दृष्टिबाधितों के लिए सहायक तकनीक पर योगदान देने के लिए शोधार्थी डॉ पीयूष चानना को मिला पुरस्कार
डॉ पीयूष आइआइटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रो प्रोफेसर एम.बालाकृष्णन के साथ असिस्टेक लैब में आठ वर्षों से काम कर रहे थे।
By Prateek KumarEdited By: Updated: Thu, 06 Aug 2020 11:27 PM (IST)
नई दिल्ली [राहुल मानव]। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के शोधार्थी डॉ पीयूष चानना को दृष्टिबाधितों के लिए सहायक तकनीक पर काम करने के लिए एक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। साथ ही उन्हें एक लाख रुपये के चेक भी दिया गया है। डॉ पीयूष, आइआइटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रो प्रोफेसर एम.बालाकृष्णन के साथ असिस्टेक लैब में आठ वर्षों से काम कर रहे थे।
दृष्टिबाधितों के लिए स्मार्ट केन छड़ी तैयारइस लैब के जरिये दृष्टिबाधितों के लिए स्मार्ट केन छड़ी को तैयार किया गया है। इससे दो मीटर के दायरे में कोई भी वस्तु उनके सामने आती है तो छड़ी अपने आप वाइब्रेट होकर इसकी जानकारी दृष्टिबाधितों को दे देती है। डॉ पीयूष ने इस तकनीक के अलावा कई अन्य तकनीक पर भी काम किया है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें नीलोम फाउंडेशन की तरफ से यह पुरस्कार एवं एक लाख रुपये का चेक दिया गया है।
प्रोत्साहित करने के लिए नीलोम अवार्डआइआइटी दिल्ली के निदेशक प्रो वी.रामगोपाल राव ने डॉ पीयूष को 4 अगस्त को पुरस्कार और चेक सौंपा। नीलोम फाउंडेशन ने आइआइटी दिल्ली के असिस्टेक लैब के साथ साझेदारी की है। इस संस्था ने दृष्टिबाधितों के लिए तकनीक तैयार करने वाले शोधार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए नीलोम अवार्ड तैयार किया है। अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के प्रो देविंदर के.आनंद ने अपने बेटे के नाम से नीलोम संस्था का गठन किया है।
70 हजार दृष्टिबाधितों को दी जा चुकी है छड़ी प्रो एम.बालाकृष्णन ने कहा कि अब तक स्मार्ट केन छड़ी को 70 हजार दृष्टिबाधितों को दिया जा चुका है। चेन्नई की एक कंपनी को इस प्रोडक्ट को तैयार करने का लाइसेंस दिया गया था। डॉ पीयूष ने कहा दृष्टिबाधितों को कई जगहों पर जाने के लिए सूचना देने वाली एक नेविगेशन मोबाइल एप का निर्माण भी किया जा रहा है। यह आने वाले समय में बाजार में उतारी जाएगी।
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