार होते हैं, उन्हें अपने स्वयं के विचारों पर मूल्यों पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए। 

व्यापक दायरा

स्कूल बच्चे को उनकी उम्र के आधार पर संभावनाओं से अवगत कराएगा। बच्चे शुरू से ही छात्रों या विभिन्न राट्रीयताओं, संस्कृतियों और परंपराओं के शिक्षकों के संपर्क में आते हैं। इससे उनमें विविधता के बारे में समझ विकसित होती है। इसके अलावा, व्यापक सीमाओं के नजरिये से अवगत होने में भी मदद मिलती है। एक्सकर्सन, फील्ड ट्रिप्स और इंटरेक्टिव केस स्टडीज से आपके बच्चे को नई चीजों को सीखने का मौका मिलेगा, जबकि स्कूल में प्रत्येक विविध विषय उनके भविष्य का संकेत देगा। जैसे ही बच्चे परिपक्व होते हैं, कई स्कूल व्यक्ति के दायरे को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न तरह के अतिरिक्त अवसर भी प्रदान कराते हैं।

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