इस निरुत्तरता के बीच बढ़ती बेचैनी में ये भी महसूस करेंगे कि आप असहाय हैं, चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल भू का गर्भ चीरकर इतना पानी उलीछा गया कि अब टैंकर के आने की उम्मीद में रात पहरा देती है। या घर में लगे आरओ के सुकून से इस्तेमाल से कई गुना पानी बहा रहे होते हैं।
दिल्ली के जल संकट की नब्ज को और सुप्रीम कोर्ट की इस पर तकलीफ को इस तरह समझ सकते हैं कि उसे भी यह कहना पड़ा कि राज्यों के बीच में यमुना जल का बंटवारा बहुत ही जटिल मुद्दा है। हमारे पास कोई फॉर्मूला तय करने की विशेषज्ञता नहीं है। सभी पक्ष यानी दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल गहनता से बातचीत के बाद किसी नतीजे पर पहुंचे और एक बार फिर यमुना रिवर फ्रंट के सामने प्यासी दिल्ली उम्मीद लिए खड़ी है। क्योंकि ये सर्वविदित है कि राजनीति के जुमलों से पानी तो नहीं आएगा। न ही मटका फोड़ने से और दफ्तरों के शीशे तोड़ने से लोगों के घर तक पानी जाएगा।
हां, जनता को बहलाकर लू के थपेड़े झेल रही दिल्ली को उसके हाल पर जून के आखिरी में मानसून आने तक जरूर ऐसे ही हालात पर छोड़ा जा सकता है। इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि दिल्ली का जल संकट राजनीतिक दलों के लिए आपदा में अवसर की भांति बन गया है। लोकसभा चुनाव में तो इसे भुना नहीं पाए अब अगले वर्ष शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जरूर इस जल संकट की परत बिछाई जा रही है। अवसर तलाशने वाले इन राजनीतिक दलों से निष्ठापूर्ण निष्कर्ष की अपेक्षा मुफ्त पानी बांटकर या हर घर जल नल से नहीं की जा सकती।
जल संपन्न दिल्ली चिंतन अवस्था में
यहां हम देश की राजधानी दिल्ली के पानी का इतिहास पलटेंगे तो इसकी जल संपन्नता के बखूबी निशान मिलते हैं। दिल्ली के गजेटियर (1883-84) में जिक्र मिलता है कि ''पंजाब सूबे के सभी जिलों में दिल्ली खेती के लिए सिंचाई योग्य क्षेत्र के मामले में सबसे अव्वल थी। यहां 37 सिंचाई योग्य क्षेत्रों में से 15 क्षेत्र कुंओं से ही सिंचित होते थे जबकि चार सिंचाई योग्य क्षेत्रों में झीलों के माध्यम से और 18 क्षेत्रों में नहरों के पानी से सिंचाई की जाती थी।"
बताया गया कि उसके कुछ और समय बाद का गजेटियर (1912) देखें तो "दिल्ली में होने वाली कुल सिंचित क्षेत्र में 57% सिंचाई कृत्रिम साधनों से ही होती थी और 19% में कुओं से, 18% नहरों से और 20% बांध से होती थी। दिल्ली की नई पीढ़ी इस बात से अनजान ही है कि राजधानी में यमुना नदी के बाद पानी का सबसे बड़ा जल स्रोत नजफगढ़ झील होती थी।इतना ही नहीं, आज जल प्रदूषण का पर्याय बन चुका नजफगढ़ नाला कभी इस झील को नदी से जोड़ने वाला माध्यम था। यह नाला कभी राजस्थान की राजधानी जयपुर के जीतगढ़ से निकलकर अलवर, कोटपुतली से वाया हरियाणा के रेवाड़ी और रोहतक से होते हुए नजफगढ़ झील व वहां से राजधानी की यमुना नदी से मिलने वाली साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी।
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गर्मी के दिनों में पानी का हाहाकार
यहां ये सब तथ्य आज की पीढ़ी के लिए इसलिए जरूरी हैं ताकि अपने शहर की जल संपन्नता के प्रति सचेत होकर आज और भविष्य पर चिंतन मनन कर सकें। और अब तो दिल्ली का जल संकट भी ठीक उसी तरह हो गया है जिस तरह से यहां सर्दी ऋतु आने पर वायु प्रदूषण, वर्षा ऋतु के दिनों में जलभराव और गर्मी के दिनों में पानी का हाहाकार।
