गोलीबारी के बीच बलजोर ने पाकिस्तानी को पकड़ लिया जिंदा, उड़ गए थे अफसर के होश
एक पाकिस्तानी अफसर अपनी टुकड़ी के साथ गोलीबारी करते हुए आगे बढ़ रहा था। गोलीबारी के बीच ही बलजोर ने पाकिस्तानी अफसर को जिंदा पकड़ लिया। उनकी बहादुरी देख वह अफसर दंग रह गया।
By Amit MishraEdited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 06:41 PM (IST)
गोहाना [भंवर सिंह]। भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 1971 में हुए युद्धों के बारे में कौन नहीं जानता है। दोनों ही युद्धों में पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब में फाजिल्का क्षेत्र के विभिन्न गांवों में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हुईं थीं। 1971 में युद्ध के दौरान फाजिल्का क्षेत्र में विषम परिस्थितियां बन जाने पर स्टोर कीपर बलजोर सिंह मलिक ने मोर्चा संभाला था। उन्होंने एक पाकिस्तानी अफसर को जिंदा पकड़ लिया था।
पाकिस्तानी अफसर ने वीरता को किया सलाम पाकिस्तानी अफसर ने बलजोर की तारीफ करते हुए उनकी वीरता और साहस को सलाम किया था। गांव भैंसवान खुर्द निवासी बलजोर सिंह मलिक ने वर्ष 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध को देखकर फौज में जाने का मन बनाया। उनमें देशसेवा का ऐसा जज्बा पैदा हुआ कि एक साल बाद ही सेना में भर्ती हो गए। वर्ष 1971 में वे फाजिल्का स्थित भारतीय सेना के मुख्य सेंटर पर स्टोर कीपर के पद पर तैनात थे। उन्हें सेंटर के शस्त्रगार की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
जंग के लिए तैयार रहें जवान दिसंबर 1971 में पाकिस्तानी सेना ने फाजिल्का क्षेत्र में हमला कर दिया और कई गांवों में काफी अंदर तक पहुंच गई थी। वह फाजिल्का पर कब्जे की तैयारी में थी, लेकिन भारतीय सेना के जांबाजों ने उसके मंसूबों को नाकाम किया। बलजोर सिंह बताते हैं कि युद्ध के दौरान एक बार विषम हालात हो गए थे। सेना के एक अफसर ने आकर कहा कि शस्त्रगार में भी जितने जवान हैं, वे भी युद्ध के लिए तैयार रहें। बस फिर क्या था, उन्होंने मोर्चा संभाल लिया।
पाकिस्तानी अफसर को ही पकड़ लिया
वह जिस गांव में मोर्चे पर डटे थे वहां पाकिस्तानी सेना घुस आई। एक पाकिस्तानी अफसर अपनी टुकड़ी के साथ गोलीबारी करते हुए आगे बढ़ रहा था। गोलीबारी के बीच ही बलजोर ने पाकिस्तानी अफसर को जिंदा पकड़ लिया। उनकी बहादुरी देख वह अफसर दंग रह गया। उसने प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत की सेना में जवान युद्ध लड़ते हैं, लेकिन पाकिस्तान के अफसरों को खुद ही मोर्चा संभालना पड़ता है। बलजोर सिंह मलिक ने वर्ष 1983 तक सेना में अपनी सेवाएं दीं।
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