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खड़ी होगी दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच दीवार, अधिकारों पर छिड़ सकती है जंग

Delhi Govt v/s Union Govt केंद्र ने जो संशोधन विधेयक पेश किया है। उसमें दिल्ली सरकार के लिए तकरीबन सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से सहमति लेना होगा। दिल्ली सरकार के मुताबिक वह दिल्लीवासियों द्वारा चुनी हुई सरकार है इसलिए उसे निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।

By Jp YadavEdited By: Updated: Tue, 16 Mar 2021 10:56 AM (IST)
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दिल्ली सरकार और राजनिवास में तनातनी बढ़ सकती है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के बाद से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की जंग कुछ हद तक थम गई थी। ऐसे में अब संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक-2021 पारित होता है तो राजनिवास और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर एक बार फिर रार छिड़ सकती है। दिल्ली देश की राजधानी ही नहीं, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश भी है। विशेष प्रविधानों के तहत 30 वर्ष पहले यहां दिल्ली सरकार का गठन भी कर दिया गया, लेकिन अब भी संवैधानिक तौर पर यहां के मुख्य प्रशासक का दर्जा उपराज्यपाल को ही प्राप्त है। वहीं, दिल्ली सरकार कहती रही है कि वह दिल्लीवासियों द्वारा चुनी हुई सरकार है, इसलिए उसे जनता के हित में निर्णय लेने और योजनाएं बनाने का पूरा अधिकार है। ऐसे में उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों का सामंजस्य होने से ही राजधानी के लोगों के हित में बेहतर कार्य हो सकता है।

केंद्र सरकार ने जो संशोधन विधेयक पेश किया है। उसमें दिल्ली सरकार के लिए लगभग सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से सहमति लेना अनिवार्य होगा। इसके तहत विधायी प्रस्ताव दिल्ली को 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा। उपराज्यपाल यदि उस प्रस्ताव से सहमत नहीं हुए तो वह अंतिम निर्णय के लिए राष्ट्रपति को भी भेज सकेंगे। अगर कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लेना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने को स्वतंत्र होंगे। ऐसे में दिल्ली सरकार और राजनिवास में तनातनी बढ़ सकती है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर स्पष्ट किया कि दिल्ली में सभी तरह के स्थानांतरण और नियुक्तियां करने का अधिकार केवल उपराज्यपाल को है। साथ ही एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने के अधिकार से बाहर कर दिया।

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दिल्ली में आम आदमी पार्टी करीब छह साल से सत्ता में है, लेकिन दिल्ली सरकार और राजनिवास में शुरू से ही टकराव रहा है। नौकरशाही भी इस लड़ाई में दिल्ली सरकार के साथ नहीं रही है। सरकार टकराव का बड़ा कारण उसके पास अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार न होना मानती रही है। इसे लेकर खूब बयानबाजी भी होती रही है। अधिकारों की इस लड़ाई में सरकार के कई फैसले अधर में लटक गए। एक मामले में सरकार ने दो दानिक्स अफसरों को निलंबित किया तो उपराज्यपाल ने इन्हें बहाल कर दिया। सरकार ने खेती की जमीन का सर्किल रेट 53 लाख रुपये प्रति एकड़ से बढ़ाकर तीन करोड़ किया तो उपराज्यपाल ने इसे निरस्त कर दिया। दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के चेयरमैन के पद पर नियुक्ति को लेकर भी यही स्थिति रही। सरकार के फैसले पर उपराज्यपाल ने रोक लगाई थी। दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए जांच आयोग भी अस्तित्व में नहीं आ सके। सरकार द्वारा पास किए गए 12 विधेयक आज भी केंद्र सरकार के पास पड़े हैं, जिन्हें अनुमति नहीं मिल सकी है।

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