Premchand Death Anniversary: प्रेमचंद ने किस फिल्म में किया था कैमियो रोल? जानें- लेखक से जुड़ी 5 बड़ी बातें
Premchand Death Anniversary 2022 उपन्यास सम्राट लेखक मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी फिल्मी दुनिया का भी रुख किया लेकिन वहां पर लेखक की कद्र नहीं हुई। आखिरकार असफल प्रेमचंद को मुंबई (तब बंबई) को छोड़कर वाराणसी आना पड़ा।
By Jp YadavEdited By: Updated: Sat, 08 Oct 2022 04:23 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। अपनी लेखनी से उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने देश के साथ-साथ दुनिया भर में नाम कमाया है। रचना संसार के मामले में प्रेमचंद को दुनिया के महान लेखकों एंटोन चेखव, ओ हेनरी, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, विलियम फौल्क्नेर, मार्क ट्वेन, एमिली डिक्शन, हार्पर ली, जान स्टीनबेक, एडगर एलन पो और स्टीफन किंग के समकक्ष माना जाता है। आइये जानते हैं प्रेमचंद के बारे में 5 बातें, जो उन्हें अन्य लेखकों से अलग बनाती हैं।
1. किसने दी उपन्यास सम्राट की उपाधि?
300 से अधिक कहानियां और डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखकर साहित्य जगत में चमकने वाले प्रेमचंद निर्विवाद रूप से भारत के सर्वाधिक चर्चित लेखक हैं। उनका लिखा चर्चित उपन्यास 'गोदान' के पात्र होरी, धनिया और गोबर या लघुकथा 'ईदगाह' का पात्र हामिद, पाठकों के जेहन में बस चुके हैं। रवींद्र नाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चटर्जी और शरतचंद्र चटर्जी ने भी उम्दा साहित्य लिखा है। शरतचंद्र चटर्जी तो प्रेमचंद के समकालीन थे। वहीं, रवींद्रनाथ टैगोर को तो साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार भी मिल चुका है। इन सबके बीच प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में एक अलग मुकाम बनाया है। क्या आप जानते हैं कि प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट की संज्ञा किसने दी? अगर नहीं हो हम बताते हैं। दरअसल, प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट की संज्ञा बंगला के नामी साहित्यकार शरतचंद्र चटर्जी ने दी थी।
2. धनपत राय श्रीवास्तव था प्रेमचंद के बचपन का नाम
प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन उपनाम था नवाब राय। वह धनपत राय नाम से साहित्य लिखते थे, लेकिन उर्दू में प्रकाशित होने वाली 'जमाना पत्रिका' के संपादक और उनके दोस्त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। प्रेमचंद अपने वरिष्ठ मुंशी दयानारायण निगम का बहुत सम्मान करते थे और उनकी सलाह मानकर प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। बाद में वह मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी लिखने लगे। साहित्य की दुनिया में उन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अपना नाम खुद मुंशी प्रेमचंद तय किया।3. प्रेमचंद की वजह से जन जन तक पहुंची हिंदी
प्रेमचंद की हिंदी भाषा पर गजब की पकड़ थी। वह देशी शब्दों के साथ शुद्ध हिंदी भी लिखते थे, जिससे हिंदी भाषा के पाठक उनके साहित्य से एक अलग तरह का लगाव महसूस करने लगता है। उन्होंने अपने लोकप्रिय साहित्य से हिंदी भाषा की काया ही पलट दी। लोग उनके साहित्य को पढ़ने के दौरान उनके कहानी और उपन्यास के पात्रों से जुड़ जाते हैं। यही प्रेमचंद की खूबी है।
4. फिल्म इंडस्ट्री ने नहीं किया प्रेमचंद के साथ न्याय
प्रेमचंद ने उम्दा उपन्यास और कहानियां लिखीं, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के साथ दर्शकों ने भी न्याय नहीं किया। उनके उपन्यास 'गोदान' पर बेहद उम्दा फिल्म बनी,लेकिन चली नहीं। 'गोदान' फिल्म में राजकुमार, महमूद ने अहम भूमिका अदा की थी, जबकि इसका संगीत रविशंकर ने दिया था। बावजूद इसके यह फिल्म व्यावसायिक रूप से असफल साबित हुई। कुल मिलाकर प्रेमचंद को सिनेमा कभी रास ही नहीं आया। यह अलग बात है कि वह खुद ही अपनी किस्मत आजमाने 1934 में मुंबई (तब बंबई) गए थे। अजंता सिनेटोन कंपनी में कहानी लेखक की नौकरी भी की, लेकिन एक साल का अनुबंध पूरा करने के पहले ही वाराणसी (उत्तर प्रदेश) वापस आ गए। इससे पहले मुंबई में उन्होंने 'मजदूर' फिल्म की पटकथा भी लिखी। मोहन भगनानी के निर्देशन में बनी यह फिल्म असफल रही। अंग्रेजी शासन में रिलीज हुई यह फिल्म वह सफलता नहीं अर्जित कर सकी, जिसके हकदार प्रेमचंद थे।5. एक हिंदी फिल्म में प्रेमचंद ने निभाई थी भूमिका
प्रेमचंद का नाम 1942 में रिलीज फिल्म 'मजदूर' से जु़ड़ा। इस फिल्म की कहानी को प्रेमचंद ने लिखा था। अहम बात यह है कि प्रेमचंद ने इस फिल्म में छोटी सी भूमिका भी निभाई थी। इस फिल्म में उन्होंने एक मजदूर नेता की भूमिका निभाई थी। दुखद यह रहा कि अंग्रेजी शासन को यह फिल्म नहीं भाई और आखिरकार फिल्म को दर्शकों ने भी नकार दिया। अगर यह फिल्म सफल रहती तो प्रेमचंद की कलम का जादू कई हिंदी फिल्मों में देखने को मिलता। जानकार भी मानते हैं कि अगर प्रेमचंद की 'गोदान' और 'मजदूर' हिट होती तो प्रेमचंद उम्दा पटकथा लिखते, मगर अफसोस जीनियस लोगों के साथ समाज वह न्याय कभी नहीं करता जिसके वह हकदार होते हैं।
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