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खुद बनें जिंदगी की नायिका, पढ़िए पहाड़ का सीना चीरने वाली अंशु की कहानी, राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित

अरुणाचल प्रदेश की जानी-मानी पर्वतारोही अंशु जामसेनपा वह दुनिया की पहली ऐसी महिला हैं जो एक सीजन में दो बार माउंट एवरेस्ट फतह कर चुकी हैं। कुल पांच बार एवरेस्ट फतह करने वाली अंशु जामसेनपा को पिछले दिनों पद्मश्री से सम्मानित किया गया...

By Prateek KumarEdited By: Updated: Wed, 05 Jan 2022 02:58 PM (IST)
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चार बहनों में सबसे छोटी अंशु जेमसेनपा की प्रेरक कहानी।

नई दिल्ली [सीमा झा]। मुझे कुछ अलग करना है। यह जज्बा बचपन से ही था। घर पर ही कभी शौकिया राइफल से शूटिंग तो कभी मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस किया करती थी। चार बहनों में सबसे छोटी अंशु जेमसेनपा के अभिभावक भी खुले खयालों के नहीं थे। बेहद सख्त माहौल में परवरिश हुई। स्कूल में ही थीं, तभी शादी कर दी गई। पति पर्यटन क्षेत्र में थे लिहाजा उनका देश-दुनिया का भ्रमण लगा रहता था। अंशु अकेले दो बेटियों की परवरिश करने लगीं, पर भीतर कुछ कर दिखाने का सपना बार-बार उन्हें प्रेरित कर रहा था। उन्होंने पति से मन की बात कही, लेकिन पति ने मना कर दिया। पति का अपना बिजनेस था। इसलिए उन्होंने सलाह दी कि वह भी उसी बिजनेस को बड़ा करें, लेकिन भविष्य के गर्भ में कुछ और ही छिपा था। कुछ ही सालों में अंशु ने वह कर दिखाया जिसकी सामान्य तौर पर कल्पना करना कठिन है। वह आज देश और दुनिया की जानी मानी पर्वतारोहियों में से एक हैं। कई रिकार्ड और सम्मान अपने नाम कर चुकी हैं। कल तक जो आलोचना कर रहे थे। आज उन पर गर्व करते हैं। कहते हैं कि जितनी बड़ी शख्सियत, उसकी कहानी भी उतनी ही बड़ी और प्रेरक होती है।

जोखिम के बिना कैसी जिंदगी

किसी भी माता-पिता की सभी संतान एक जैसी नहीं होतीं। मैं भी नहीं हूं। मुझे कभी किसी बात से डर नहीं लगता। चुनौतियों को अधिक देर तक टिकने नहीं देती। इसलिए पापा के सामने जब मार्शल आर्ट करती तो उन्हें भी अच्छा लगता, पर शादी से पहले अधिक कुछ करने का अवसर नहीं मिला। शादी के बाद जब मौके मिले तो उन्हें हाथ से नहीं जाने दिए। यह अलग बात है कि एक पत्नी और मां के रूप में शौक पूरे करना आसान नहीं रहा, पर मुझे लगता है कि जिंदगी कभी एक सीधी रेखा में नहीं चलती। इसमें जोखिम व कठिनाइयां लगी रहती हैं, आपको उन्हें पार करते हुए चलते जाना है। मौसम की भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं था। माउंटेनियरिंग में जोखिम नहीं लेना सिखाया जाता है, पर मेरा मानना है कि जोखिम लेना ही होगा। जोखिम नहीं लिया होता तो इतना सब कैसे कर पाती। आपको बस अपनी सुरक्षा को ध्यान रखना है। जिस मौसम में मैंने उपलब्धि हासिल की, वह काफी मुश्किल था। अच्छी बात यह है कि इस दौरान कोई अनहोनी नहीं हुई।

पर्वतारोहण की शुरुआत

शादी के कुछ समय बाद लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए, जो मुझे पसंद है, पर क्या करना है? यह साफ नहीं था। पहले गेम पार्लर शुरू किया। इसे अंतरराज्यीय स्तर तक पहुंचाया। कुछ प्रतियोगिताएं करवाईं। इसके बाद बोमडिला माडलिंग और ब्यूटी पेजेंट का काम शुरू किया। यह भी काफी अच्छा चला। इसके बाद पति की टूर एंड ट्रेवल कंपनी में काम करने लगी। एक बार कंपनी की राक क्लाइंबिंग साइट के लिए कुछ पेशेवर पर्वतारोही आए, लेकिन उन्हें जो साइट पसंद आई, उसे वे जोखिमपूर्ण मान रहे थे। उनको कुछ अनहोनी का अंदेशा लग रहा था। जब मैंने यह सुना तो साइट पर उनके साथ गई और स्वयं कोशिश करने की बात कही। उन लोगों ने डरते हुए मुझे हां कहा, पर जब पहाड़ पर चढ़कर सफलतापूर्वक नीचे आ गई तो वे सब हैरान रह गए। बस यहीं से मुझे आगे क्या करना है, इसका संकेत मिल गया।