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वहीं कुल मिलाकर दिल्ली उस अवस्था में है कि 12 माह कोई न कोई एक बड़ा संकट जनमानस के समक्ष खड़ा रहता है और दशकों से ये क्रम जारी है। वर्तमान में उत्पन्न इस जल संकट की भौगोलिक दृष्टि देखेंगे तो ये अवैध कॉलोनी वाले इलाकों से होता हुआ अब संपन्न लुटियंस दिल्ली तक पहुंच चुका है। वहां भी इस बार दिल्ली टैंकर से जल आपूर्ति हो रही है।
दिल्ली का जल संकट आज की बात नहीं
गर्मी की फौरी राहत से पहले 49 डिग्री तापमान पर जल संकट से त्राहि त्राहि कर रही दिल्ली का जल संकट आज की बात नहीं है। अतीत में गजेटियर जरूर जल समृद्ध दिल्ली की तस्वीर दिखाते हैं लेकिन तीन-चार दशक से सिकुड़ते जल संकाय से ये खाई अब और बड़ी होती जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट गए थे पर्यावरणविद कमोडोर सुरेश्वर धारी सिन्हा
साल 1995 में दिल्ली के लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिलने के लिए एक पर्यावरणविद कमोडोर सुरेश्वर धारी सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट गए थे। उन्होंने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। सिन्हा ने इस याचिका में यमुना नदी के पानी के प्रवाह को ठीक बनाने की मांग की थी। सिन्हा ने तर्क दिया कि पीने के पानी को बाकी किसी दूसरी चीजों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सिन्हा के पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि घरेलू उपयोग के लिए पानी का अधिकार दूसरी बाकी चीजों से ज्यादा जरूरी है। दिल्ली ज्यादा पानी की हकदार है। इसके अलावा कोर्ट ने हरियाणा को आदेश दिया था कि पूरे साल दिल्ली को जरूरी मात्रा में पानी देना होगा।सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नहर प्रणाली में रिसाव को बंद करके राजधानी की बढ़ती पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिल्ली और हरियाणा के बीच में एक जरूरी पहल की शुरुआत की। हम यह भी कह सकते हैं कि देश की राजधानी अपने नागरिकों की पेयजल जरूरत पूरा करने के लिए 90% तक दूसरे राज्यों पर ही आश्रित है।
कुप्रबंधन है बड़ा कारण
अब दिल्ली के पानी के हक की तो बात हो गई। लेकिन हक के लिए हल नहीं निकला। बीते सवा माह से जल संकट की पिच पर दिल्ली-हरियाणा और हिमाचल के बीच एक-दूसरे के पाले में पानी की गेंद फेंकने का खेल सब देख रहे हैं। हरियाणा का दावा दिल्ली को पूरा पानी दे रहे, दिल्ली का दावा पानी कम मिल रहा है। जांच पड़ताल में हरियाणा से मूनक नहर में 2,289 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता।काकोरी के पास से मूनक नहर में दिल्ली के लिए 1,161.08 क्यूसेक डायवर्ट किया जाता, जो दिल्ली के कोटे की तुलना में 111 क्यूसेक अधिक पानी था। यही हरियाणा का दावा भी रहा। लेकिन जब दिल्ली के एंट्री प्वाइंट बवाना के पास नहर में पानी मापा जाता तो यह 960.78 क्यूसेक रहता। यानी हरियाणा से मूनक नहर में जितना पानी दिल्ली के लिए दिया गया था, उसमें से करीब 201 क्यूसेक पानी कम। लगभग 25% कहां जा रहा है इसका पता दोनों राज्य नहीं लगा पाए।हालांकि, यह दिल्ली के लिए अधिक चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि इस पूरे प्रकरण में दो बातें निकल आईं कि मूनक नहर का रखरखाव ठीक नहीं है जिससे नहर का पानी बर्बाद होता है। दूसरा टैंकर माफिया नहर से पानी चोरी करते हैं।
जल पीकर दो दिन से जल के लिए अनशन पर बैठी हैं आतिशी
