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Mirza Ghalib Death Anniversary: दिल्ली घूमनी है तो मिर्जा गालिब के खत पढ़िए जनाब

150 साल गुजर जाने के बाद भी मिर्जा गालिब की शायरी में जितनी ताजगी है उतनी ही ताजगी उनके पत्रों में भी है शायद यही कारण है कि उर्दू का अध्ययन करने वाले हर छात्र को मिर्जा गालिब के खत जरूर पढ़ने होते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 15 Feb 2021 10:51 AM (IST)
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पत्रों के माध्यम से एक पाठक, गालिब की शायरी ही नहीं उनके व्यक्तित्व से भी इश्क करने लगता है।

शकील शम्सी। गालिब के पत्रों की बहुत बड़ी खासियत है कि उन्हें पढ़ते-पढ़ते लगेगा कि आप उन मोहल्लों में ही घूम रहे हैं। कभी पुरानी दिल्ली की गलियां तो कभी राजघाट की सैर, कभी दरिया गंज तो कभी वह अपने पाठक को चांदनी चौक में ले जाते हैं। कभी बल्लीमारान की गलियों की खतों में सैर हो जाती है। गली कासिम जान में तो उनका घर ही था उसकी भी सैर कराते हैं और उस इलाके के रहने वालों से भी परिचय करवाते हैं। मिर्जा को दिल्ली से इतना प्रेम था कि अगर दिल्ली में तेज आंधी भी आती थी तो उसका जिक्र अपने किसी न किसी मित्र को पत्र लिखकर जरूर करते थे।

15 फरवरी को गालिब के निधन को आज 152 साल हो जाएंगे। इतने वर्ष बाद भी गालिब पुरानी ही नहीं, नई पीढ़ी के बीच भी अपनी शायरी से जिंदा हैं। उनकी शायरी का दुनिया की सभी जुबानों में अनुवाद हुआ है। दुनिया के ना जाने कितने विश्वविद्यालय हैं जहां उन पर शोध हुए हैं। केवल उनकी शायरी पर ही लोग लिख रहे हों ऐसा नहीं है, उन्होंने जो पत्र अपने मित्रों और शागिर्दो को लिखे उन पर भी न जाने कितनी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। उनके द्वारा लिखे गए पत्र आज उर्दू साहित्य का कीमती और बहुमूल्य संकलन हैं।

खास बात यह है कि मिर्जा गालिब ने यह पत्र साहित्य के लिए नहीं लिखे थे बल्कि बस अपने मिजाज के मुताबिक लिखे थे। उनके पत्रों का अंदाज ऐसा होता था कि जिसमें आदाब और अलकाब (शिष्टाचार के शब्द) नहीं होते थे बल्कि ऐसा लगता था कि जैसे वह सामने बैठे बात कर रहे हों। अपनी इस शैली पर उन्हें खुद भी गर्व था। वह कहते थे मैंने मुरासले को मुकालमे (लेखनी को संवाद) में बदल दिया। मिर्जा गालिब के पत्रों की सबसे अहम बात यह थी कि उनके पत्र उस समय का इतिहास बन गए।

विशेष कर उन्होंने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के जो हालात लिखे हैं उनको पढ़कर ऐसा लगता है जैसे पढ़ने वाला साहित्य नहीं पढ़ रहा है बल्कि उस समय की तस्वीर देख रहा है। एक पत्र में लिखते हैं अब दिल्ली में दिल्ली वाले कहा? हैं, परदेसी लोग आबाद हैं जो दिल्ली वाले थे वह या तो फांसी पर लटक गए हैं या जलावतन (देश से निष्कासित) हो गए। अपने एक पत्र में मिर्जा ने लिखा है कि उस समय दिल्ली पर पांच सेनाओं ने हमला कर दिया। एक तो बागियों का लश्कर है दूसरा खाकियों (अंग्रेजी) सेना का, तीसरा हमला सूखे का, चौथा हमला हैजे और पांचवा हमला बुखार का। इन सब में लाखों लोगों की जानें गईं।

[इंकलाब संपादक]

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