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Revealed Shocking Fact: सामने आ रहा है किसान आंदोलन के फेल होने का सबसे बड़ा कारण, निकला विदेशी कनेक्शन

Revealed Shocking fact about Farmer Movement अब लंगरों के पिज्जा-बर्गर खीर व जलेबी जैसे लजीज व्यंजनों की खुशबू यहां की फिजां में नहीं घुल रही है। यहां पर तैयार हो रहे पकवान आंदोलनकारियों को संघर्ष के लिए ऊर्जा देते थे लेकिन अब यह खत्म हो गया है।

By Jp YadavEdited By: Updated: Mon, 12 Apr 2021 12:26 PM (IST)
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कभी लग रहा था कि आंदोलन निर्णायक मुकाम को हासिल करेगा। फिलहाल, अब ऐसा कुछ नहीं है।
नई दिल्ली/सोनीपत/गाजियाबाद [संजय सलिल]। फंडिंग की धार कुंद पड़ने से कृषि कानून विरोधी आंदोलन की नाव बीच मंझधार में फंस गई है। ऐसे में नेतृत्वकर्ताओं के हाथों से आंदोलन की नैया की पतवार भी अब छूटने लगी है। यही कारण है कि साढ़े चार माह से अधिक समय से सिंघु बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन स्थल का नजारा अब बदल गया है। अब लंगरों के पिज्जा-बर्गर, खीर व जलेबी जैसे लजीज व्यंजनों की खुशबू यहां की फिजां में नहीं घुल रही है और न ही लंगरों में अब वैसी आग ही धधकती नजर आती है, जिसकी तपिश से तैयार पकवान आंदोलनकारियों को संघर्ष के लिए ऊर्जा देते थे।

ट्रैक्टर-ट्रालियों में ऊंघते बुजुर्ग-अधेड़, खाली पड़े हैं टेंट

सभा स्थल पर नेताओं के भाषण सुनने वाले चंद किसान प्रदर्शनकारी ही मौजूद रहते हैं। जो होते भी हैं वे ऊंघते नजर आते हैं। पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू का नाम लाल किला हिंसा में सामने आने और फिर गिरफ्तारी के बाद युवाओं ने दूरी बना ली है। जो यहां पर बैठे हैं, वो बुजुर्ग हैं। माना जा रहा है कि सिंघु बॉर्डर पर घटनी बुजुर्गों की संख्या से यह बात साफ-साफ कही जा सकती है कि नेतृत्वकर्ता अब कृषि कानूनों को लेकर लोगों को ज्यादा दिनों तक गुमराह नहीं कर सकते हैं, जबकि पिछले साल दिसंबर से लेकर इस साल जनवरी के अंतिम सप्ताह तक सिंघु बॉर्डर पर पंजाब व हरियाणा आदि राज्यों से उमड़ते हुजूम व युवाओं में जोश-जज्बे से यही लग रहा था कि आंदोलन निर्णायक मुकाम को हासिल करेगा। फिलहाल, अब ऐसा कुछ नहीं है।

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बेमियादी आंदोलन के लंबा खिंचने से आई निराशा

आलम यह है कि फंडिंग के अभाव में अब न तो प्रदर्शनकारियों को मसाज करने वाले लोग नजर आते हैं और न ही उनके जूते पालिश करने वाले ही दिखते हैं। कभी लंगरों में बारी के इंतजार में कतारबद्ध लोग दिखते थे तो अब टेबल पर रखीं थालियां उनका इंतजार करती रहती हैं। दरअसल, बेमियादी आंदोलन के लंबा खिंच जाने के कारण देश-विदेश के लोगों ने आंदोलन के लिए फंडिंग बंद कर दी है। पहले दूसरे देशों से आने वाले कई आप्रवासी लोग मंच से खुले आम आर्थिक सहायता का ऐलान करते थे। कई संगठन भी फंड मुहैया कराकर आंदोलन की आग को हवा दे रहे थे, लेकिन अब उनका स्वार्थ सिद्ध होता नहीं दिख रहा है तो ऐसे संगठनों ने भी अपने पैर पीछे खींच लिए हैं। यही कारण है कि नेतृत्वकर्ता अब मंच से लोगों से आर्थिक मदद की गुहार लगाते नजर आते हैं।

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नहीं नजर आ रही पहले सी रौनक

सिंघु बार्डर पर एक प्रतिष्ठान में काम करने वाले प्रभु दयाल कहते हैं कि बड़ी व महंगी गाडि़यों में भरकर खाने पीने के सामान लाने वाले लोग अब नदारद हो गए हैं। धरने में शामिल बड़ी संख्या में लोग अपने घर को लौट गए हैं। अब यहां पहले जैसी रौनक ही नहीं रह गई है।

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ईधन का खर्चा मिलना बंद, अब नहीं पहुंच रहा पंजाब से ट्रैक्टरों का जत्था

सिंघु गांव के दिनेश कहते हैं कि लोगों को बरगला कर ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है। किसानों के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वाले लोगों की चाल समझ में आ गई है। वह कहते हैं कि पंजाब से ट्रैक्टरों का जत्था अब इसलिए नहीं पहुंचता है कि उन्हें ईधन का खर्चा मिलना बंद हो गया है। आंदोलन की स्थिति तो दमे के उस मरीज की तरह हो गई, जिसकी सांसें उखड़ते-उखड़ते कुछ देर के लिए स्थिर हो जाती हैं।

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