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संघर्षों के साथ शुरू हुए सफर को बुलंदियों तक पहुंचाया महाशय धर्मपाल ने, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी किया व्यवसाय

आज पूरे देश में एमडीएच की 22 फैक्ट्रियां हैं। संघर्ष के सफर की शुरुआत महाशय जी के लिए सियालकोट में ही शुरू हो गई थी। उन्होंने सियालकोट में सबसे पहले कपड़े धोने वाले साबुन बनाने का काम किया। इसके बाद बढ़ई का काम किया।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Thu, 03 Dec 2020 12:09 PM (IST)
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एमडीएच मसाले के प्रबंध निदेशक महाशय धर्मपाल गुलाटी_ANI
पश्चिमी दिल्ली [भगवान झा]। अब हमारे बीच एमडीएच मसाले के प्रबंध निदेशक महाशय धर्मपाल गुलाटी नहीं रहे, लेकिन उनका जीवन आज भी प्रेरणा दे रहा है। कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारते हुए उन्होंने कामयाबी का वह बेमिसाल नमूना पेश किया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है। उनकी मेहनत व दृढ़ इच्छाशक्ति को देखते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से नवाजा और उनके जीवन संघर्ष को सलाम किया।

दिल्ली में मसाले का कारोबार शुरू करने के बाद वर्ष 1959 में कीर्ति नगर में पहली फैक्ट्री खोली। उस समय उनके साथ सिर्फ दस लोग थे। महाशय जी इस बात को लेकर हर समय सजग रहते थे कि उत्पाद के साथ कभी हमें समझौता नहीं करना है। जब घर-घर में एमडीएच मसाले की पहुंच होने लगी तो महाशय जी ने अपने व्यवसाय को विस्तार दिया और स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य किया।

दिल्ली में अस्पताल भी खोला

स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनकपुरी में माता चानन देवी अस्पताल, माता लीलावंती लेबेरेट्री, एमडीएच न्यूरोसाइंस संस्थान नई दिल्ली, महाशय धर्मपाल एमडीएच आरोग्य मंदिर सेक्टर 76 फरीदाबाद, महाशय संजीव गुलाटी आरोग्य केंद्र ऋषिकेश, महाशय धर्मपाल हृदय संस्थान सी-1 जनकपुरी में स्थित है।

इसके अलावा द्वारका में एक स्कूल है। महाशय धर्मपाल खाने के बहुत शौकीन थे। उन्हें मिठाई में रबड़ी, रसमलाई व जलेबी खूब पसंद आती थी। साथ ही फोटो खिंचवाने में उन्हें काफी अच्छा लगता था। इस दौरान वे इस बात का जरूर खयाल रखते थे कि पगड़ी पहनी है या नहीं। बिना पगड़ी के वे फोटो नहीं खिंचवाते थे। उनका जीवन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां, मानव जब जोर लगाता है पत्थर भी पानी बन जाता है, पर आधारित रहा और जीवन में कभी भी हार नहीं मानी।

पाकिस्तान से 1500 रुपये लेकर दिल्ली आए थे

महाशय धर्मपाल हिंदुस्तान के बंटवारे के समय सियालकोट से दिल्ली महज 1500 रुपये लेकर आये थे। यहां आते ही गुजर बसर करने की चिंता ने सताया तो सबसे पहले एक तांगा खरीदा और नई दिल्ली से कुतब रोड व पहाड़गंज तक चलाना शुरू किया। इस दौरान वे सड़क पर काफी देर तक साब..दो आने सवारी, दो आने सवारी, चिल्लाता रहते थे, लेकिन सवारी नहीं मिलती थी। कई बार महाशय धर्मपाल हताश हो जाते थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने तांगा बेच दिया और अजमल खान रोड पर महाशय दी हट्टी के नाम से मसाले की दुकान खोल ली।

इसके बाद सफर की शुरुआत हुई और आज पूरे देश में एमडीएच की 22 फैक्ट्रियां हैं। संघर्ष के सफर की शुरुआत महाशय जी के लिए सियालकोट में ही शुरू हो गई थी। उन्होंने सियालकोट में सबसे पहले कपड़े धोने वाले साबुन बनाने का काम किया। इसके बाद बढ़ई का काम किया। जब इसमें भी मन नहीं लगा तो कपड़े की दुकान पर नौकरी की। इतना ही नहीं, फैक्ट्री में भी महाशय जी ने काम किया।

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