इसमें तो कोई दोराय नहीं कि दिल्ली सरकार की जल मंत्री भले जल पीकर दो दिन से जल के लिए अनशन पर बैठी हैं। हरियाणा से जल देने के लिए हठयोग कर रही हैं लेकिन दिल्ली सरकार अपने उपचार संयंत्रों तक का उपचार करने में पूरी तरह विफल है। जिस कारण से संयंत्रों से उपलब्ध पेयजल का 42 प्रतिशत ही लोगों तक पहुंच पाता है। शेष 58 प्रतिशत पानी रिसाव और चोरी में बर्बाद हो रहा है। और हैरानी की बात ये है कि जब से रेवड़ी श्रेणी में ‘पानी’ भी आया है तब से ये और बढ़ा है।
राजधानी के कई बड़े ऐसे हिस्से हैं जहां 12 मास टैंकर माफिया सक्रिय
एक दशक से पहले 52 प्रतिशत तक चोरी थी और अब 58 प्रतिशत हो चुकी है। पानी के इतने बड़े हिस्से पर मौन रहना ठीक उसी तरह से है कि अपना घर ठीक नहीं करना और दूसरों के लिए सलाह बहुत हैं। टैंकर माफिया के गठजोड़ में तो सभी राजनीतिक दल सम्मिलित हैं। यही कारण है कि जल संकट चूंकि गर्मी में जरूरत, खपत बढ़ जाती है लेकिन देश की राजधानी के कई बड़े ऐसे हिस्से हैं जहां 12 मास टैंकर माफिया सक्रिय रहते हैं, वहीं आपूर्ति करते हैं। आज से नहीं यह उपक्रम शीला दीक्षित सरकार के समय से है।दिल्ली में तीनों राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा और आप पानी से मत मथने पर तो जमा-गुणा लगाते रहे हैं लेकिन जनता के हित में निदान वास्तविक रूप से किसी ने नहीं सोचा है। और अभी तो देश हर घर जल के तहत घर-घर टोंटी लगवा रहा है पानी भी पहुंचेगा निश्चित ही ये पानी धरा की कोख से निकाल कर ही टोंटी तक आएगा। लेकिन चिंतन का विषय भी होना चाहिए कि देश भूगर्भ जल स्तर लगातार धरातल में समा रहा है। हर साल जल विभाग के आंकड़े ही हमारे समक्ष इस रिपोर्ट को रखते हैं।
बेहतर प्रबंधन कर सकती है नारी शक्ति
अब बात निदान की, पिछले वर्ष ही यूनेस्को द्वारा यूएन-वाटर की ओर से प्रकाशित और न्यूयार्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन में एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें वैश्विक स्तर पर दो बिलियन लोग यानी 26% आबादी के पास सुरक्षित पेयजल नहीं है। यानी हमारे लिए चारों तरफ से अलार्मिंग है। अब राजनीति से ऊपर उठकर इस बड़े संकट की ओर बढ़ती देश की राजधानी दिल्ली के लिए अधुनातन अवस्था में चिंतन का विषय इसका निराकरण होना चाहिए।विश्व में कहीं जल संकट होता है तो खास तौर पर विकासशील देशों में जिस पथ पर भारत भी आता है। तो पानी के इस्तेमाल के लिए पुरुषों और महिलाओं की प्राथमिकताएं और जिम्मेदारियां भी अलग करते देखी जा सकती हैं। क्योंकि दोनों के जल उपयोग अलग हैं। पुरुषों के साथ खेती के अलावा, महिलाएं अक्सर पानी लाने और सफाई, खाना तैयार करने और कपड़े धोने जैसे घरेलू कामों के लिए भी इसका इस्तेमाल करने के लिए जिम्मेदार होती हैं।
महिलाएं करती हैं जल प्रबंधन
ये भी सच है कि टैंकर से दिनभर की जिद्दोजहद से लाया गया एक बाल्टी पानी का प्रबंधन भी महिला ही करती है। और जब महिलाएं जल प्रबंधन को प्रभावित करती हैं तो बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। ये एक बाल्टी पानी के माध्यम से तो महज उद्धरण है लेकिन महिलाओं के माध्यम से जल प्रबंधन की योजनाओं उन्हें जमीन तक पहुंचाने का बेहतर प्रबंधन कराया जा सकता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक समान रूप से पानी साझा करती हैं
विश्व में एशिया और अफ्रीका देशों में ऐसे सुफल प्रयोग हुए भी हैं। महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अधिक समान रूप से पानी साझा करती हैं, खासकर कमी के समय में। पानी की कमी देश-दुनिया सभी के लिए सामाजिक अस्थिरता और संघर्ष का एक महत्वपूर्ण कारक बन रहा है। देश की राजधानी में भी पानी के लिए कई अपराध घटित हो चुके हैं। इसलिए एक स्वस्थ विचार के साथ उचित रहा पर चेतना का अवसर है। अभी भी नहीं जागे तो कभी नहीं जागे।