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Delhi Congress: ‘जड़’ से भी दूर होने लगे दिग्गज नेता, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की सूची पर विवाद

दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी के कार्यकाल में साल के अंत में ही सही लेकिन ब्लाक पर्यवेक्षकों की सूची तो जारी कर दी गई। 280 पर्यवेक्षकों की यह सूची आते ही विवादित हो गई है। सबसे बड़ा विवाद तो यह है कि सूची में वरिष्ठता का कोई क्रम नहीं है।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Thu, 31 Dec 2020 02:29 PM (IST)
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कांग्रेस के स्थापना दिवस पर प्रदेश कार्यालय में झंडारोहण के बाद सलामी देते पार्टी नेता एवं सेवादल के सदस्य

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। देश के सबसे पुराने सियासी दल कांग्रेस की दिल्ली इकाई के नेता अब अपनी ‘जड़’ यानी पार्टी के कार्यक्रमों से ही दूरी बनाने लगे हैं। दो दिन पहले पार्टी के प्रदेश कार्यालय में स्थापना दिवस मनाया गया था। इसमें अध्यक्ष के अलावा पांच में से एक उपाध्यक्ष और प्रदेश महिला अध्यक्ष ही मौजूद रहीं। कोई वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व पार्षद तक इस कार्यक्रम में नहीं पहुंचा। जिलाध्यक्षों का तर्क है कि उन्हें अपने-अपने जिले में कार्यक्रम कराना था, जो माना भी जा सकता है। इसके बाद भी तमाम दिग्गज नेता जो कार्यक्रम से नदारद थे, उन्हें छूट नहीं दी जा सकती है।

हालांकि, बहाने सभी नेताओं के पास हैं, लेकिन जिस पार्टी ने सब कुछ दिया, अगर उसके लिए भी इन नेताओं के पास समय न हो तो फिर जनता के लिए उनकी निष्ठा और समर्पण कितना होगा। इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

सूची पर विवाद

दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी के कार्यकाल में साल के अंत में ही सही, लेकिन ब्लाक पर्यवेक्षकों की सूची तो जारी कर दी गई। 280 पर्यवेक्षकों की यह सूची आते ही विवादित हो गई है। सबसे बड़ा विवाद तो यह है कि सूची में वरिष्ठता का कोई क्रम नहीं है। फरवरी में ही विधानसभा चुनाव लड़े प्रत्याशियों तक को ब्लाक स्तर की जिम्मेदारी दे दी गई। कुछ नाम ऐसे सामने आए हैं, जो भाजपा और आम आदमी पार्टी का हिस्सा हैं। उदाहरण के लिए सदर क्षेत्र से वीरेंद्र कुमार बिंदु को पर्यवेक्षक बनाया गया, जबकि इनके आप नेताओं संग कई बैनर- पोस्टर वाट्सएप ग्रुपों पर वायरल हो रहे हैं। इसी तरह कुछ पर्यवेक्षकों का सियासी कद इतना छोटा है कि वे अपने ब्लाक के पार्षद या प्रमुख नेताओं को बैठक में बुलाने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे। कुछ ने फोन किया भी तो सकारात्मक जवाब नहीं मिला।

आंदोलन का मुद्दा देसी, पहुंच बना रहे विदेशी

कृषि कानूनों की वापसी को लेकर चल रहा आंदोलन मुख्य तौर पर भले ही पंजाब के किसानों तक सीमित हो, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में किया जा रहा है। आलम यह है कि देश के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने के लिए इंटरनेट मीडिया की खूब मदद ली जा रही है। ‘ट्रैक्टर-टू-ट्विटर’ नामक अकाउंट पर किसान आंदोलन से जुड़ी तमाम तरह की जानकारी साझा की जा रही है। 28 नवंबर को शुरू किए गए इस ट्विटर हैंडल से कई मिलियन लोग जुड़ चुके हैं। इस ट्विटर हैंडल पर कमोबेश रोजाना ही लक्ष्य निर्धारित करते हुए बहुत सारी पोस्ट डाली जा रही हैं। देश में इस आंदोलन को जनता और सभी राज्यों के किसानों का समर्थन भी नहीं मिल रहा, लेकिन कुछ किसान संगठनों द्वारा समर्थन का दावा रोज किया जाता है। ऐसे में अब ट्विटर के जरिये देश के बाहर से भी समर्थन जुटाया जा रहा है।

हवा सुधारने को बने आयोग का दावा हवाहवाई

दिल्ली-एनसीआर की प्रदूषित हवा सुधारने के लिए गठित 18 सदस्यीय आयोग हवाहवाई ही साबित हो रहा है। कहने को तो इसके गठन को दो माह होने को हैं, लेकिन इसके अस्तित्व का एहसास कहीं पर नहीं होता। सबसे बड़ी बात यह है कि इस आयोग का अभी तक कोई स्थायी कार्यालय तक नहीं खुला , जबकि जमे जमाए प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) को खत्म कर दिया गया। आलम यह है कि हवा को काला करने वाले भयमुक्त नजर आने लगे हैं। इस साल सर्दियों के प्रदूषण की रोकथाम के लिए किसी तरह की गतिविधियों पर भी खास प्रतिबंध नहीं लगा। बस जब-तब सीपीसीबी ही छोटे मोटे दिशा निर्देश जारी करके इतिश्री कर लेता है। अब तो आम लोग भी चुटकी लेने लगे हैं कि शायद ईपीसीए अध्यक्ष भूरेलाल व सदस्य सुनीता नारायण की ‘सख्ती’ खत्म करने के लिए ही इस आयोग का गठन किया गया है।

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