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Coronavirus: दिल्ली में 15 मई तक कोरोना के बढ़ते मामलों से राहत मिलने की उम्मीद: डॉ. सरीन

Coronavirus पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) के निदेशक व दिल्ली सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की कमेटी के अध्यक्ष डॉ. एसके सरीन से रणविजय सिंह ने बातचीत की।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Mon, 27 Apr 2020 11:44 AM (IST)
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Coronavirus: दिल्ली में 15 मई तक कोरोना के बढ़ते मामलों से राहत मिलने की उम्मीद: डॉ. सरीन
नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से दिल्ली समेत पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहा है। महाराष्ट्र, गुजरात के बाद सर्वाधिक मामले दिल्ली में देखे जा रहे हैं। दिल्ली में कोरोना वायरस के संक्रमण के मौजूदा हालात, संक्रमण की रोकथाम के उपायों व इलाज के लिए किए जा रहे प्रयासों के संबंध में यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) के निदेशक व दिल्ली सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की कमेटी के अध्यक्ष डॉ. एसके सरीन से रणविजय सिंह ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:

दिल्ली में मामले बढ़ते जा रहे हैं, पिछले कुछ दिनों से औसतन सौ से ज्यादा मामले आ रहे हैं, इसके क्या मायने हैं?

कोरेाना के मामलों का बढ़ना चिंताजनक तो है, लेकिन यह अनुमान के मुताबिक ही है। दिल्ली सरकार द्वारा गठित डॉक्टरों की समिति ने अनुमान लगाया था कि अप्रैल के मध्य तक राजधानी में प्रतिदिन 100 या उससे ज्यादा मामले आएंगे। मई के शुरुआत में मामले और बढ़ने की आशंका जताई गई थी। उसके आधार पर ही इलाज की तैयारियां की गई हैं। अभी तक पांच-छह बार ही ऐसा हुआ है जब एक दिन में मामले 100 से अधिक आए। ऐसी संभावना है कि अगले कुछ दिनों तक कोरोना के मामले बढ़ेंगे। फिर भी स्थिति नियंत्रण में है। 15 मई तक कोरोना के बढ़ते मामलों से राहत मिलने की उम्मीद है।

रैपिड टेस्ट किट की गुणवत्ता सवालों के घेरे में आने के बाद इसका इस्तेमाल फिलहाल बंद है, फिर दिल्ली में जांच ज्यादा कैसे बढ़ाई जाएगी?

देश में जांच किट तैयार की जा रही है। इसलिए आने वाले दिनों में यह मसला हल हो जाएगा। साथ ही आइएलबीएस में पूल टेस्टिंग शुरू कर दी गई है। इस तकनीक से जांच जल्दी होगी। इसके तहत ऐसे कंटेनमेंट (सील) जोन, जहां पांच फीसद से कम लोगों में संक्रमण पाया जाता है, वहां के पांच लोगों का सैंपल मिलाकर एकसाथ जांच की जाएगी। इससे रिपोर्ट जल्दी आती है। रिपोर्ट नेगेटिव आने पर पूल के सभी लोगों को नेगेटिव मान लिया जाता है। रिपोर्ट में थोड़ा भी संदेह होने पर सभी लोगों की अलग-अलग जांच कराई जाती है। डॉ. एकता गुप्ता के नेतृत्व में आइएलबीएस में पूल जांच शुरू हो गई है।

निर्धारित लॉकडाउन में एक सप्ताह का समय है, मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए क्या इसे और बढ़ाए जाने की जरूरत है?

यह नीतिगत मसला है। तीन मई तक क्या स्थिति रहती है उसकी समीक्षा करने के बाद प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री मिलकर यह निर्णय करेंगे कि आगे क्या करना है। फिलहाल दिल्ली में कई अच्छी चीजें हो रही हैं। पहली बात यह है कि यहां करीब 2,000 लोगों की जांच प्रतिदिन हो रही है। प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल शुरू किया जा चुका है। ताकि गंभीर मरीजों को बचाया जा सके। कंटेनमेंट जोन में बगैर लक्षण वाले उन लोगों की जांच भी की जा रही है, जिन्हें संक्रमण की आशंका है। चूंकि पहले चरण में संक्रमण होने के बाद वायरस सांस की नली के ऊपरी हिस्से (गले के आसपास) में मौजूद होता है। दूसरे चरण में फेफड़े में संक्रमण करता है और फिर शरीर के दूसरे हिस्से को प्रभावित करना शुरू करता है। लक्षण आने से पहले जांच करने का फायदा यह भी है कि संक्रमित व्यक्ति की देखभाल ठीक से सकती है। इससे पीड़ित व्यक्ति में लक्षण आने के बाद भी तीसरे चरण में पहुंचने का खतरा कम रहेगा। इससे मृत्युदर कम होगी। इसलिए प्रतिदिन करीब 5000 हजार जांच करने की जरूरत है। इसके लिए पूल टेस्ट भी करना पड़ेगा।

