बच्चों में 20 वर्षों में तीन गुना बढ़ी दृष्टि कमजोर होने की बीमारी, रोज 2 घंटे बाहर खेलें तो नहीं पड़ेगी नए चश्मे की जरूरत
एम्स में हुए अध्ययन में यह पाया गया है कि पिछले करीब 20 वर्षों में बच्चों में यह बीमारी तीन गुना बढ़ चुकी है। पहले 12 से 13 वर्ष की उम्र में बच्चों को यह समस्या शुरू होती थी और 18-19 की उम्र तक चश्मे का नंबर ठीक रहता था। अब कम उम्र में ही बच्चों को यह समस्या होने लगी है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। बच्चों में मायोपिया के करण आंखों की दृष्टि कमजोर होने की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। अधिक देर तक मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने या वीडियो देखने के कारण पहले की तुलना में अब कम उम्र में ही बच्चे इस बीमारी से पीड़ित होने लगे हैं।
एम्स में हुए अध्ययन में यह पाया गया है कि पिछले करीब 20 वर्षों में बच्चों में यह बीमारी तीन गुना बढ़ चुकी है। एम्स के आरपी सेंटर के कम्युनिटी नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि वर्ष 2001 में आरपी सेंटर द्वारा बच्चों में मायोपिया की बीमारी को लेकर एक सर्वे किया गया था।
तब दिल्ली में सात प्रतिशत बच्चों में यह बीमारी देखी गई थी। इसके बाद दस वर्षों बाद आरपी सेंटर में हुए सर्वे में 13.50 बच्चे मायोपिया से पीड़ित पाए गए थे।
गांवों में भी बढ़ रही बच्चों को चश्मे की जरूरत
अब कोरोना के बाद हुए अध्ययन में यह आंकड़ा बढ़कर 20 से 22 प्रतिशत हो गई है। गांवों में भी बच्चों को चश्मे की जरूरत बढ़ रही है। गांवों में छह से सात प्रतिशत बच्चे मायोपिया से पीड़ित हो रहे हैं। पहले 12 से 13 वर्ष की उम्र में बच्चों को यह समस्या शुरू होती थी और 18-19 की उम्र तक चश्मे का नंबर ठीक रहता था।
अब कम उम्र में ही बच्चों को यह समस्या होने लगी है। इसका कारण यह है कि बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। बच्चे लगातार दो से तीन घंटे मोबाइल पर गेम खेलते हैं या वीडियो देखते रहते हैं। बहुत लोग तो अपने बच्चों को चश्मा भी जल्दी नहीं पहनाते। इससे बच्चों का पढ़ाई प्रभावित होता है। इसलिए चश्मा जरूर पहनाना चाहिए।
तीन हजार स्कूली बच्चों पर किया गया अध्ययन
आरपी सेंटर में बच्चों के आंखों की बीमारियों के विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. रोहित सक्सेना ने बताया कि मायोपियो से पीड़ित तीन हजार स्कूली बच्चों को दो वर्गों में बांट कर एक अध्ययन किया गया।
एक वर्ग के बच्चों को स्कूल में प्रतिदिन आधे घंटे कक्षा से बाहर खेलने का समय दिया जाता था। इस दौरान बच्चों को छांव में योग भी कराया गया। दूसरे वर्ग के बच्चों को ऐसा कुछ नहीं कराया गया।अध्ययन में पाया गया कि पहले वर्ग के बच्चों को नए चश्मे व चश्मे का नंबर बढ़ाने की खास जरूरत नहीं पड़ी। इसलिए बच्चे यदि प्रतिदिन आधे घंटे भी बाहर खेलें तो आंखों की रोशनी अच्छी बनी रहती है।
यदि प्रतिदिन दो घंटे बाहर खेलें और स्क्रीन टाइम कम कर दें तो काफी समय तक नए चश्मे और चश्मे का नंबर बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। डाक्टर बताते हैं कि यदि बच्चा नजदीक से किताब पढ़े, आंखों में चुभन महसूस हो और आंख में भैंगापन हो तो दृष्टि कमजोर होने के ये लक्षण हो सकते हैं।
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