खुद के लिए करनी होगी पहल

एक बार जो मेरा माउंटेनियरिंग का सफर शुरू हुआ। फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बेसिक और एडवांस कोर्स किए। उस दौरान मुझे लगा कि पहाड़ मुझे पसंद हैं। प्रशिक्षक भी मेरे साहस और निडरता को देखकर बेहद खुश थे। उनमें से एक ने सोचा कि कहीं शादीशुदा होने के नाते मेरा सफर रुक न जाए, इसलिए मेरे पति से बात की और उनसे निवेदन किया कि मेरी राह न रुकने पाए। दरअसल माउंटेनियरिंग की ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है। बहुत लोगों ने बीच में ही छोड़ दिया। कुछ ने रोना शुरू कर दिया कि हमसे नहीं होगा, पर मैं अडिग रही। पति भी मना नहीं कर पाए, क्योंकि मैंने घर की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई, कभी शिकायत का अवसर नहीं दिया।

नकारात्मक ऊर्जा से रहें दूर

बोमडिला में लोगों को पर्वतारोहण के बारे में कुछ ज्यादा मालूम नहीं था। मेरे घरवाले भी यही कहा करते थे कि क्यों कर रही हूं, क्या मिलेगा, बेटियों को कौन देखेगा, घर संभालो आदि, पर इन सब बातों को मैं खुद पर हावी नहीं होने देती। मुझे खुद को प्रेरित रखना था। भावनात्मक रूप से कई बार आहत हुई, लेकिन आगे जाने का सपना था। इसलिए त्याग करना ही था। वर्ष 2011 में जब दो बार एवरेस्ट फतह किया था तब लोगों ने कहा कि मैं बेस कैंप तक भी नहीं पहुंच पाऊंगी। सामने बोल देते थे कि उम्र ज्यादा है, बेटियों को बड़ा करो, उन्हें आगे बढ़ाओ, लेकिन मैंने उन सब बातों को अनसुना कर दिया। खुद पर यकीन था कि एक दिन आएगा जब लोग मुझे समझेंगे। अपनी ऊर्जा को बचाकर रखना जरूरी है, क्योंकि यह नकारात्मक सोच से भी बचाती है। कोई नकारात्मक विचार आए भी तो उसे हटाकर रखें। नकारात्मकता होने की स्थिति में आप किसी बड़े मिशन को पूरा नहीं कर सकतीं।

बेटियों से मिलती है ताकत

जब मैं पहली बार एवरेस्ट के लिए जा रही थी तो लगता था कि अपनी बेटियों को कैसे समझाऊं? घर वाले न मानें, पर मेरी बच्चियां कहीं मुझे गलत तो नहीं समझ लेंगी? वे साथ नहीं देंगी तो कैसे आगे बढ़ूंगी? इन सवालों से निजात पाने के लिए मैंने बेटियों को म्यांमार की महिला नेता आंग सान सू की पर बनी एक फिल्म द लेडी दिखाई और उन्हें बताया कि एक महिला आगे बढ़ने के लिए कितना संघर्ष करती है। अब मेरी बेटियां बड़ी हो गई हैं। वे मुझे अच्छी तरह समझती हैं और मेरी ताकत हैं।

मौत से मुलाकात

वर्ष 2011 में जब एवरेस्ट फतह करने के लिए गई तो अचानक बेस कैंप से ऊपर जाते ही जेट स्ट्रीम यानी बर्फ का तूफान आ गया। बर्फ का एक हल्का टुकड़ा भी आंख पर लग जाता है तो अंधा बना देता है। कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। पूरी रात यही हाल रहा। हम मान चुके थे कि अब जिंदा वापस लौटने वाले नहीं। इसलिए बचने की दुआ नहीं बस घरवालों से माफी मांग रही थी और बेटियों के बारे में भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि उन्हें मेरे पीछे सलामत रखना। सुबह हुई तो नजारा भयावह था। टेंट फट चुके थे। सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था, पर कुछ ही देर बाद जिंदगी ने आवाज दी। बेस कैंप पर जो सज्जन हमें चाय आदि पिलाते थे, उन्होंने पीछे से आवाज दी। हालांकि उतना डर वहां पर नहीं लगा था, पर जब घर पहुंची तो उस दिन के मंजर को याद करने के बाद जाना कि डर क्या होता है, लेकिन डरके रहेंगे तो डरते ही रहेंगे और डर घर बना लेंगे दिल के अंदर।

भूल जाती हूं अपना जेंडर

मुझे कभी नहीं लगता कि मैं महिला हूं। इसलिए यह किया तो महान काम है। पति से भी कहती हूं कि मैं तो भूल ही जाती हूं कि मैं एक महिला हूं। इस पर वह जोर से हंसते हैं। हमें लगता है कि हम महिला हैं। इसलिए कमजोर हैं, सक्षम नहीं हैं। ऐसी सोच के कारण हम और कमजोर हो जाते हैं। सामाजिक प्रतिमानों का मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि पहले हम यह मानना बंद करें। अपने मजबूत पक्ष को याद करें और आगे बढ़ते जाएं। लोग कुछ कह रहे हैं तो वे अपनी सोच के कारण कह रहे हैं। आपको अपने बारे में सोचना है। अपनी जिंदगी की नायिका आपको खुद बनना है।

मुफ्त में कुछ नहीं मिलता

परिवार से मिले न मिले, पर आपको हर चीज अर्जित करनी होगी। अपने बल पर हासिल करना होगा। इसके लिए मेहनत करनी होगी। संघर्ष करना ही होगा। याद रहे, कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। मुझे अपने सपने पूरे करने के दौरान बहुत बार लगा कि सारी दुनिया एक तरफ और मैं एक तरफ, पर खुद पर भरोसा था। इसलिए सबने साथ भी दिया और मेरा सफर आसान बनता गया।