पढ़िए किस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठाया सवाल, कहा लोगों को यूं ही जेल में नहीं डाल सकते
पीठ ने कहा कि छह से आठ सितंबर तक पुलिस ने दोनों को अवैध तरीके से हिरासत में रखा। पुलिस का ए से लेकर जेड तक हर दस्तावेज जाली है। उन्हें दिल्ली पुलिस को बताना चाहिए था। उत्तर प्रदेश पुलिस लोगों को यूं ही जेल में नहीं डाल सकती है।
By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Wed, 19 Jan 2022 02:58 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। युवती के स्वजन की मर्जी के खिलाफ शादी करने वाले युवक के पिता और भाई को स्थानीय पुलिस को सूचित किए बगैर गिरफ्तार करने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश पुलिस पर सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों द्वारा दस्तावेजों में जालसाजी की गई थी।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच के अनुसार आरोपित अधिकारियों की काल रिकार्ड से पता चला है कि गिरफ्तार किए गए दो व्यक्तियों को दिल्ली से शामली ले जाया गया। यहां दोनों परिवारों के बीच जब बातचीत विफल हुई तो गिरफ्तार दिखाया गया। पीठ ने कहा कि छह से आठ सितंबर तक पुलिस ने दोनों को अवैध तरीके से हिरासत में रखा। पुलिस का ए से लेकर जेड तक हर दस्तावेज जाली है। उन्हें दिल्ली पुलिस को बताना चाहिए था। उत्तर प्रदेश पुलिस लोगों को यूं ही जेल में नहीं डाल सकती है और न ही जहां चाहें वहां से गिरफ्तारी दिखा सकती है।
याचिकाकर्ता दंपती ने याचिका दायर कर दावा किया था कि लड़की के परिवार की इच्छा के खिलाफ उनके बेटे ने शादी की है। इसके कारण उन्हें बार-बार धमकियां मिल रही हैं। युवक ने दलील दी कि पुलिस ने इसी बीच उनके पिता व भाई को दिल्ली से उठा लिया था। दिल्ली पुलिस ने इसके बाद पीठ को सूचित किया था कि लड़के के परिवार के सदस्यों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने लड़की की मां द्वारा की गई शिकायत के संबंध में गिरफ्तार किया था।
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि जब प्राथमिकी में ही पता चला कि लड़की बालिग है, तो संबंधित उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारियों को लड़के के परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय मामले का पता लगाना चाहिए था। वहीं, उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने अदालत को सुनिश्चित किया कि दोषी अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा और उचित कार्रवाई की जाएगी। एएजी का रुख देखते हुए पीठ ने मामले को बंद करते हुए कहा कि मामले में आगे किसी आदेश की जरूरत नहीं है।
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