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पैरालिसिस के मरीजों के लिए खुशखबरी, दिल्ली में पहली बार रोबोटिक आर्म ट्रेनर से होगा इलाज

पक्षाघात के पारंपरिक इलाज की बात करें तो हाथों को गति देने में पांच से छह साल का समय लग जाता है पर रोबोटिक आर्म ट्रेनर की मदद से यह समय सिर्फ आधा हो जाएगा।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Mon, 16 Mar 2020 12:35 PM (IST)
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पैरालिसिस के मरीजों के लिए खुशखबरी, दिल्ली में पहली बार रोबोटिक आर्म ट्रेनर से होगा इलाज

नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। दिल्ली के अस्पताल में पहली बार रोबोटिक आर्म ट्रेनर की मदद से पैरालिसिस (paralysis patients) के मरीजों का इलाज किया जाएगा। जनकपुरी स्थित अतिविशिष्ट अस्पताल में इटली से करीब 65 लाख रुपये की लागत वाली रोबोटिक आर्म ट्रेनर मशीन मंगवाई गई है। यह मशीन पैरालिसिस (पक्षाघात) के मरीजों के हाथों को सुचारु तरीके से गतिशील बनाने में काफी मददगार साबित होगी।

चिकित्सकों के मुताबिक, पैरालिसिस (पक्षाघात) व ब्रेनस्ट्रोक जैसी तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों में हाथों को दोबारा काम करने लायक बना पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इसमें लगातार थेरेपी व मेहनत के बाद कुछ सकारात्मक नतीजे सामने आते हैं, पर ये नतीजे मरीज व तीमारदार के मनोबल पर निर्भर करते हैं। इन मामलों में पीड़ित को सही होने में कई बार कई वर्ष लग जाते हैं। रोबोटिक आर्म ट्रेनर की मदद से नतीजे जल्दी व प्रभावी होंगे।

अभी अस्पताल में ट्रायल स्तर पर कुछ मरीजों का इस मशीन से इलाज किया जा रहा है। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट डॉ. दुर्गेश पाठक ने बताया कि हाथ शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। पक्षाघात के पारंपरिक इलाज की बात करें तो हाथों को गति देने में पांच से छह साल का समय लग जाता है, पर रोबोटिक आर्म ट्रेनर की मदद से यह समय न सिर्फ आधा हो जाएगा, बल्कि नतीजे भी बेहतरीन होंगे। इसके साथ ही पक्षाघात के मरीजों को भी बेहतर उपचार मिलने से वह जल्द ही स्वस्थ हो पाएंगे।

ग्राफिक सिस्टम से सुधार का चलेगा पता

यह मशीन स्वचलित है, ऐसे में समय की काफी बचत होगी। साथ ही चिकित्सक दूसरे मरीजों को अधिक समय दे सकेंगे। डॉ. दुर्गेश ने बताया कि रोबोटिक आर्म ट्रेनर मशीन काफी एडवांस है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मशीन में ग्राफिक सिस्टम है जिसकी मदद से मरीज में कितना सुधार हुआ, उसे मापा जा सकता है। मशीन में कुछ गेम्स भी उपलब्ध हैं, जो सेंसर की मदद से मरीज के हाथों की मूवमेंट करने के लिए प्रेरित करेंगे। जिन-जिन जरूरी कामों में हाथ का प्रयोग होता है, वे सभी काम मशीन थेरेपी के माध्यम से मरीज से कराएगी।

इस तरह धीरे-धीरे नसों में रक्तप्रवाह होगा और दिमाग दोबारा से हाथों पर नियंत्रण करने लगेगा। पक्षाघात कितना गंभीर है, उस अनुसार चिकित्सक ये निर्धारित करेंगे कि थेरेपी पारंपरिक ढंग से करनी बेहतर या फिर मशीन के माध्यम से। यह निर्णय भी चिकित्सक पर निर्भर करेगा।

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