प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल शुरू हुआ है, इससे कितनी उम्मीदें हैं?

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) व ड्रग कंट्रोलर ने स्वीकृति मिलने के बाद प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल शुरू किया गया है। अभी तक पांच मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया है। शुरुआती नतीजे उत्साहजनक हैं। फिर भी अभी इसके सफलता को लेकर कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसके पीछे की सोच बहुत मजबूत है। इसलिए ठीक हुए लोगों से संपर्क कर प्लाज्मा दान के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। आइएलबीएस में ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ. मीनू बाजपेयी डोनर से प्लाज्मा लेती हैं। इस प्लाज्मा का उपयोग लोकनायक अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. सुरेश कुमार कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए करते हैं।

जांच को आसान बनाने के लिए दुनिया भर में किस तरह के शोध चल रहे हैं?

आने वाले दिनों में प्वाइंट ऑफ केयर और एलाइजा जांच आ सकती है। जैसे-जैसे तकनीक में बदलाव आती जाती है जांच की गुणवत्ता बेहतर होती जाती है। उदाहरण के लिए वायरल हेपेटाइटिस की जांच के लिए जनरेशन चार की एलाइजा टेस्ट किट उपलब्ध हो गई। कोरोना की यह बीमारी नई है। इस वजह से अभी पहले जनरेशन की एलाइजा किट भी उपलब्ध नहीं है। अमेरिका में अब इसके इस्तेमाल की बात सामने आ रही है। एलाइजा टेस्ट किट आने पर जांच आसान हो जाएगी और बड़ी संख्या में जांच संभव हो पाएगी।

काफी संख्या में डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मचारी इसके चपेट में आ रहे हैं, यह अस्पतालों के लिए कितनी बड़ी समस्या है?

यह चिंताजनक है। इस तरह तो सभी अस्पताल बंद हो जाएंगे। इसके लिए अस्पातल में भर्ती होने वाले सभी मरीजों की अनिवार्य रूप से कोरोना जांच करनी पड़ेगी या फिर सभी अस्पतालों में एक ऐसी जगह निर्धारित करनी होगी, जहां संदिग्ध मरीज को पहले भर्ती कर वहां जांच कराई जाए। जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने पर उसे वार्ड में स्थानांतरित किया जा सकता है। इमरजेंसी में कार्यरत सभी मरीजों को पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट (पीपीई) किट उपलब्ध कराया जा सकता है। वैसे दिल्ली में अभी पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध है। इसलिए किसी को घबराने की जरूरत नहीं है।

बीमारी से बचाव के लिए लोगों को क्या संदेश देंगे?

लोग इस बीमारी को एचआइवी की तरह सामाजिक लांछन के रूप में देखने लगे हैं। यह समझना पड़ेगा कि संक्रमित होने वालों की कोई गलती नहीं है। अनजाने में संक्रमित हुए। इसलिए समाज मरीजों से भावनात्मक दूरी न बनाए और किसी कोरोना मरीज को हेय दृष्टि से न देखे। जिन्हें संक्रमण की आशंका है वे भी निर्भीक होकर जांच कराएं, ताकि समय पर इलाज मिल सके। दूसरी बात यह कि कई जगहों पर कोरोना का इलाज करने वाले डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों से मारपीट की घटनाएं हुईं। ऐसा नहीं होना चाहिए। वे कोरोना से इस जंग में सबसे आगे रहकर मुकाबला कर रहे हैं। वे देव तुल्य हैं। जिस तरह सेना के जवान को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किए जाता है, उसी तरह अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्यकर्मियों को भी सम्मानित किया जाना चाहिए।

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