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निजी संस्थानों को दिव्यांगों को देना होगा आरक्षण का लाभ, दिल्ली हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने आइपीयू द्वारा पीड़ित 22 वर्षीय छात्र के प्रवेश को रद्द करने के मामले में छात्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि सभी निजी संस्थान दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम-2016 के दायरे में आते हैं। कोर्ट ने विश्वविद्यालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दिव्यांगता अधिनियम सरकारी संस्थानों और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त संस्थानों तक ही सीमित है।

By Ritika Mishra Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Wed, 29 May 2024 03:59 PM (IST)
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निजी संस्थानों को दिव्यांगों को देना होगा आरक्षण का लाभ, दिल्ली हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (आइपीयू) द्वारा हल्की मानसिक मंदता से पीड़ित 22 वर्षीय छात्र के प्रवेश को रद्द करने के मामले में छात्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तल्ख टिप्पणी दी।

कोर्ट ने कहा कि कोई भी निजी शैक्षणिक संस्थान दिव्यांगों को आरक्षण से वंचित नहीं कर सकता है, संस्थान को ऐसे उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ देना होगा। कोर्ट ने कहा कि सभी निजी संस्थान दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम-2016 के दायरे में आते हैं।

कोर्ट ने विश्वविद्यालय के तर्क को किया खारिज

कोर्ट ने विश्वविद्यालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दिव्यांगता अधिनियम सरकारी संस्थानों और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त संस्थानों तक ही सीमित है। निजी संस्थानों पर ऐसा कोई आदेश लागू नहीं करता है।

आइपीयू ने छात्र को दाखिला देने से किया था इनकार 

न्यायमूर्ति सी हरीशंकर की पीठ ने आइपीयू को निर्देश दिया कि बौद्धिक मंदता से पीड़ित छात्र को दिव्यांगता आरक्षण के तहत दाखिला दिया जाए। छात्र ने बीए-एलएलबी कोर्स में दाखिले के लिए आवेदन किया था, लेकिन आइपीयू ने कई कारण बताते हुए छात्र को दाखिला देने से इनकार कर दिया था।

आइपीयू ने इसमें छात्र की दिव्यांगता श्रेणी को लेकर सवाल उठाया गया था। पीड़ित ने अपने पिता के माध्यम से आइपीयू के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने विश्वविद्यालय द्वारा छात्र की दिव्यांगता को उचित ठहराने के लिए सरकारी अस्पताल द्वारा जारी प्रमाण पत्र की अनदेखी करते हुए अतिरिक्त दस्तावेज की मांग को भी अनुचित और अवैध बताया।

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