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प्रदूषण से आपकी औसत आयु हो रही कम, दिल्ली में हालात चिंताजनक; शिकागो में शोध में हुआ खुलासा

प्रदूषण सिर्फ खांसी-जुकाम ही नहीं बल्कि दिल्लीवासियों की औसत आयु भी कम कर रहा है। शिकागो में हुए एक शोध के अनुसार दिल्ली में जन्मे और पले-बढ़े लोगों की औसत आयु प्रदूषण के कारण 11.9 साल कम हो जाती है। देश में औसत आयु 5.3 साल कम हो जाती है। यह बेहद चिंताजनक है। जानिए प्रदूषण से होने वाले नुकसान और इससे बचने के उपाय।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Sonu Suman Updated: Thu, 21 Nov 2024 09:33 PM (IST)
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एक रिसर्च के मुताबिक प्रदूषण से दिल्लीवासियों की औसत आयु में हो रही कमी।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रदूषण से सिर्फ खांसी, जुकाम नहीं बल्कि यह दिल्ली के लोगों की औसत उम्र कम कर रहा है। यह बात इंडियन चेस्ट सोसाइटी के उत्तरी जोन के चेयरमैन डॉ. जीसी खिलनानी ने कही। इंडियन चेस्ट सोसाइटी द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष अक्टूबर में शिकागो में हुए एक शोध के अनुसार प्रदूषण के कारण दिल्ली में जन्मे व पले बढ़े लोगों की औसत उम्र 11.9 वर्ष उम्र कम हो जाती है। वहीं देश में औसत उम्र 5.3 वर्ष कम हो जाती है। यह बेहद चिंताजनक है।

उन्होंने कहा कि प्रदूषण बढ़ने पर पीएम 2.5 फेफड़े के निचले हिस्से तक चला जाता है। इससे फेफड़ा प्रभावित होता है। प्रदूषण फेफड़े के कैंसर का कारण भी बन रहा है। फेफड़े के कैंसर से पीड़ित करीब 40 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जो धूमपान नहीं करते। प्रदूषण बढ़ने पर अल्ट्राफाइन पार्टिकल की निगरानी नहीं होती।

चीन में प्रदूषित नियंत्रित होने से औसत उम्र बढ़ी

यह पीएम 0.1 से भी सूक्ष्म होता है और फेफड़े से होते हुए खून में पहुंच जाता है, जो शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचता है। इससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक, यूरिनरी ट्रैक संक्रमण, डिमेंशिया, गर्भपात की समस्या इत्यादि होता है। इसके अलावा गर्भस्थ शिशुओं के विकास को प्रभावित करता है। चीन के बीजिंग में प्रदूषण नियंत्रित होने के बाद वहां औसत उम्र 2.2 वर्ष बढ़ गई।

कई वजहों से बढ़ता है प्रदूषण

उन्होंने कहा कि पराली थोड़े दिन जलती है। वाहनों के उत्सर्जन, सड़कों पर धूल, निर्माणाधीन स्थलों के पास धूल उड़ने व तंदूर इत्यादि से वर्ष भर प्रदूषण होता है। दिल्ली में करीब 9000 तंदूर हैं। वर्ष 2016 में आइआइटी कानपुर ने शोध कर प्रदूषण नियंत्रण के लिए छह-सात उपाय बताए थे। इसके तहत सड़कों को वर्ष भर महीने में चार बार पानी से धोने, महीने में चार बार वैक्यूम क्लीनर से सफाई करने, सड़कों के किनारे हरियाली विकसित करने, निर्माणाधीन स्थलों पर धूल नियंत्रित रखने, कूड़ा जलाना बंद करने, थर्मल पावर प्लांट से उत्सर्जन कम करने के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगाने की सलाह दी गई थी।

ट्रैफिक जाम के दौरान गाड़ी खड़ी रहने के दौरान होने वाले उत्सर्जन से ज्यादा प्रदूषण होता है। लेकिन इन उपायों पर अमल नहीं हुआ। सोसाइटी का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए वर्ष भर काम नहीं होता और अंत में तीन माह आरोप प्रत्यारोप होता है।

एमबीबीएस के कॉलेजों से श्वास रोग विभाग को हटाने पर रोष

इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने कहा कि प्रदूषण के कारण फेफड़े की बीमारियां बढ़ रही है। टीबी के मामले भी देश में सबसे ज्यादा होते हैं। फिर भी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनसीआई) ने एमबीबीएस के मेडिकल कॉलेजों से श्वास रोग को पिछले वर्ष हटा दिया। सोसाइटी के उपाध्यक्ष डॉ. राकेश चावला ने कहा कि सोसायटी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री व प्रधानमंत्री से इस मामले पर संज्ञान लेने की सिफारिश करेगी।

हिंदू राव मेडिकल कालेज के श्वास रोग विभाग के प्रमुख डॉ. अरुण मदान ने कहा कि किसी भी अस्पताल के जनरल मेडिसिन की ओपीडी में 50 प्रतिशत मरीज सांस के होते हैं। फिर भी एमबीबीएस मेडिकल कालेजों से श्वास रोग विभाग हटाना चिंताजनक है।

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